राजनेताओं की शैक्षणिक योग्यता का मुद्दा बहुत गंभीर है: राजनेताओं को शिक्षित होना ही चाहिए

अतुल मलिकराम

राजनीति में ‘शैक्षिक योग्यता’ तय होना जरूरी क्यों नहीं? कम से कम एक सरकारी अफसर को उचित मार्गदर्शन के लिए साथ रखा जाए

काफी समय से इतना सोचने के बाद, आज मैं “हमारे भारत देश के राजनेताओं की शैक्षणिक योग्यता” विषय पर अपने विचार लिखने को तैयार हूँ। हममें से बहुत से लोग इस बात से वास्ता रखते होंगे कि हाँ, हमारे राजनीतिक व्यक्ति को शिक्षित होना चाहिए और उसमें कुछ आवश्यक शिष्टाचार भी होने चाहिए। एक अच्छे नेता के पास उचित सदाचार और आत्मविश्वास होना चाहिए जिसके साथ वह श्रोताओं को सौंप सके। हालाँकि, जो आजकल संसद भवन की भाषा शैली में देखने को नहीं मिलते।

चुनाव लड़ने वाले राजनेताओं के लिए शैक्षणिक योग्यता अनिवार्य होनी चाहिए या नहीं, इस पर बहस हमेशा से चलती आ रही है। कुछ लोग कहते हैं कि एक नेता को उसकी डिग्रियों से नहीं, बल्कि उसके अच्छे संचार कौशल या वाक् चातुर्य से चुना जाना चाहिए। केवल साक्षर होना एक अलग बात है।

क्या आपको स्कूल के नागरिक शास्त्र के वे पाठ याद हैं, जिनमें आपने हमारे देश भारत में चुनाव लड़ने के नियमों का अध्ययन किया था? किसी व्यक्ति को 25 वर्ष से अधिक आयु का देश का नागरिक होना आवश्यक है। इसके लिए न्यूनतम शिक्षा की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए और न ही स्वच्छ आपराधिक रिकॉर्ड की आवश्यकता है। खैर, किसी शिक्षा की आवश्यकता नहीं है और आपराधिक रिकॉर्ड पर कोई प्रतिबंध नहीं है।

कभी-कभी, संसद और विभिन्न विधान सभाओं में काफी बहस होती है, लेकिन हर बार बेतुकी बयानबाजी और बिना तर्क की बहस पर चली जाती है, जो वर्तमान विषय के लिए महत्वपूर्ण नहीं है। मसलन, नेता, डील में चाहे कोई भी मुद्दा हो, वे पिछड़ी जातियों के बारे में बोलने लगते हैं। यही बात यूपी, बिहार के नेताओं और कई अन्य लोगों के साथ भी लागू होती है। कुछ उदाहरण, जैसे कि मनमोहन सिंह, जो काफी शिक्षित हैं, लेकिन एक नेता के रूप में असफल साबित हुए। कपिल सिब्बल के पास हार्वर्ड की डिग्री है और वे देश के सबसे हास्यास्पद राजनेता प्रतीत होते हैं। यदि हम मायावती की बात करें, जो कानून व्यवस्था के बारे में बेहतर जानती हैं, लेकिन उतनी पढ़ी-लिखी नहीं हैं। इसी प्रकार और भी बहुत से उदाहरण मिल जाएँगे।

अभी कुछ महीनों पहले की बात है, जो मुझे निरंतर सोचने पर मजबूर कर रही है। झारखंड के दिवंगत शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो की पत्नी बेबी देवी मंत्री को उत्पाद एवं मद्य निषेध विभाग की नवनियुक्त मंत्री की शपथ दिलाई गई। इस दौरान वे शपथ पत्र ही नहीं पढ़ पाईं। शपथ पत्र में लिखे शब्दों का उच्चारण ही सही से नहीं कर पाईं। सोचकर देखिए, यह दुर्भाग्य नहीं तो क्या है, जिस राज्य की मंत्री शपथ पत्र के शब्दों को ठीक से नहीं पढ़ पा रहीं, वो अपने विभाग की फाइलों को कैसे पढ़ेंगी? और सोचनीय मुद्दा यह है कि उनके दिवंगत पति शिक्षा मंत्री ही थे। अक्सर यह भी देखा गया है कि शिक्षकों के बच्चे ही सबसे ज्यादा उद्दंड निकलते हैं। बात कुछ ऐसी ही है।

अभी हाल ही की एक वेबसीरीज़, पंचायत में एक ग्रामीण पहलू दिखाया गया, जिसमें गाँव की प्रधान एक महिला हैं, जो ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं होती। स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में जब जिला अधिकारी झंडा फहराने आती हैं, तब गाँव की प्रधान राष्ट्रगान नहीं गा पातीं क्योंकि उन्हें राष्ट्रगान आता ही नहीं है। यह तो हुई वेबसीरीज़ की बात, लेकिन क्या सच में भी नेताओं या उनके वारिसों को देश का गान शब्द दर शब्द आता होगा? मुझे पक्का विश्वास है नहीं आता होगा। फिर इसी सीरीज़ में एक सीखने योग्य घटना भी दिखाई गई। जिला अधिकारी द्वारा डाँट लगाने पर गाँव की प्रधान ने दो ही दिन में राष्ट्रगान याद करने का संकल्प लिया और पंचायत के सचिव जो एक पढ़ा लिखा नौजवान है, ने उनकी इसे सीखने मदद की।

नेता पढ़े-लिखे होने ही चाहिए। इस प्रक्रिया में परिवर्तन तो हो नहीं रहा, तो मेरे हिसाब से यह किया जा सकता है कि हर नेता या मंत्री के साथ एक ब्युअरक्रैट मतलब सरकारी अफसर या उस विषय विशेष का जानकार हो, यह एक पद निकाला जा सकता है। कम से कम वह उचित मार्गदर्शन कर सही दिशा दिखा सकेगा।

मेरी राय में, हमारे युवाओं को अपनी उच्च शिक्षा छोड़ने से पहले राजनीतिक शिक्षा के बारे में अवश्य जानना चाहिए, हम कभी नहीं जानते, शायद उनमें से कोई हमारा भावी प्रधान मंत्री या राष्ट्रपति होगा। आज की पीढ़ी हमेशा लोकतंत्र और नेतृत्व की दिशा में प्रयासरत रहती है, उन्हें उचित राजनीतिक शिक्षाप्रद वातावरण देकर हम उन्हें उनके बाद के जीवन में उभरने के लिए और अधिक प्रोत्साहित कर सकते हैं।

हालाँकि बुद्धि को शिक्षा पर अधिक महत्व दिया जाता है, फिर भी यह शिक्षा ही है जो किसी व्यक्ति के न्यूनतम ज्ञान को बढ़ाती है। एक सुशिक्षित व्यक्ति को देश के विकास के लिए संसाधन माना जाता है। और यदि मानव संसाधन के नेता ही अशिक्षित होंगे, तो मानव संसाधन के लिए उचित दिशानिर्देश या मार्गदर्शन कैसे मिलेगा।

उन्हें नागरिकों की समस्याओं की परवाह नहीं होगी। वे भ्रष्ट हो जाएँगे। देश को इन सभी समस्याओं से बचाने के लिए यह नियम लागू किया जाना चाहिए कि एक सीमा तक शैक्षणिक योग्यता रखने वाले लोग ही देश की राजनीतिक व्यवस्था में भाग ले सकते हैं। इसलिए, राजनेताओं को शिक्षित होना ही चाहिए।

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