श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट
हाल ही में कुछ स्वतंत्रता सेनानी उत्तराधिकारियों ने हरिद्वार में एक सम्मेलन आयोजित किया,जिसमे उत्तराखंड व असम के मुख्यमंत्रियों, केंद्रीय गृह मंत्री व अन्य कई मंत्रियों के शामिल होने का दावा किया गया था,ऐसा ही दावा असम व उससे पूर्व दिल्ली में राष्ट्रीय सम्मेलन के नाम पर आयोजित कार्यक्रमो में किया गया,लेकिन उक्त में से आया कोई नही।न ही ये लोग सम्मेलन का उद्देश्य समझाने में कामयाब हो पाए और न ही स्वयं को गैर राजनीतिक रख पाए।अलबत्ता आयोजन के नाम पर धन उगाई की शिकायतें जरूर मिलती रही।हरिद्वार सम्मेलन में तो स्थानीय स्वतंत्रता सेनानी उत्तराधिकारी गिनती के ही शामिल हो पाए।हालांकि सम्मेलन आयोजित करना बुरा नही है,लेकिन जिन महान स्वतंत्रता सेनानियों ने देश की स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए स्वयं को होम कर दिया,जेल यातनाएं सही,शहादत दी,उन्हें भूल कर अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी के हत्यारे गोडसे की विचारधारा के लोगो के प्रति आस्था व्यक्त करना नागवार ही लगेगा।ये लोग भूल गए है कि सरकार में बैठे लोग लोकतंत्र सेनानियों को सिर आंखों पर बैठा रहे है,उन्हें भारी भरकम पेंशन दे रहे है,जबकि स्वतंत्रता सेनानियों ,यहां तक कि राज्य आंदोलनकारियों की भी समय समय पर उपेक्षा हो रही है।सवाल उठता है कि तिरंगे के लिए प्राण न्योछावर करने वाले अमर शहीदों,आजादी के लिए कारावास भोगने वाले स्वतंत्रता सेनानियों के उत्तराधिकारियो को क्या अपने पूर्वजो के संस्कार अपनाने के बजाए सत्ता की चापलूसी करनी चाहिए,स्वार्थ के लिए उनके तलवे चाटने चाहिए ,यदि नही तो फिर क्यो उन्हें अपने कार्यक्रमो में बुलाने के लिए गिड़गिड़ाते हो,अपना स्वाभिमान बनाये ऱखकर स्वतंत्रता सेनानी उत्तराधिकारियों की समस्याओं पर ध्यान देते तो बेहतर होता। स्वतंत्रता सेनानी व उनके उत्तराधिकारियो की ही नही बल्कि शहीद चंद्रशेखर आज़ाद, मंगल पांडे,रानी लक्ष्मी बाई,अशफ़ाक़ उल्ला खां, जगदीश प्रसाद वत्स ,उधम सिंह समेत शहीदों के लगभग बीस वंशजो की उपेक्षा भाजपा सरकारों द्वारा की जाती रही है। जो देश के लिए लड़े, उनके वंशज आज अपनी ही उपेक्षा से आहत है। राष्ट्रभक्तो का सम्मान करने के लिए सत्ता से जुड़े नेताओं के पास समय नही है। देश के जीवित बचे स्वतंत्रता सेनानियों, अमर शहीदों के वंशजो से मिलना तक ये नेता गंवारा नही करते।शायद वे भूल गए कि ब्रिटिश हुकूमत की दो सौ साल की गुलामी यूं ही समाप्त नही हुई थी।जिन अंग्रेजों के राज में कभी सूरज नही डूबता था ,उन्ही अंग्रेजों को भारत की बागडोर रात के अंधेरे में देश के नायकों को सौंपनी पड़ी थी।आज़ादी की लड़ाई नरम व गर्म विचारधाराओं के साथ लड़ी गई, दोनों का उद्देश्य सिर्फ ओर सिर्फ देश की आजादी था।जिसे पाने के लिए अनेक बलिदान दिए गए ,जन्मे बच्चों से लेकर युवा,प्रौढ़ और बुजुर्ग सभी आयु वर्ग के थे।इस आज़ादी और आजादी के दीवानों को याद करने के लिए पूरे देश ने आज़ादी का अमृत महोत्सव भी बीते वर्ष मनाया था।जिसके लिए दो सौ करोड़ का बजट भी खर्च किया ।लेकिन क्या वास्तव में आज़ादी के दीवानों और उनके परिजनों को अभी तक वह सम्मान मिल पाया है,जिसके वे हकदार है? स्वतंत्रता सेनानी उत्तराधिकारी परिवारो के पूर्वज शहीदों,स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की वजह से आज हम आजादी की सांस ले रहे है,उनके वंशज जब अपने पूर्वजों का परिचय देते है तो पूरा परिवार विशिष्ट हो जाता हैं।वे महात्मा गांधी के आजादी आंदोलन में योगदान को याद करते है और जीवित स्वतंत्रता सेनानियों के दर्शन करके स्वयं को धन्य महसूस करते है।स्वतंत्रता आंदोलन में सभी वर्ग व सभी क्षेत्रों के लोगो का योगदान रहा है।स्वतंत्रता सेनानियों व उनके उत्तराधिकारियों की संख्या देश मे बहुतायत में है।7 लाख स्वतंत्रता सेनानियों के 2 करोड़ उत्तराधिकारी सम्मान का अधिकार प्राप्त करने की हैसियत रखते हैं। अमर शहीद मंगल पांडे के पुत्र रघुनाथ पांडे,शहीद जगदीश वत्स के भतीजे गुरुदत्त वत्स,हरिराम गुप्ता, नित्यानन्द शर्मा समय समय पर स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े परिवारों के सम्मान की वकालत करते नजर आते है। देश के स्वतंत्रता सेनानियों,शहीद वंशजो व उनके उत्तराधिकारियों ने स्वयं को राष्ट्रीय परिवार घोषित करने,शहीदों व स्वतंत्रता सेनानियों की जीवनी पाठ्यक्रम में शामिल करने,राज्यसभा में दो सीटें देने,केंद्र व राज्य सरकारों में संवैधानिक पदों पर सम्मान देने के प्रस्ताव पिछले कई सम्मेलनों में पारित किए गए ,परन्तु हुआ आज तक कुछ नही।फिर भी कुछ स्वतंत्रता सेनानी उत्तराधिकारी सत्ता के पीछे कुछ पाने की गरज से दौड़ रहे है और सत्ता की कुर्सियों पर बैठे लोग उन्हें सम्मान तक नही दे रहे है।आजादी से जुड़े परिवार देश चलाने की हैसियत रखते है।स्वतंत्रता सेनानी उत्तराधिकारियों ने देश और तिरंगे के साथ संगठन एकजुटता की शपथ ली हुई है।उन्होंने देश के स्वतंत्रता सेनानी परिवारों के हितों की रक्षा करने के लिए संघर्ष का आव्हान भी किया है। उन्होंने दिल्ली में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्मारक की स्थापना की मांग करने के साथ ही संवैधानिक संस्थाओं में सेनानी परिवारों का मनोनयन किये जाने,स्वतंत्रता सेनानी उत्तराधिकारी परिवार आयोग का गठन करने,स्वतंत्रता सेनानी परिवार को राष्ट्रीय परिवार का दर्जा देने, आर्थिक सहायता दिए जाने का प्रावधान बनाने , शैक्षणिक पाठ्यक्रम में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की जीवनी शामिल करने की मांग की है।स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों एवं उनके उत्तराधिकारियों के सम्मान की रक्षा तथा उनकी समस्याओं के निराकरण के प्रति केंद्र सरकार और राज्य सरकार द्वारा बरती जा रही उदासीनता के प्रति सरकारों को सचेत करने के लिए भी स्वतंत्रता सेनानी उत्तराधिकारी परिवार सक्रिय है।न तो उत्तराखंड सरकार और न ही जिला प्रशासन अमर शहीद जगदीश प्रसाद वत्स को लेकर गम्भीर है।तभी तो मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की घोषणा के बावजूद आज तक हरिद्वार में शहीद जगदीश वत्स के नाम से स्वतंत्रता सेनानी सदन नही बन पाया,वही तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत के जगदीश वत्स की जीवनी पाठ्यक्रम में शामिल करने के आदेश भी कही फाइलों में दबकर रह गए।
(लेखक अमर शहीद जगदीश प्रसाद वत्स के भांजे है)