नई दिल्ली। पूर्व सांसद रवनीत सिंह बिट्टू लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस छोड़कर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल होने वाले एकमात्र ऐसे नेता हैं जिन्हें मंत्रिपरिषद में जगह मिली है जबकि वह पंजाब के लुधियाना से चुनाव हार गए थे। बिट्टू ने रविवार को यहां राष्ट्रपति भवन में राज्य मंत्री के तौर पर शपथ ग्रहण की।
बिट्टू के अलावा जितिन प्रसाद और ज्योतिरादित्य सिंधिया भी कांग्रेस के पूर्व नेता हैं, लेकिन उन्होंने नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री के रूप में दूसरे कार्यकाल के दौरान ही पाला बदल लिया था। प्रसाद को भाजपा की उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री के रूप में सेवाएं देने के बाद केंद्रीय राज्य मंत्री के रूप में शामिल किया गया है, जबकि सिंधिया को कैबिनेट में बरकरार रखा गया है।
पहले विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के नेता रहे राज भूषण चौधरी 2020 में भाजपा में शामिल हुए थे। उन्होंने भी राज्य मंत्री के रूप में शपथ ली। तीन बार के सांसद बिट्टू मार्च में भाजपा में शामिल हुए थे। उस समय उन्होंने कहा था कि लोगों ने मोदी को फिर से प्रधानमंत्री चुनने का मन बना लिया है। बिट्टू पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के पोते हैं, जिनकी 1995 में एक आतंकवादी हमले में हत्या कर दी गई थी।
बिट्टू के कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होने पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कांग्रेस की पंजाब इकाई के नेताओं ने कहा था कि लोग बिट्टू को इस ‘‘गद्दारी’’ के लिए माफ नहीं करेंगे। कांग्रेस की पंजाब इकाई के अध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग ने लुधियाना से बिट्टू को 20,942 मतों से हराया था।
बिट्टू को अब छह महीने के भीतर संसद के लिए निर्वाचित होना होगा। पंजाब को प्रतिनिधित्व देने के लिए बिट्टू को मंत्रिपरिषद में शामिल किया गया है, जहां भाजपा लोकसभा चुनावों में एक भी सीट नहीं जीत पाई है। बिट्टू लुधियाना से दो बार और आनंदपुर साहिब से एक बार सांसद रह चुके हैं। प्रसाद 2021 में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए थे और उत्तर प्रदेश में भाजपा सरकार में कैबिनेट मंत्री थे।
उन्होंने लोक निर्माण विभाग का कार्यभार संभाला था। वर्ष 2022 में उत्तर प्रदेश में दूसरी बार भाजपा सरकार के सत्ता में आने पर भी प्रसाद का राज्य में मंत्री पद बरकरार रहा। प्रसाद ने समाजवादी पार्टी के भगवत सरन गंगवार को हराकर पीलीभीत लोकसभा सीट 1,64,935 मतों से जीती। सिंधिया कांग्रेस छोड़कर मार्च 2020 में भाजपा में शामिल हो गए थे और उनके इस कदम के बाद हुए घटनाक्रम के कारण मध्य प्रदेश में कमलनाथ के नेतृत्व वाली सरकार गठन के सिर्फ 15 महीने बाद ही गिर गई और भाजपा सत्ता पर फिर से काबिज हुई।