हरिद्वार। एसोसिएट प्रोफेसर शिवकुमार चौहान ने कहा कि कर्तव्यशील व्यक्ति ही समाज में सम्मान प्राप्त करता है। कर्तव्य में कर्म और दान दोनों भावनाओं का सम्मिश्रण है। यह व्यक्ति की इच्छा-अनिच्छा, रुचि-अरुचि या बाहरी दबाव से संबंधित न होकर आन्तरिक नैतिक प्रेरणा से सम्भव होता है। वे गुरुकुल कांगड़ी सम विश्वविद्यालय के दयानंद स्टेडियम परिसर, शारीरिक शिक्षा और खेल विभाग में विशेष व्याख्यान सत्र में बोल रहे थे।
डॉ. चौहान ने कहा कि कर्तव्य व्यक्ति की नैतिक प्रतिबद्धता को दर्शाता है। कार्य के प्रति समर्पण और उसे पूरा करने की तत्परता ही व्यक्ति को कर्तव्य की सक्रियता से जोड़ती है। उन्होंने कहा कि व्यक्ति का कर्तव्य के प्रति जुड़ाव नैतिक और कानूनी दो प्रकार से हो सकता है। नैतिक कर्तव्य, व्यक्ति को मानवीय भावना, अन्तःकरण की प्रेरणा और उचित कार्य की प्रवृत्ति से जोड़ती है। सत्य बोलना, संतान का संरक्षण और अच्छा व्यवहार इसके प्रमुख उदाहरण है। इसके विपरीत आचरण से व्यक्ति की आत्मा उसे धिक्कारती है और समाज में वह निंदा का पात्र बनता है।
उन्होंने प्रशिक्षु अध्यापकों से कहा कि उन्हें अपने कार्य स्थल पर नैतिक और कानूनी दोनाें प्रकार के कर्तव्यों के पालन में सामंजस्य बनाये रखना जरूरी होगा। वाह्य दबाव में आकर किया गया कार्य नैतिक कर्तव्यों में बाधा उत्पन्न करके खुद के जीवन में कलह की स्थिति पैदा कर सकता है। व्याख्यान सत्र में एमपीएड और बीपीएड के प्रशिक्षु छात्र उपस्थित रहे।