नई हिस्ट्री नहीं आसां…!


व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा

तीसरी बार वाले मोदी जी के विकसित भारत वाली नई हिस्ट्री में, नेहरू जी की छुट्टी होना तो तय है। वह स्वतंत्रता के बाद पहले प्रधानमंत्री की कुर्सी से तो जरूर उतार दिए जाएंगे। लेकिन, यह तो नई हिस्ट्री का आसान वाला हिस्सा है। नेहरू जी की कुर्सी पर किसे बैठाना है, यह तय करना फिर भी आसां नहीं होगा। इस पर चार सौ पार वालों के बीच ही बड़ा कन्फ्यूजन है। हिमाचल से चार सौ पार की उम्मीदवार कंगना राणावत बताती हैं कि पहले प्रधानमंत्री तो सुभाष चंद्र बोस थे, जो बाद में कहीं गायब हो गए। पर तमिलनाडु के अन्नामलाई की अपनी अलग ही लाइन है — महात्मा गांधी पहले प्रधानमंत्री थे।
यानी मोदी जी की दो बारियों में सिर्फ इतना तय हो पाया है कि नेहरू जी पहले प्रधानमंत्री नहीं थे। कौन था, यह तय करने के लिए तीसरी बारी चाहिए। अब चार सौ पार में अगर अन्नामलाई और कंगना दोनों शामिल हुए, तब तो तीसरी बारी में भी जल्दी से तय होना मुश्किल है। मोदी जी के घर में भी उत्तर-दक्षिण का झगड़ा छिड़ जाएगा, हालांकि होना चाहिए था पश्चिम और पूर्व का झगड़ा। पर यह भी तो पक्के राष्ट्रवाद की ही निशानी है कि पश्चिम और पूर्व की दावेदारी पर भी, उत्तर और दक्षिण ही झगड़ रहे होंगे। और गेंद आखिरकार, मोदी के पाले में होगी। अब, नेहरू जी के अलावा किसी और का मामला होता, तब तो मोदी जी एक्सटेंशन पर एक्सटेंशन ही देते रहते। पर नेहरू जी को तो एक्सटेंशन दे नहीं सकते और खुद अपने नाम पहले प्रधानमंत्री की कुर्सी कर नहीं सकते, जब तक कि 2014 को स्वतंत्रता वर्ष घोषित नहीं कर देते। लगता है कि नई हिस्ट्री में पहले प्रधानमंत्री की कुर्सी बहुत दिनों तक खाली ही रहेगी।

नई हिस्ट्री में जगहें नेहरू जी के अलावा भी बहुत-सी खाली रहेंगी। बाबरी मस्जिद ने बनने से लेकर गिराए जाने तक घेरे रखी, वह जगह। 2002 के गुजरात के दंगों में मरने वालों की जगह। गोरक्षकों के हाथों मॉब लिंचिंग के शिकार होने वालों की जगह। जेलों में ठूंसे गए सामाजिक कार्यकर्ताओं, पत्रकारों वगैरह से लेकर, विरोधी मंत्रियों से लेकर, मुख्यमंत्रियों तक की जगह। डेमोक्रेसी, धर्मनिरपेक्षता, संघवाद, स्वतंत्र प्रैस, तार्किकता, सचाई, आदि, से खाली करायी जगह। और हां! गांधी की हत्या के प्रसंग को मिटाने से खाली हुई जगह भी। तभी तो कहा — नई हिस्ट्री नहीं आसां…!!

(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक पत्रिका ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।)

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