हरीश के निशाने पर फिर हरक, कर्मकार बोर्ड का साइकिल प्रकरण उछाला

दोनों नेताओं के संबंधों में लंबे समय से रही है खटास
हरिद्वार लोकसभा से हरक सिंह भी चाह रहे हैं टिकट
देहरादून। हरिद्वार लोकसभा सीट से टिकट की खींचतान में उलझे पूर्व सीएम हरीश रावत व 2016 में हरीश रावत की सरकार गिरवाने के हीरो रहे पूर्व मंत्री हरक सिंह रावत फिर आमने-सामने होते दिख रहे हैं। हरिद्वार सीट से जहां हरीश रावत अपने बेटे को टिकट देने के लिए पूरा जोर लगाये हुए हैं वहीं हरक सिंह रावत अपने राजनीतिक वनवास को खत्म करने के लिए हरिद्वार से चुनाव लडक़र फिर से कांग्रेस की मुख्यधारा में शामिल होने की उम्मीद संजोकर चल रहे हैं।
उम्मीदवारी की यह जंग अंजाम तक पहुंचे, इससे पहले हरीश रावत ने हरक के कार्यकाल में हुए कथित भ्रष्टाचार का राग छेड़ दिया है। उन्होंने सोशल मीडिया पर एक लंबी-चौड़ी पोस्ट में वो साइकिल प्रकरण छेड़ दिया है, जो हरक सिंह रावत के श्रम मंत्री रहते हुए खासी चर्चाओं में आया था। उन्होंने लिखा है कि साइकिल आज गरीब का वाहन, लेकिन अमीर भी इसे पसंद कर रहे हैं।

उत्तराखंड में साइकिल की प्रसिद्धि के साथ कुछ कुप्रसिद्ध प्रसंग भी जुड़े हैं। वे लिखते हैं कि हाल-हाल में कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने सत्तारूढ़ दल के विधायक के घर के सामने प्रदर्शन किया और उनसे कहा कि अपने गोदाम में कैद साइकिलों को इनके वास्तविक हकदारों को दें। आगे लिखते हैं कि उन्हें ज्ञात हुआ है कि ऐसे कई विधायक हैं जिन्होंने श्रम मंत्रालय के तहत कर्मकार कल्याण बोर्ड के माध्यम से खरीदी गई साइकिलों का गोदामों में भंडारण करके रखा हुआ है। समाचार पढ़ने के बाद उन्हें स्मरण आया कि भाजपा के पूर्ववर्ती शासन काल में भी साइकिल घोटाला बड़े चर्चा में रहा है। तब कर्मकार बोर्ड को शर्मसार बोर्ड में बदल दिया गया था। श्रम मंत्रालय के कठोर परिश्रम से एक बिल तैयार किया, जिसको नाम भवन निर्माण एवं श्रम निर्माण कर्मी कल्याण अधिनियम नाम दिया गया। इसके तहत सभी प्रकार के सरकारी निर्माण कार्यों पर एक सेस 2 फीसद लगाया गया। जिससे एकत्र राशि का उपयोग इनमें काम करने वाले असंगठित क्षेत्रों, कर्मकारों, विनिर्माण कर्मियों के कल्याणार्थ किया जाता है। वह पैसा कर्मकार बोर्ड के कोष में जमा होता है। कर्मकार वोर्ड की पूरी कार्यप्रणाली का उल्लेख करते हुए रावत लिखते हैं कि उन्होंने मुख्यमंत्री बनने के बाद इसके सेस की जानकारी ली तो पता चला कि यहां कुछ हुआ ही नहीं।
उनके श्रम मंत्री हरीश चन्द्र दुर्गपाल ने बड़े तत्परता से इस काम को लिया, बोर्ड का गठन हमने नये सिरे से किया और जिम्मेदार अधिकारियों को रखा, पंजीकरण का अभियान प्रारंभ किया। जिसकी परिणति यह हुई कि इस कोष में उनके कार्यकाल के आखिर तक लगभग चार सौ करोड़ से ज्यादा की धनराशि जमा हो गई। बाद में नयी सरकार बनने के बाद 40 करोड़ से अधिक की इस धनराशि की बंदरबांट जो हुई वह सब जानते हैं। भाजपा के शासन काल में साइकिलों से लेकर के टार्च तक, सब कुछ नकली, कहां-कहां लोगों के घरों और गोदामों में रखी गई।

उन्होंने लिखा है कि उन्हें इस बात का गहरा दुख है कि जिस कोष से लाखों श्रमिकों के जीवन में थोड़े रोशनी व थोड़े खुशी ला सकते थे उसको भी लोगों ने घोटालों की भेंट चढ़ा दिया। हरक सिंह रावत के श्रम मंत्री रहे चर्चाओं में आये सेस का प्रकरण पर हरीश रावत लिखते हैं कि यदि अपने राज्य के अंदर हुए घोटालों की तह में जाएंगे तो इस क्षेत्र में हुआ घोटाला अपने आपमें घोटाला शब्द को भी शर्मिंदा कर देगा। इसलिए इसकी चर्चा आवश्यक है।

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