क्यों उभर नहीं पा रही कांग्रेस!

  • कांग्रेस का जन्म 22 दिसंबर साल 1885 में एलन ऑक्टेवियन ह्यूम ने किए
  • शुरुआत से करीब एक शताब्दी से ज्यादा समय तक गौरवशाली रहा है पार्टी का इतिहास
  • साल 2014 के बाद से भाजपा के उदय के साथ लगातार गिर रहा कांग्रेस का ग्राफ

-डॉ गोपाल नारसाज , रुड़की।      

जिस भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का स्वर्णिम इतिहास रहा हो, देश के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास के साथ जिस कांग्रेस का नाम जुड़ा हुआ हो, जस कांग्रेस (Congress) का जन्म 22 दिसंबर साल 1885 में हुआ हो और जिस कांग्रेस के संस्थापक एलन ऑक्टेवियन ह्यूम हो, वह कांग्रेस आज बैशाखियों के बिना खड़ी क्यों नहीं हो पा रही है। कांग्रेस के इतिहास में झांके तो कांग्रेस के संस्थापक एलेन ओक्टेवियन ह्यूम का जन्म साल 1829 को इंग्लैंड में हुआ था। वह अंग्रेजी  की सबसे प्रतिष्ठित ‘बंगाल सिविल सेवा’ में पास होकर साल 1849 में ब्रिटिश सरकार के एक अधिकारी बने। साल 1857 की गदर के समय वह इटावा के कलेक्टर थे। लेकिन एओ ह्यूम ने खुद ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आवाज उठाई और साल 1882 में पद से अवकाश ले लिया और कांग्रेस यूनियन का गठन किया। उन्हीं की अगुआई में मुंबई में पार्टी की पहली बैठक हुई थी।

शुरुआती वर्षों में कांग्रेस पार्टी ने ब्रिटिश सरकार के साथ मिल कर भारत की समस्याओं को दूर करने की कोशिश की और प्रांतीय विधायिकाओं में हिस्सा भी लिया। लेकिन साल 1905 में बंगाल के विभाजन के बाद पार्टी का रुख कड़ा हुआ और अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आंदोलन शुरू हए। इसी बीच महात्मा गांधी भारत लौटे और उन्होंने खिलाफत आंदोलन शुरू किया। शुरू में बापू ही कांग्रेस के मुख्य विचारक रहे। इसे लेकर कांग्रेस में अंदरुनी मतभेद गहराए। चित्तरंजन दास, एनी बेसेंट, मोतीलाल नेहरू जैसे नेताओं ने अलग स्वराजपार्टी बना ली। साल 1929 में ऐतिहासिक लाहौर सम्मेलन में जवाहर लाल नेहरू ने पूर्ण स्वराज का नारा दिया। पहले विश्वयुद्ध के बाद पार्टी में महात्मा गांधी की भूमिका बढ़ी, हालांकि वो आधिकारिक तौर पर इसके अध्यक्ष नहीं बने, लेकिन कहा जाता है कि सुभाष चंद्र बोस को कांग्रेस से निष्कासित करने में उनकी मुख्य भूमिका थी।
स्वतंत्र भारत के इतिहास में कांग्रेस सबसे मजबूत राजनीतिक ताकत के रूप में उभरी। महात्मा गांधी की हत्या और सरदार पटेल के निधन के बाद जवाहरलाल नेहरू के करिश्माई नेतृत्व में पार्टी ने पहले संसदीय चुनावों में शानदार सफलता पाई और ये सिलसिला साल 1967 तक लगातार चलता रहा। पहले प्रधानमंत्री के तौर पर जवाहरलाल नेहरू ने धर्मनिरपेक्षता, आर्थिक समाजवाद और गुटनिरपेक्ष विदेश नीति को सरकार का मुख्य आधार बनाया जो कांग्रेस पार्टी की पहचान बनी। नेहरू की अगुवाई में साल 1952, साल 1957 और साल 1962 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने अकेले दम पर बहुमत हासिल करने में सफलता पाई। साल 1964 में जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद लाल बहादुर शास्त्री के हाथों में कमान सौंप गई लेकिन उनकी भी साल 1966 में ताशकंद में रहस्यमय हालात में मौत हो गई। इसके बाद पार्टी की मुख्य कतार के नेताओं में इस बातको लेकर जोरदार बहस हुई कि अध्यक्ष पद किसे सौंपा जाए। आखिरकार पंडित नेहरु की बेटी इंदिरा गांधी के नाम पर सहमति बनी।
देश की आजादी के संघर्ष से जुड़े सबसे मशहूर और जाने-माने लोग इसी कांग्रेस का हिस्सा थे। गांधी-नेहरू से लेकर सरदार पटेल और राजेंद्र प्रसाद तक आजादी की लड़ाई में आम हिंदुस्तानियों की नुमाइंदगी करने वाली पार्टी ने देश को एकता के सूत्र में बांधने की कोशिश की थी। एलेन ओक्टेवियन ह्यूम साल 1857 के गदर के वक्त इटावा के कलेक्टर थे। ह्यूम ने खुद ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आवाज उठाई और 1882 में पद से अवकाश लेकर कांग्रेस यूनियन का गठन किया। उन्हीं की अगुआई में बॉम्बे में पार्टी की पहली बैठक हुई थी। व्योमेश चंद्रबनर्जी इसके पहले अध्यक्ष बने। शुरुआती वर्षों में कांग्रेस पार्टी ने ब्रिटिश सरकार के साथ मिलकर भारत की समस्याओं को दूर करने की कोशिश की और इसाले प्रांतीय विधायिकाओं में हिस्सा भी लिया लेकिन 1905 में बंगाल के विभाजन के बाद पार्टी का रुख कड़ा हुआ और अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आंदोलन शुरू हुए। दादाभाई नौरोजी और बदरुद्दीन तैयबजी जैसे नेता कांग्रेस के साथ आ गए थे।
आजादी के बाद साल 1952 में देश के पहले चुनाव में कांग्रेस सत्ता में आई। साल 1977 तक देश पर केवल कांग्रेस का शासन था। लेकिन साल 1977 में हुए चुनाव में जनता पार्टी ने कांग्रेस से सत्ता की कुर्सी छीन ली थी। हालांकि, तीन साल के अंदर ही साल 1980 में कांग्रेस वापस गद्दी पर काबिज हो गई। साल 1989 में कांग्रेस को फिर हार का सामना करना पड़ा। दादा भाई नौरोजी 1886 और 1893 में कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। साल 1887 में बदरुद्दीन तैयबजी तो साल 1888 में जॉर्ज यूल कांग्रेस के  अध्यक्ष बने थे। साल 1889 से साल 1899 के बीच विलियम वेडरबर्न, फिरोजशाह मेहता, आनंद चार्लू, अल्फ्रेड वेब, राष्ट्रगुरु सुरेंद्रनाथ बनर्जी, आगा खान के अनुयायी रहमतुल्लाह सयानी, स्वराज का विचार देने वाले वकील सी शंकरन नायर, बैरिस्टर आनंद मोहन बोस और सिविल अधिकारी रमेशचंद्र दत्त कांग्रेस अध्यक्ष रहे। इसके बाद हिंदू समाज सुधारक सर एनजी चंदावरकर, कांग्रेस के संस्थापकों में शुमार दिनशॉ एडुलजी वाचा, बैरिस्टर लालमोहन घोष, सिविल अधिकारी एचजेएस कॉटन, गरम दल व नरम दल में पार्टी के टूटने के वक्त गोपाल कृष्ण गोखले, वकील रासबिहारी घोष, शिक्षाविद मदनमोहन मालवीय, बीएन दार, सुधारक रावबहादुर रघुनाथ नरसिम्हा मुधोलकर, नवाब सैयद मोहम्मद बहादुर, भूपेंद्र नाथ बोस,ब्रिटेन के हाउस ऑफ लॉर्ड्स में पहले भारतीय सदस्य बने एसपी सिन्हा, एसी मजूमदार, पहली महिला कांग्रेस अध्यक्ष एनी बेसेंट, सैयद हसन इमाम और नेहरू परिवार के मोतीलाल नेहरू साल 1900 से साल 1919 के बीच कांग्रेस अध्यक्ष रहे।
साल 1915 में अफ्रीका से लौटकर भारत आए मोहनदास करमचंद गांधी का प्रभाव कांग्रेस की विचारधारा व आंदोलन तय करने में साल 1920 के आसपास से साफ दिखना शुरू हो गया था। जो गांधी के जीवन के बाद तक भी बना हुआ है। साल 1920 से भारत की आजादी अर्थात साल 1947 के बीच के युग में कांग्रेस अध्यक्ष पंजाब केसरी लाला लाजपत राय थे, जिन्होंने साल 1920 के कलकत्ता अधिवेशन की अध्यक्षता की। स्वराज संविधान बनाने में अग्रणी रहे सी. विजयराघवन चारियार, जामिया मिल्लिया के संस्थापक हकीम अजमल खान, देशबंधु चितरंजन दास, मोहम्मद अली जौहर, शिक्षाविद मौलाना अबुल कलाम आजाद कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। साल 1924 में बेलगाम अधिवेशन की अध्यक्षता महात्मा गांधी ने की थी और यहां से कांग्रेस के ऐतिहासिक स्वदेशी, सविनय अवज्ञा और असहयोग आंदोलनों की नींव पड़ी थी। सरोजिनी नायडू, मद्रास के एडवोकेट जनरल रहे एस श्रीनिवास अयंगर, मुख्तार अहमद अंसारी कांग्रेस अध्यक्ष रहे।
गांधी के अनुयायी जवाहरलाल नेहरू साल 1929 में पहली बार कांग्रेस अध्यक्ष बने थे सरदार वल्लभभाई पटेल, नेली सेनगुप्ता, राजेंद्र प्रसाद, नेताजी सुभाष चंद्र बोस और गांधी के अनुयायी जेबी कृपलानी भारत को आजादी मिलने तक कांग्रेस अध्यक्ष रहे। साल 1948 और साल 1949 में पट्टाभि सीतारमैया कांग्रेस के अध्यक्ष रहे और यही वह साल था जब गांधी की हत्या हो चुकी थी। महात्मा गांधी का प्रभाव आज तक भी भारतीय राजनीति पर है, लेकिन उनकी हत्या के बाद कांग्रेस का नेहरू युग शुरू हुआ। पहले प्रधानमंत्री बन चुके पंडित जवाहरलाल नेहरू के समय में जिस साल संविधान लागू हुआ। साल 1950 में कांग्रेस के अध्यक्ष साहित्यकार पुरुषोत्तम दास टंडन थे। साल 1951 से साल 1954 तक खुद नेहरू अध्यक्ष रहे। पंडित नेहरू युग में 1955 से साल 1959 तक यूएन ढेबर कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। साल 1959 में पहली बार कांग्रेस अध्यक्ष इंदिरा गांधी बनी थी। साल 1960 से साल 1963 तक नीलम संजीव रेड्डी, नेहरू के निधन के साल 1964 से साल 19 67 तक कामराज कांग्रेस अध्यक्ष रहे। हालांकि नेहरू का निधन 1964 में हो चुका था, लेकिन कांग्रेस का अगला इंदिरा गांधी युग लाल बहादुर शास्त्री की मौत के बाद शुरू होता है।
साल 1966 में पहली बार देश की पहली और इकलौती महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी बनीं। कामराज के साथ उनका सत्ता संघर्ष काफी चर्चित रहा। इसके बाद ही इंदिरा की लीडरशिप और उनके ‘आयरन लेडी’ होने के ख्याति मिलने लगी। इंदिरा गांधी के प्रभाव के समय में साल 1968 से साल 1969 तक निजलिंगप्पा,1970 से साल 1971 तक बाबू जगजीवन राम, 1972 से साल 1874 तक शंकर दयाल शर्मा और साल 1975 से साल 1977 तक देवकांत बरुआ कांग्रेस अध्यक्ष रहे। साल1977 से साल 1978 के बीच केबी रेड्डी ने कांग्रेस को संभाला लेकिन इमरजेंसी के बाद कांग्रेस टूटी तो साल 1978 में इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस की अध्यक्ष वे स्वयं बनीं। कुछ समय को छोड़ कर 1984 में अपनी हत्या के पहले तक इंदिरा ही अध्यक्ष रहीं। कांग्रेस ने करीब 15 साल का इंदिरा गांधी युग देखा और इसके बाद राजीव गांधी युग शुरू हुआ, कांग्रेस अध्यक्ष इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी प्रधानमंत्री भी बने और साल 1985 में कांग्रेस के अध्यक्ष भी बन गए थे। जब प्रधानमंत्री व कांग्रेस अध्यक्ष राजीव गांधी की हत्या हुई तब फिर कांग्रेस के सामने अध्यक्ष को लेकर संकट खड़ा हो गया था, क्योंकि शुरुआत में सोनिया गांधी ने सक्रिय राजनीति में आने में रुचि नहीं दिखाई थी। इसी कारण साल 1992 से साल 1996 तक पीवी नरसिम्हा राव ने कांग्रेस का नेतृत्व किया। साल 1996 से साल 1998 तक गांधी परिवार के वफादार सीताराम केसरी अध्यक्ष रहे।

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