- नजूल भूमि पर नाजायज कब्जा है शांत हल्द्वानी में अशांति की वजह!
- रुद्रपुर, देहरादून, हल्द्वानी,रुड़की समेत कई शहरों के बाजार तक नजूल की भूमि पर बसे
- मदरसे पर बुलडोजर एक्शन , फिर हिंसा के बाद हालात सामान्य लेकिन अलर्ट मोड पर पुलिस प्रशासन
-डॉ. गोपाल नारसन , वरिष्ठ पत्रकार।
हल्द्वानी का बनभूलपुरा क्षेत्र वीरान है। घरों पर ताले लटके हैं। सड़कें खाली हैं, पर कहीं-कहीं तंग गलियों में कुछ लोग दिख जाते हैं। जगह-जगह पुलिस तैनात है। बीते 8 फरवरी को बनभूलपुरा क्षेत्र में अवैध अतिक्रमण को गिराने की कार्रवाई करने पहुंची नगर निगम व पुलिस की टीम को भारी हिंसा का सामना करना पड़ा। जिसके बाद इस मुस्लिम बहुल क्षेत्र में व्यापक स्तर पर भड़की हिंसा में कम से कम 6 लोग मारे गए, करीब 500 घायल हैं। वहीं, दर्जनों पुलिस कर्मी भी घायल हो गए, दंगाइयों ने पुलिस थाना तक फूंक डाला। जिसके बाद पुलिस प्रशासन को सख्ती बरतते हुए 5 हजार लोगों के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कर धरपकड़ की कार्यवाही करनी पड़ी। और पूरे इलाके को सील करना पड़ा।
मामला नुजूल भूमि पर वर्षो से अतिक्रमण का है जिसे हटाने के लिए हाई कोर्ट आदेश दे चुका है। इसी आदेश के अनुपालन में मुख्यमंत्री के निर्देश पर जब पुलिस प्रशासन व नगर निगम अतिक्रमण हटाने गया तो प्रभावित लोगों ने पुलिस व नगर निगम टीम पर पथराव शुरू कर दिया, जिस पर राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को दंगाइयों को देखते ही गोली मारने का आदेश देने पड़े। दरअसल, हल्द्वानी के बनभूलपुरा क्षेत्र में नगर निगम ने जेसीबी मशीन लगाकर अवैध मदरसा एवं नमाज स्थल को ध्वस्त कर दिया।
जैसे ही प्रशासन का बुलडोजर अवैध मस्जिद और मदरसे पर चला, वहां तनाव उत्पन्न हो गया और आक्रोशित लोगो ने कई वाहनों को आग के हवाले कर दिया, जेसीबी को तोड़ दिया और थाने तक मे आग लगा दी। हिंसक स्थिति को देखते हुए प्रशासन को कर्फ्यू लगाना पड़ा और दंगाइयों को देखते ही गोली मारने के आदेश देने पड़े। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने उच्च स्तरीय बैठक बुलाकर हालात की समीक्षा की तथा अराजक तत्वों से सख्ती से निपटने के लिए निर्देश जारी किए। इस घटना में कई पत्रकारों को भी चोटें आयी हैं। हल्द्वानी में भड़की हिंसा को नियंत्रित के लिए राज्य सरकार ने भी केंद्रीय गृह मंत्रालय से अतिरिक्त पुलिस बल की मांग की। गृह मंत्रालय की 4 अतिरिक्त केंद्रीय बलों की कंपनियां सरकार के पास उपलब्ध हैं। इस हिंसा में कई पुलिस कर्मियों और प्रशासन के अधिकारियों को चोटें आई हैं, जिन्हें विभिन्न अस्पतालों में भर्ती कराया गया है। नगर आयुक्त पंकज उपाध्याय ने बताया है कि मदरसा व नमाज स्थल पूरी तरह अवैध है। अवैध मदरसे एवं नमाज स्थल को सील कर दिया गया था और अब इसे ध्वस्त कर दिया गया है। इस दौरान सिटी मजिस्ट्रेट ऋचा सिंह, एसडीएम परितोष वर्मा व थाना वनभूलपुरा एसओ नीरज भाकुनी समेत भारी संख्या में पुलिस फोर्स तैनात रही। इस हिंसक वारदात के बाद हल्द्वानी में तनाव बना हुआ है। पुलिस बल लगातार गश्त कर रही है। बचाव में पुलिस ने आंसू गैस के गोले भी छोड़े हैं और लाठीचार्ज भी किया है। इस हिंसा पर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि प्रशासन की एक टीम कोर्ट के आदेश के बाद अतिक्रमण विरोधी अभियान के लिए गई थी। वहां असामाजिक तत्वों ने पुलिस के साथ विवाद किया। कुछ पुलिस कर्मियों और प्रशासनिक अधिकारियों को चोटें आईं है। पुलिस और केंद्रीय बलों की अतिरिक्त कंपनियां वहां भेजी गई हैं। हमने सभी से शांति बनाए रखने की अपील की है। कर्फ्यू लगाना पड़ा है। आगजनी करने वाले दंगाइयों और अतिक्रमणकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। मुख्यमंत्री लगातार मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक के साथ हल्द्वानी से जुड़े हालातों की समीक्षा कर रहे हैं। पुलिस को इस घटना से जुड़े अराजक तत्वों से सख़्ती से निपटने के स्पष्ट निर्देश दिए हैं। आगजनी पथराव करने वाले एक- एक दंगाई की पहचान की जा रही है, सौहार्द और शांति बिगाड़ने वाले किसी भी उपद्रवी को बख्शा नहीं जाएगा। सीएम धामी ने हल्द्वानी के लोगों से अनुरोध किया कि शांति व्यवस्था बनाए रखने में पुलिस- प्रशासन का सहयोग करें। मुख्य सचिव राधा रतूड़ी ने हल्द्वानी पहुंच कर पूरी घटना काजायजा लिया। वे उस अस्पताल में पहुंची जहां पर घायलों को भर्ती कराया गया है। मुख्य सचिव ने घायलों से पूरी घटना की जानकारी ली। उन्होंने डॉक्टरों से घायलों की बाबत बातचीत की। मुख्य सचिव ने घायल अधिकारियों और सिपाहियों के इलाज में किसी प्रकार की कोताही न बरतने के निर्देश दिए है।
बताया जा रहा है कि वनभूलपुरा में प्रशासन की कार्रवाई का विरोध करने के लिए सैकड़ों युवा, छोटे बच्चे और महिलाओं की ओर से पहले से तैयारी की गई थी। अतिक्रमण को हटाए जाने के दौरान बवाल को काबू करने में लगे पुलिस कर्मियों पर गलियों से स्थानीय लोगों की भीड़ ने जमकर पथराव किया था। उपद्रव के बीच अतिक्रमण को ध्वस्त करने की पुलिस प्रशासन द्वारा की जा रही कार्रवाई को रोककर अधिकारी और पुलिसकर्मी वापस लौटने लगे थे। तभी दंगाइयों ने प्रशासन और पुलिस के वाहनों में आग लगा दी। रास्ता बंद कर पुलिस और प्रशासन की टीम को रोकने की कोशिश की गई। दंगाइयों ने पुलिस की सिटी पेट्रोल कार और नगर निगम का ट्रैक्टर भी फूंक दिया। पत्थरबाजी में पुलिस के दर्जनों अफसर समेत 200 से अधिक जवान घायल हो गए। वहीं, पुलिस की कार्रवाई में भी 100 लोग घायल हुए है। एसडीएम हल्द्वानी परितोष वर्मा, एसडीएम कालाढुंगी रेखा कोहली, तहसीलदार सचिन कुमार समेत कई अफसर के घायल होने की जानकारी मिली है।मीडियाकर्मियों पर भी पथराव किया गया। कई पत्रकारों के कैमरे तोड़ दिए गए। कई पत्रकारों को बेस अस्पताल में उपचार के लिए भर्ती कराया गया। बवाल में करीब 12 से अधिक पत्रकार जख्मी हुए हैं। उत्तराखंड में वर्ष 2022 में कुल 915 दंगे दर्ज किए गए, जिनमें से मात्र एक सांप्रदायिक दंगा था, उसमें भी किसी के मरने की कोई जानकारी नहीं है। जबकि सन 2022 में देशभर में दंगों के कुल 37,816 मामले दर्ज किए गए। वर्ष 2021 में दंगो की संख्या 41,954 और वर्ष 2020 में दंगो की संख्या 37,816 थी। वर्ष 2022 में दंगों के 667 मामलों में पुलिस या प्रशासनिक कर्मचारियों पर हमला किया गया। सबसे ज्यादा हिंसा के मामले महाराष्ट्र में दर्ज किए गए। वर्ष 2022 में महाराष्ट्र में हिंसा के 8,218 मामले दर्ज किए गए थे। इनमें से 28 सांप्रदायिक और धार्मिक दंगे थे। वहीं 75 दंगों की वजह राजनीतिक मुद्दे रहे। 25 दंगे जातिगत कारणों से हुए थे। वर्ष 2022 में बिहार में दंगों के 4736 मामले दर्ज किए गए, इनमें से 60 की वजह सांप्रदायिक या धार्मिक कारण रहे। देश में तीसरे नंबर पर सबसे ज्यादा दंगे वर्ष 2022 में उत्तर प्रदेश में दर्ज किए गए। सन 2022 में यूपी में 4,478 मामले दंगों के दर्ज किए गए। इनमें एक भी दंगे का कारण सांप्रदायिक या धार्मिक नहीं था। यदि सरकार में बैठे अधिकारी हल्द्वानी की नुजूल भूमि पर कब्जाधारियों को लेकर समय से नियमितीकरण की कार्यवाही अम्ल में लाए होते तो सम्भवत: यह हिंसा न हुई होती।
नजूल भूमि को फ्रीहोल्ड कराने में सबसे फिसड्डी साबित हुआ हरिद्वार
सच यह है कि सरकार की नजूल सम्बन्धी नीतियों पर अधिकारी कुंडली मारकर बैठे हुए है। नजूल नीति की अवधि बढ़ने के बाद यह मुद्दा भी कब्जेधारकों के बीच और सत्ता के गलियारों में उठ रहा है। लगता है अधिकारी सरकार की नीति से बड़े हो गए हैं। धामी सरकार ने प्रदेश में नजूल भूमि के कब्जाधारकों को फ्रीहोल्ड कराने में लिए और समय दे दिया है। धामी कैबिनेट ने नजूल नीति 2021 की समय सीमा बढ़ा दी थी। नजूल भूमि पर काबिज लोगों को फ्रीहोल्ड करा मालिकाना हक देने सम्बन्धी धामी सरकार की विस्तारित अवधि लिए नजूल नीति के समयबद्ध क्रियान्वयन पर अब बहस छिड़ गई है। नजूल भूमि को फ्रीहोल्ड करा भूमिधरी अधिकार से जुड़ी नीति के तहत हजारों कब्जेदारों के मामले जिला प्रशासन व विकास प्राधिकरणों में अटके पड़े हैं। 2021 के बाद नजूल भूमि से जुड़े अहम जिलों में अधिकारी कितने मुस्तैद रहे। और सरकार की जनहित से जुड़ी इस नीति के प्रति कितने संवेदनशील रहे। यह सब कुछ जिलों से मिल रहे आंकड़ों से साफ हो जाता है। हरिद्वार जिला नजूल भूमि को फ्रीहोल्ड कराने में सबसे फिसड्डी साबित हुआ है। पट्टेधारकों को मालिकाना हक देने सम्बन्धी फाइल एक इंच भी आगे नहीं बढ़ सकी। हरिद्वार जिले में नजूल भूमि को फ्री होल्ड कराने सम्बन्धी सैकड़ों मामले आज भी लंबित है। हरिद्वार जिले के पट्टेधारकों के हित से जुड़े फ्रीहोल्ड मामलों पर प्रशासन/प्राधिकरण की ओर से ठंडा रुख अपनाना भी कई सवाल खड़े कर रहा है। उधमसिंहनगर जिला प्रशासन ने लगभग 500 से अधिक पट्टेधारकों को मालिकाना हक देते हुए नजूल भूमि फ्री होल्ड की है। इस जिले में 24 हजार से अधिक परिवार नजूल की भूमि पर काबिज हैं। इसी अवधि में 2021 के बाद नैनीताल जिले में 400 से अधिक मामलों में नजूल भूमि फ्रीहोल्ड कर सरकारी खजाने में धनराशि जमा करवाई गई। ऐसा ही हल्द्वानी में भी हो सकता था,जो नही किया गया। प्रदेश में करीब दो लाख लोग नजूल भूमि पर बसे हुए हैं। रुद्रपुर में करीब 24 हजार परिवार नजूल भूमि पर बसे हुए हैं। इसके साथ ही देहरादून, हल्द्वानी,रुड़की समेत अन्य शहरों के कई बाजार तक नजूल की भूमि पर बसे हैं। जिससे हम कह सकते है कि नजूल भूमि का नियमितिकरण उत्तराखंड का एक बड़ा मुद्दा है,जो हल्द्वानी घटना का भी कारण बना है।