जदयू की साख का सवाल 

जदयू ही एक ऐसी पार्टी जिसे बिहार में हर जाति और वर्ग का है समर्थन
भाजपा के साथ खड़े होने से नीतीश कुमार और उनकी पार्टी पर खड़े हो रहे सवाल

प्रमोद झा, नई दिल्ली।
बिहार के मुख्यमंत्री और सुशासन बाबू के नाम से चर्चित नीतीश कुमार के लिए इस बार अपनी पार्टी जदयू की साख को बरकरार रखने की चुनौती है। जदयू ही एक ऐसी पार्टी है जिसे बिहार में हर जाति और वर्ग का वोट मिलता है। इसकी एक वजह कुमार की साफ-सुथरी छवि है। उनके शासन काल में बिजली, पानी और सड़क जैसी बुनियादी सुविधाओं का विकास हुआ है, जिससे काम करने वाले मुख्यमंत्री के तौर पर भी उनकी गिनती होती है। साथ ही, सूबे में कथित जंगलराज समाप्त कर शासन-व्यवस्था बहाल करने का श्रेय आज भी लोग उन्हें ही देते हैं। लेकिन, बदले राजनीतिक हालात में बात जाति गणना की हो या अल्पसंख्यक समुदाय से जुड़ा कोई मसला हो उसमें भाजपा के साथ खड़े होने से नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जदयू पर सवाल खड़े हो रहे हैं।

जाति-जनगणना के नाम पर राजद और कांग्रेस अपनी राजनीति को नई धार देने की कोशिश में जुटी है। लेकिन बिहार में जाति गणना करवाने वाले नीतीश कुमार ही हैं। उन्होंने करोड़ों रुपये खर्च करके जाति सर्वेक्षण कराया है, लेकिन उनकी सारी कवायद अब बेकार जा रही है, क्योंकि भाजपा जाति जनगणना के पक्ष में नहीं है। वहीं, विपक्षी दल उनको इस मसले पर घेरने की कोशिश कर रहे हैं ताकि वह एक बार फिर भाजपा को झटका देकर उनके खेमे में आ जाएं। असल में जदयू और तेदेपा की बैसाखियों पर ही केंद्र की मोदी सरकार चल रही है। जाहिर है कि विपक्ष एक तीर से दो निशाना लगाने की चेष्टा में है। मगर, नीतीश कुमार राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं। वह हवा का रुख भांपना जानते हैं। तभी तो करीब दो दशक से वह सूबे की सत्ता में कायम हैं। वह समय-समय पर विपक्ष ही नहीं, बल्कि अपने सहयोगियों को भी कड़े संदेश देते रहते हैं।

केंद्र सरकार द्वारा वक्फ संशोधन विधेयक लाए जाने को लेकर जदयू पर जब सवाल उठने लगे तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार वक्फ बोर्ड की जमीन पर नए मदरसे स्थापित करने घोषणा कर दी। बताया जा रहा है कि बिहार सरकार ने मुस्लिम समुदाय के कल्याण और उत्थान को सुनिश्चित करने के अलावा वक्फ की संपत्तियों के विकास के लिए एक विस्तृत योजना बनाई है। सरकार राज्य में सुन्नी और शिया वक्फ बोर्ड के तहत पंजीकृत अविवादित जमीन पर विवाह व अन्य सामुदायिक उद्देश्यों के लिए बहुउद्देशीय भवनों के निर्माण की योजना बनाई है। साथ ही, राज्य में वक्फ भूमि पर अतिक्रमण विरोधी अभियान चलाने की भी योजना बनाई गई है ताकि उसका समुचित विकास सुनिश्चित हो। राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं कि यह कवायद निश्चित तौर पर इस मसले को लेकर जदयू की साख पर उठ रहे सवाल से बचने के लिए है क्योंकि वक्फ संशोधन बिल नीतीश की नीतियों के विरुद्ध है जबकि उनकी पार्टी ने गठबंधन धर्म का पालन करते हुए इसका समर्थन किया है।
जानकारों की माने तो बिहार में नीतीश कुमार को पिछड़ा और अति पिछड़ा वर्गों के साथ-साथ मुसलमानों का भी वोट मिलता रहा है। लेकिन जाति गणना और वक्फ संशोधन विधेयक ऐसे मुद्दे हैं, जिनपर भाजपा के साथ खड़े होने से जदयू को नुकसान हो सकता है, लिहाजा कुमार डैमेज कंट्रोल की कोशिश में हैं, क्योंकि यह उनकी पार्टी की साख का सवाल है।

उधर, चुनावी रणनीतिकार से राजनेता बने प्रशांत किशोर से भी जदयू को खतरा दिख रहा है, क्योंकि वह लगातार विभिन्न मुद्दों पर तमाम मुद्दों पर मुख्यमंत्री और प्रदेश सरकार को घेर रहे हैं। प्रशांत किशोर की पार्टी अभी लांच नहीं हुई है, लेकिन उसकी चर्चा बिहार ही नहीं बल्कि पूरे देश में हो रही है। उनकी पार्टी की आगे की क्या दिशा और दशा होगी, इसका आकलन अभी करना जल्दबाजी हाेगी। मगर, किशोर जिस तरह की रणनीति बना रहे हैं, उससे जाहिर है कि वह जितना नुकसान राजद को पहुंचाएंगे उससे कम जदयू को नहीं। वह अपनी पार्टी में समाज के सभी वर्गों की समुचित भागीदारी सुनिश्चित करने की बात करते हैं, जिससे खासतौर से युवाओं और महिलाओं में जनसुराज के प्रति आकर्षण बढ़ रहा है। वह राजद सुप्रीमो लालू यादव और उनके परिवार की राजनीति पर चोट करने के साथ-साथ नीतीश सरकार की कमियां गिना के जदयू को भी निशाना बना रहे हैं।

बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश कुमार का कार्यकाल सबसे लंबा रहा है। नाैकरियाें एवं स्थानीय निकाय चुनावों में विभिन्न वर्गों को आरक्षण का सबसे ज्यादा लाभ उनके शासनकाल में ही मिला है। इस तरह ग्राम पंचायत से तमाम निकायों पर उनकी पकड़ है। वहीं, संविदा पर नौकरी करने वाले लाेगाें काे भी कुमार से ही बेहतरी की उम्मीद है। इसलिए, अपनी मांगों को लेकर विरोध प्रदर्शन करने वालों में ज्यादातर लोग चुनावों में अपना समर्थन उन्हें ही देते हैं। यही कारण है कि नीतीश कुमार जिस गठबंधन में हाेते हैं, बिहार में उसकी ही सरकार बनती है। जिसने कुमार का विरोध कर अलग राह पकड़ी उसे चुनावों में बहुत कुछ हासिल नहीं हुआ है। मसलन, लोजपा (रामविलास) प्रमुख चिराग पासवान ने बीते लोकसभा चुनाव में राजग गठबंधन में रहते हुए पांच में पांच सीटों पक अपनी जीत का परचम लहराया। जबकि नीतीश कुमार की खिलाफत करने पर 2020 के विधानसभा चुनाव में उन्हें 134 सीटों में से बमुश्किल से एक सीट मिली थी।
हालांकि, चिराग ने जदयू काे काफी नुकसान पहुंचाया था। कभी बिहार में एक नंबर पर रहने वाली पार्टी जदयू संख्या बल के हिसाब से 2020 के विधानसभा चुनाव में महज 43 सीटों के साथ तीसरे नंबर की पार्टी बन गई थी। कुमार को अब भी यह टीस सालती है। प्रशांत किशोर भी एक वक्त नीतीश कुमार के साथ हुआ करते थे उनके कामकाज की तारीफ किया करते थे।
प्रदेश की राजनीति काे समझने वाले बताते हैं कि चिराग पासवान ने नीतीश कुमार की पार्टी काे विधानसभा चुनाव में जितना नुकसान पहुंचाया था, प्रशांत किशोर कहीं उससे ज़्यादा नुकसान पहुंचा सकते हैं, क्योंकि उन्होंने बिहार विधानसभा की सभी 243 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने की घोषणा की है। साथ ही वह अगड़ा, पिछड़ा, दलित, मुस्लिम सभी वर्गों में अपनी पैठ बनाकर सूबे की सियासत में नई पौध तैयार कर रहे हैं।

राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं कि जदयू काे नुकसान की आशंका न सिर्फ जनसुराज से है, बल्कि राजद और सहयोगी दल भाजपा से भी है। इसलिए, नीतीश कुमार अपने जनाधार को मजबूत करने की जुगत में जुटे हैं। वह मुस्लिम मतदाताओं काे यह भरोसा दिलाना चाहते हैं कि उनकी पार्टी किसी भी सूरत में उनके साथ नाइंसाफी नहीं हाेने देगी। कुमार के लिए दलित, महादलित, अति पिछड़ा वर्ग के साथ-साथ अति पिछड़ा वर्ग और मुस्लिम समुदाय के बीच अपनी पार्टी का जनाधार काे अक्षुण्ण रखने की चुनौती है। लिहाज़ा वह चुनावी वर्ष से पूर्व उनके हितों से जुड़ी कई घोषणाएं कर सकते हैं, क्योंकि यह जदयू की साख का सवाल है। विकास पुरुष के नीतीश कुमार की छवि का्े बरकरार रखने का सवाल है।

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