नई दिल्ली। छत्तीसगढ़ के बस्तर में नक्सली हिंसा के पीड़ित लोगों की रौंगटे खड़े कर देने वाली आपबीती सुनकर हर कोई एक पल के लिए सन्न रह जाएगा। पिछले चालीस सालों से बंदूक, हिंसा, लैंड माइन्स, गोली-बारूद के साये में जी रहे बस्तर के नक्सली हिंसा से पीड़ित लोग अब अपने बच्चों के भविष्य के लिए चिंतित हैं। उनके साथ हुई दर्दनाक घटनाओं को पीछे छोड़ अब वे अपने बच्चों के भविष्य को सुरक्षित करना चाहते हैं। वे चाहतें हैं कि उनका 40 साल पहले का बस्तर उन्हें वापस मिले। क्षेत्र में शांति और सुरक्षा की भावना बहाल हो। विशेषकर वो महिलाएं जिन्होंने लैंड माइन्स ब्लॉस्ट में अपने हाथ- पैर खो दिए, आंखे गवां दी, किसी ने अपने पति को खो दिया, तो किसी ने अपने बेटे को अपने आंख के सामने मरते देखा। पीड़ित महिलाएं अब अपने बच्चों के भविष्य को संजोना चाहती हैं। इसी आस में बस्तर से करीब 50 नक्सली हिंसा के पीड़ित लोग राजधानी में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की।
बस्तर शांति समिति के बैनर तले पहली बार नक्सली हिंसा पीड़ित राजधानी में पहुंचे और डरे सहमे होने के बावजूद भी खुलकर अपनी आपबीती सुनाई। नौंवी कक्षा में पढ़ने वाली राधा सलाम और उसके भाई ने आईईडी ब्लास्ट की घटना से कई अंग प्रभावित हुए। बस्तर के कोंगेरा गांव की रहने वाली राधा बताती हैं कि वहां शाम को लड़कियां घर से बाहर निकलने से भी डरती हैं। घर के अंदर भी रात को किसी के खटखटाने की आवाज भर से कांप जाती हैं। क्योंकि नक्सली लोग घर से लोगों को उठाकर गोली मार देते हैं।
पोस्ट ग्रैजुएट कर रहीं दंतेवाड़ा की रहने वाली भुवनेश्वरी ने अपने पिता, ताऊ और सभी बड़े रिश्तेदारों की हत्या को देखा है। वे बताती हैं कि नक्सली लोग उनके घर से पिताजी को लेकर गए और गोली मार दिया। ऐसे ही ताऊ को भी मार दिया। । अब हालात यह है कि इलाके में अगर कुत्ता भी भौंकता है तो घर की महिलाएं सिहर उठती हैं। वे बताती हैं कि गांव में कई घर ऐसे हैं जिसमें कोई पुरुष नहीं बचा। सभी को नक्सलियों ने भून दिया। इसलिए हम सरकार से चाहते हैं कि इस समस्या से क्षेत्र को मुक्त कराएं।
बीजापुर की निकिता अवलम गर्भवती हैं। उनके चेहरे में खुशी से ज्यादा भय दिखता है। 27 साल की निकिता के पति की एक लैंड माइन विस्फोट में हाथ गंवा दिए। कई अंग प्रभावित हुए। वे अब आने वाले बच्चे के भविष्य को लेकर चिंतित हैं। वे बताती हैं कि नक्सलवाद से कई जिले प्रभावित हैं। गांव में न बच्चे पढ़ पाते हैं और न ही स्वास्थ्य सेवाएं दुरुस्त हैं। नक्सली लोग सड़के ही उड़ा देते हैं। ऊपर से उनके गांव में आने और हिंसा करने की दहशत अलग है। वे 12 वीं पास हैं और अब वे गांव में ही बच्चों को पढ़ाना चाहती हैं लेकिन डरती हैं कि नक्सली उन्हें भी न निशाना बना लें।
दंतेवाड़ा के सकिन कोण्डापारा की रहने वाली भीमे मरकाम ने आठ साल पहले एक आईईडी विस्फोट में बाये पैर को काफी क्षति पहुंची। इस धमाके से उनके पूरे शरीर में जख्म लगा। वे बताती हैं कि उनके पति की पहले ही मृत्यु हो गई थी जिसके कारण परिवार के पालन पोषण के लिए वे पशु पालन करने लगी। लेकिन आठ साल पहले आईईडी विस्फोट ने जिन्दगी ही बेहाल कर दी। अब वे अपने दिनचर्या के काम काज के लिए भी दूसरों पर आश्रित हैं। वे सरकार से चाहती हैं कि उनके बच्चों के साथ ऐसा न हो। इस दिशा में जल्द से जल्द कदम उठाए जाएं।
भीमापुरम की रहने वाली मड़कम सुक्की ने इसी साल महुआ के पेड़ के नीचे बिछे आईईडी धमाके में अपने पैर गवां दिए। 14 साल की मड़कम बताती हैं कि बचपन में ही उनकी माता का देहांत हो गया था। तीन साल पहले नक्सलियों ने उसके पिता की हत्या कर दी थी। अब इस हादसे उन्हें अपाहिज कर दिया। वे चाहती हैं कि सरकार इस सिलसिले को अब किसी तरह से यहीं थाम दें। जो उसके साथ हुआ वो किसी औऱ के साथ न हो। लड़कियों की अच्छी शिक्षा और सुरक्षा के लिए कदम उठाएं।
बस्तर शांति समिति से जुड़े जयराम एक ने कहा कि अभी तक बस्तर में नक्सली हिंसा को जायज ठहराने के लिए सुरक्षा बलों के खिलाफ दुष्प्रचार किया जाता था। इसलिए राजधानी में प्रत्यक्ष के साथ करीब 50 पीड़ित लोगों को लाया गया है और उनकी आवाज नीति निर्धारकों तक पहुंचाई गई है। गृह मंत्री ने भी इन सभी पीड़ित लोगों से बात की है और आश्वासन दिया है कि नक्सलवाद को जल्दी ही खत्म कर दिया जाएगा।