चमनलाल महाविद्यालय में तीन दिवसीय मानवाधिकार प्रशिक्षण कार्यक्रम
लण्ढौरा (हरिद्वार)। चमनलाल महाविद्यालय, लण्ढौरा में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) नई दिल्ली द्वारा संपोषित तीन दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम की विधिवत शुरूआत महाविद्यालय प्रबंध समिति के अध्यक्ष राम कुमार शर्मा, कोषाध्यक्ष अतुल हरित एवं प्राचार्य डॉ. सुशील उपाध्याय के साथ मुख्य अतिथि आरएसएस के प्रांत कार्यवाह दिनेश सेमवाल द्वारा माँ सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुई। कार्यक्रम के आरंभ में प्रशिक्षण कार्यक्रम के समन्वयक डॉ. नीशू कुमार ने कार्यक्रम की विस्तृत रूप रेखा प्रस्तुत करते हुए अतिथियों एवं प्रतिभागियों का स्वागत किया।
समारोह के मुख्य अतिथि, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, उत्तराखण्ड प्रान्त कार्यवाह श्री दिनेश सेमवाल ने कहा कि चमनलाल महाविद्यालय शिक्षा के क्षेत्र में उस प्रकाश पुंज की तरह कार्य कर रहा है जो कि क्षेत्र की दशा एवं दिशा को परिवर्तित करने वाला है। स्वर्णिम भारत की प्राचीन तस्वीर का साक्षात्कार कराते हुए श्री सेमवाल ने कहा कि जिन अधिकारों पर हम आज चर्चा कर रहे है उनका वर्णन भारतीय ग्रन्थों में पूर्व में ही वर्णित है। उन्होंने कहा कि पाश्चात्य शिक्षा एवं पाश्चात्य प्रभाव के कारण वर्तमान भारतीय पीढ़ी ने अपने संस्कारों, सांस्कृतिक मूल्यों एवं पूर्वजों के संस्कारों से मुंह मोड़ लिया है ।भारत आज विश्वगुरू बनने की राह पर अग्रसर है। उन्होंने कहा कि अगर विश्व में शांति एवं सुरक्षा चाहते हो तो उसका एक मार्ग केवल भारत से ही निकलता है।
अपने उद्बोधन में प्रांत कार्यवाह ने कहा कि हम उस स्वर्णिम भारत के निवासी है जहां महिलाओं को देवी का दर्जा पूर्व में प्राप्त था। आज वहां हम महिला अधिकारों की चर्चा कर रहे है। इसका केवल एक मात्र कारण पाश्चात्य सभ्यता का प्रभाव है। ‘‘यत्र नार्यसतु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता’’। वैदिक मूल्यों एवं संस्कारों पर सवार होकर ही भरत विश्व में अपनी धाक जमा पाएगा।
कॉलेज प्रबंध समिति के अध्यक्ष राम कुमार शर्मा ने कहा कि समाज के प्रत्येक मनुष्य तक संस्कारयुक्त, गुणवत्तापूर्ण एवं सर्वागीण विकास को समर्पित शिक्षा पहुंचाकर ही भारतीयों के सम्पूर्ण अधिकारों को सुरक्षित किया जा सकता है।
मुख्य वक्ता श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर डॉ. डी.के.पी. चौधरी, ने अपने कहा कि अधिकारों की उत्पत्ति का सर्वप्रथम प्रयास 500 ईसा पूर्व में प्राप्त होता है। मानव अधिकारों के प्रथम घोषणा पत्र में सर्वाधिक योगदान महिलाओं का है। वास्तव में नारी सशक्तिकरण एवं मानवीय अधिकारों को संपोषित करके कि श्रेष्ठ भारत की संकल्पना को साकार कर सकते है। उन्होंने कहा कि पाश्चात्य उपभोग सिद्धान्त को स्पष्ट करते हुए बताया कि अधिकार किसके लिए है और अधिकारों का उपयोग, कौन, कितना और कैसे कर सकता है। उन्होंने कहा कि अधिकारों के उपभोग में राज्यों की भूमिका का सदैव परिवर्तित होती रहती है।
डॉ. चौधरी ने कहा कि मनुष्य को मनुष्य होने के नाते जो अधिकार प्राप्त होते हैं वह मानवाधिकार है। अधिकारों का अलग-अलग वर्ग है। दुनिया राजनीतिक तौर पर बंटी हुई है। पहली दुनिया में जो चीजें दिखती है, वह चौथी, पांचवीं दुनिया में नहीं दिखती है। नीतियां सही बनी हुई है लेकिन धरातल पर उतरते ही बेकार हो जाती हैं।
राजकीय महाविद्याल मंगलौर के प्राचार्य डॉ. तीर्थ प्रकाश ने मानवाधिकार का अर्थ स्पष्ट करते हुए कहा कि मानव के अधिकारों की प्रथम बार घोषणा मैग्नाकार्टा की घोषणा से माना जाता है। वहीं से आधुनिक मानव अधिकारों पर चर्चा शुरू हुई।
उन्होंने कहा कि महिलाओं के पिछड़े होने का कारण परम्परा एवं आधुनिकता के बीच विरोध उत्पन्न होना है। अगर महिलाओं एवं बच्चों के सन्दर्भ में देखा जाये, तो उनमें अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता नहीं है। सदियों से महिलाओं के साथ भेदभाव होता है उनके निर्णय आज भी पुरुष द्वारा लिये जाते है जिससे महिलाओं की स्थिति दयनीय बनी है। पुरुषों की मानसिकता यह है कि हमारे अधिकार खत्म हो जायेंगे। उन्होंने कहा कि महिलाएं आज भी अपनी स्वतंत्रता एवं आत्मनिर्भरता के मध्य झूल रही है।
कार्यक्रम की विशिष्ट वक्ता डॉ. अपेक्षा चौधरी ने कहा कि केवल कानून बनने से अधिकार सुरक्षित नहीं होते है। परिवार में भी अधिकार सुरक्षित नहीं होता, ऐसा ही समाज में भी होता है। हम एक डर का माहौल बनाकर रखते हैं। तमाम कानूनों के बावजूद बंधुआ मजदूरी और बाल मजदूरी अब भी चुनौती बनी हुई है। आज भी ईंट के भट्टों पर बंधुआ मजदूर मिलते है। ज्यादातर लोग अपनी परेशानियों के चलते काम करते है। दूसरा पक्ष इस मजबूरी का लाभ उठाता है। इस एक्ट में डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट की जिम्मेदारी निश्चित की गई है। एक एक्ट के तहत बच्चे खतरनाक कार्य में काम नहीं कर सकते है। जो कार्य खतरनाक नहीं है वहां भी कुछ प्रतिबंध के साथ काम कर सकते है।
विशिष्ट वक्ता डॉ. कल्पना भट्ट ने कहा कि न्याय एवं स्वतंत्रता का अधिकार दिये बिना मानवाधिकार की कल्पना भी नहीं कर सकते है। डॉ. भट्ट ने अधिकारों के प्रकारों को स्पष्ट करते हुए बताया कि प्राकृतिक, नैतिक एवं विधिक अधिकार हमें पहले ही प्रदान किये गये है। इन अधिकारों का उचित प्रयोग तभी होगा जब हम मनुष्य से मनुष्यता का व्यवहार करेंगे। भारत में मानवाधिकार की स्थिति पर प्रकाश डालते हुए बताया कि मानवाधिकार भारतीय संविधान नींव के आधार स्तम्भ के रूप में स्थित है। एनएचआरसी एवं एसएचआरसी के प्रावधानों की तुलना भारतीय संविधान में वर्णित सभी संवैधानिक प्रावधानों से करते हुए डॉ. भट्ट ने स्पष्ट किया कि भारतीय संविधान दूरदर्शी एवं जनकल्याण से युक्त सोच का परिणाम है।
महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. सुशील उपाध्याय जी ने सभी सम्मानित अतिथियों के लिए स्वागत उद्बोधन में महाविद्यालय की उपलब्धियां एवं विगत वर्षों की प्रगतियों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया। डॉ. उपाध्याय ने कहा कि महाविद्यालय की पहली पीढ़ी के अनेक छात्रों ने नेट तथा जेआरएफ पास किया।विश्वविद्यालय की टॉपर लिस्ट में 7 बच्चे है। महाविद्यालय में आधे से अधिक छात्र अल्पसंख्यक हैं। महाविद्यालय में बीते वर्षों में 50 से अधिक सेमीनार आयोजन किया जा चुका है। कार्यक्रम का संचालन डॉ. सर्वेश त्रिपाठी ने किया। कार्यक्रम में डॉ. हिमांशु, डॉ. अनीता, नवीन कुमार, डॉ. श्वेता, डॉ. देवपाल, डॉ. किरण शर्मा, डॉ. पुनीता, विपुल सिंह आदि उपस्थित रहे।