चला गया परमात्म याद में रहने वाला फरिश्ता!
डॉ गोपाल नारसन एडवोकेट
यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे ब्रह्माकुमारीज महासचिव बीके निर्वेर भाई से कई बार मिलने उनके साथ ज्ञान चर्चा करने का अवसर मिला।मैने उन्हें अपनी पुस्तक श्रीमद्भागवत गीता शिव परमात्मा उवाच भेंट की तो बहुत खुश हुए।वे चाहते थे कि मैं संस्था की प्रमुख रही राजयोगिनी प्रकाशमणि दादी को लेकर एक पुस्तक लिखूं,यह पुस्तक अभी पूरी भी नही हुई कि जगत की प्रमुख संस्था ब्रह्माकुमारीज के अंतराष्ट्रीय महासचिव बीके निर्वेर भाई का 86 वर्ष की आयु में 19 सितंबर की रात 11.30 बजे अहमदाबाद के अपोलो अस्पताल में निधन हो गया है,उनका अंतिम संस्कार 22 सितंबर को आबू रोड़ में किया जा रहा है। बीके निर्वेर भाई के निधन से ब्रह्माकुमारीज के अनुयायियों में शोक की लहर फ़ैल गई है। बीके निर्वेर भाई की पार्थिव देह को आबूरोड शान्तिवन स्थित अंतराष्ट्रीय मुख्यालय गया, जंहा पूरे दिन दर्शन के लिए रखा गया। उनके शव को माउंट आबू के पांडव भवन, ग्लोबल अस्पताल, ज्ञान सरोवर सहित संस्थान के प्रमुख स्थलों पर दर्शन के लिए रखा गया। मुक्तिधाम पर उनका अंतिम संस्कार किया जा रहा है।बीके निर्वेर भाई का जन्म 20 नवंबर सन 1938 को पंजाब प्रांत में हुआ था। वे एक अच्छे सुसंस्कृत और धार्मिक फरिश्ता स्वरूप इंसान थे। वे जब हाई स्कूल में थे तब से स्वामी विवेकानंद और स्वामी रामतीर्थ की रचनाएं पढ़ते थे,इससे उनमें अच्छे संस्कार पैदा हुए और आध्यात्मिक सत्य को जानने की उनकी अभिलाषा पूरी हुई।वे पंजाब में पले-बढ़े, उन्होंने अपना स्कूली जीवन सुचारू रूप से बिताया। आज़ादी के बाद उन्होंने कॉलेज की डिग्री पास की और फिर नौ साल तक भारतीय नौसेना में इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर के रूप में सेवा की, वर्ष 1959 की बात है, जब निर्वेर भाई अपने गृह राज्य पंजाब में थे तब उनके क्षेत्र में ब्रह्माकुमारी केंद्र खोला गया था। निर्वेर भाई एक आध्यात्मिक साधक होने के नाते संस्थान की राजयोग कक्षा में भाग लेने गए तब से वह संस्थान से जुड़े और संस्थान के अनेक बड़े पदो पर रहे। इंटरनेशनल पेंगुइन पब्लिशिंग हाउस द्वारा ‘ राइजिंग पर्सनालिटीज ऑफ इंडिया अवार्ड ‘ से उन्हें नवाजा गया। सन 2001 में गुजरात के राज्यपाल द्वारा गुजरात गौरव पुरस्कार के तहत ‘ मोरारजी देसाई शांति शिक्षा अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार वर्ष 2001 दिया गया। निर्वेर भाई एक पवित्र स्वभाव और दयालु हृदय से संपन्न शख्सियत थे,वह लोगों को सम्मान, शांति और कल्याण का जीवन जीने में मदद करने के उद्देश्य से समाज की सेवा के लिए हमेशा तैयार रहते थे।बीके निर्वेर भाई का जन्म पंजाब के होशियारपुर में एक अकाली परिवार में हुआ था। 13 साल की छोटी उम्र से ही उन्हें दर्शनशास्त्र और धार्मिक पुस्तकों में गहरी रुचि थी और वे स्वामी विवेकानंद, स्वामी राम तीर्थ, गांधीजी और डॉ. राधाकृष्णन की शिक्षाओं और जीवन से प्रेरित थे।मुकेरियां हाई स्कूल से स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने डीएवी कॉलेज, मुकेरियां में उच्च शिक्षा शुरू की, लेकिन देश सेवा की लालसा ने उन्हें 20 सितंबर सन 1954 को भारतीय नौसेना में भर्ती होने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक्स और इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में प्रशिक्षण लिया और 9 वर्षों तक नौसेना में सेवा करते हुए उन्होंने 1961 में गोवा मुक्ति आंदोलन में भी भाग लिया।सत्य के साधक , निर्वेर भाई प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के छात्र बन गए, जिसे ब्रह्माकुमारी विश्व आध्यात्मिक विश्वविद्यालय के नाम से भी जाना जाता है, फरवरी 1959 में 20 वर्ष की आयु में उन्होंने ब्रह्माकुमारी केंद्र में पहली बार कदम रखने का अनुभव सुनाया था। उन्हें लगा कि आखिरकार उन्हें वह परमात्मा मिल गया है जिसकी तलाश वे बचपन से कर रहे थे, स्वयं, दिव्य सत्ता का सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान , और दिव्यता के साथ आध्यात्मिक संबंध को कैसे नवीनीकृत किया जाए,इस बाबत वे हमेशा चिंतन करते रहे।
ब्रह्माकुमारीज के संस्थापक ब्रह्मा बाबा और संस्था के अन्य वरिष्ठ सदस्यों के साथ उनके घनिष्ठ, व्यक्तिगत जुड़ाव के कारण , उन्हें नौसेना में सेवा करते हुए आध्यात्मिक रूप से दुनिया की सेवा करने की प्रेरणा मिली। एक दशक की अवधि में ब्रह्मा बाबा के अधीन प्रशिक्षण के दौरान, उन्होंने आध्यात्मिक सेवा करने के विभिन्न तरीके सीखे।सन1960 में शिवरात्रि के अवसर पर ब्रह्मा बाबा ने बीके निर्वेर भाई को नौसेना से एक सप्ताह की छुट्टी लेकर सोमनाथ जाने की सलाह दी, ताकि वे भारत के पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से विशेष रूप से मिल सकें, जिन्हें पुनर्निर्मित प्रसिद्ध सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन के लिए आमंत्रित किया गया था। बीके निर्वेर भाई व्यक्तिगत रूप से प्रधानमंत्री से मिलते थे, ब्रह्मा बाबा की ओर से शुभकामनाएं, उपहार और प्रसाद देने व आध्यात्मिक साहित्य साझा करने में वे सक्षम थे।सन 1963 तक , उन्हें स्पष्ट रूप से पता चल गया था कि उन्हें किस मार्ग पर चलना है और इसलिए उन्होंने अपने गुरु और मार्गदर्शक, प्रजापिता ब्रह्मा के मार्गदर्शन में, अपना पूरा जीवन ब्रह्माकुमारीज़ के कार्य के लिए समर्पित कर दिया।उन्होंने भारत और विदेशों में ब्रह्माकुमारीज़ की शिक्षाओं को फैलाने के लिए मूल्यवान और प्रभावी साधन के रूप में संस्था का प्रतिनिधित्व करने की भूमिका शुरू की। दूसरों के साथ उनके संपर्क ने लोगों के खुद को देखने के तरीके में जबरदस्त बदलाव लाया, जिसने बदले में उस संस्था को आकार देने में मदद की।7 मई सन 1970 को वे मुंबई से माउंट आबू स्थित मुख्यालय में चले आए, जहाँ उन्होंने ब्रह्माकुमारीज़ की तत्कालीन प्रमुख राजयोगिनी दादी प्रकाश मणि के मार्गदर्शन में प्रशासनिक कार्यालय का प्रबंधन करने में मदद की। दादी प्रकाशमणि और बीके निर्वैर ने सन 1964 से एक साथ सेवा की थी, और इस तरह माउंट आबू में सेवा क्षेत्र में विश्वास का यह प्रेमपूर्ण रिश्ता अगले तीन दशकों तक कायम रहा।वे विश्व परिवर्तन, आध्यात्मिक प्रदर्शनियों, आध्यात्मिक कला दीर्घाओं, वृत्तचित्र फिल्मों के निर्माण तथा कला में आध्यात्मिकता पर अन्य परियोजनाओं की स्थापना के पीछे प्रेरणा के स्रोत रहे।
सन 1982 में, उन्होंने संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में आयोजित निरस्त्रीकरण पर दूसरे विशेष सत्र में विश्वविद्यालय का प्रतिनिधित्व किया, जहाँ उन्होंने आधिकारिक तौर पर संयुक्त राष्ट्र महासचिव जेवियर पेरेज़ डी कुएला और अन्य गणमान्य व्यक्तियों से मुलाकात की। अमेरिका, कैरिबियन और यूरोप के 2 महीने के सेवा दौरे के दौरान, वे गुयाना के पूर्व उपराष्ट्रपति स्टीव नारायण के अतिथि रहे।विभिन्न व्यावसायिक क्षेत्रों के विचारो को नेताओं के साथ आध्यात्मिक ज्ञान साझा करने के प्रयासों में, उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में महासचिव के रूप में कार्य करने की जिम्मेदारी संभाली। माउंट आबू में अंतर्राष्ट्रीय मुख्यालय ने सन 1983 से “सार्वभौमिक शांति”, “बेहतर दुनिया के लिए वैश्विक सहयोग”, “सार्वभौमिक सद्भाव”, “बदलते समय के लिए आध्यात्मिक प्रतिक्रिया”, “मूल्य-आधारित समाज के लिए हमारे प्रयास”, और कई अन्य विषयों पर ऐसे कई सम्मेलनों की मेजबानी की। कई प्रतिष्ठित गणमान्य व्यक्तियों ने इन सम्मेलनों का उद्घाटन किया। पूर्व राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा, पूर्व प्रधान मंत्री श्री राजीव गांधी, और श्री रॉबर्ट मुलर, दलाई लामा, लॉर्ड डेविड एनल्स और तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जैसे अन्य महानुभाव का स्वागत किया।बीके निर्वेर भाई ने न केवल आध्यात्मिकता में बल्कि मानवतावाद और लेखन में भी दक्षता दिखाई। मानवता के प्रति उनका निस्वार्थ प्रेम और सम्मान उनसे मिलने के कुछ ही सेकंड में महसूस किया जा सकता था।मनुष्यों के प्रति उनकी गहरी चिंता रंग, जाति और पंथ की सभी बाधाओं से परे थी।बीके निर्वेर भाई वाकई गुणों की खान थे,जिन्हें दिव्य व्यक्तित्व कहना ही उचित होगा।
(लेखक विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ के उपकुलपति व वरिष्ठ पत्रकार है)