डॉ सविता वर्मा गज़ल
उत्तर भारत मे ही नही अपितु सुदूर दक्षिण से लेकर बिहार तक और विदेशों में इस साल गोपाल नारसन द्वारा परोसा गया साहित्य चर्चाओं में रहा।आध्यात्मिक सक्रियता के साथ ही उनकी हरदिन लिखी गई कविता ने जहां मन मोहे रखा वही विविधताओं का शहर रुड़की उनकी नई पुस्तक भी सन 2023 के नाम रही।हिंदी की अंतरराष्ट्रीय पुरातन संस्था विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ भागलपुर बिहार ने हिंदी साहित्य में विशेष सेवा,सारस्वत साधना व कलात्मक सोच के लिए श्रीगोपाल नारसन को रामधारी सिंह दिनकर सम्मान से विभूषित किया तो न्यायमूर्ती राजेश टण्डन व न्यायमूर्ति यू सी ध्यानी ने उन्हें मानवाधिकार संरक्षण रत्न सम्मान 2023 से विभूषित किया।उत्तराखंड के साहित्यकार श्रीगोपाल नारसन की विभिन्न साहित्यिक विधाओ में अभी तक 21 पुस्तके प्रकाशित हो चुकी हैं।जिनमे ‘नया विकास’,’मीडिया को फांसी दो’,’खामोश हुआ जंगल’, ‘प्रवास’,’तिनका तिनका संघर्ष,’ ‘पदचिन्ह’, चैक पोस्ट ,श्रीमद्भागवत गीता शिव परमात्मा उवाच,दादी जानकी, आबू तीर्थ महान ,विविधताओं का शहर रुड़की, ईश्वरीय गुलदस्ता आदि शामिल है। उनके साहित्यिक योगदान पर भी दो पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है,जिनमे ‘गोपाल नारसन और उनका साहित्य’ व ‘गोपाल नारसन का आध्यात्मिक चिंतन’ शामिल है।गोपाल नारसन के शब्दकोश में “खाली समय’ शब्द नहीं है,क्योंकि वे कभी खाली नही रहते।बड़े सवेरे 4 बजे उठकर रात्रि 11 बजे तक की उनकी दैनिक दिनचर्या में कभी कोई खाली समय नही होता। पीड़ित उपभोक्ताओं को न्याय दिलाने के लिए वकालत के क्षेत्र में सक्रिय गोपाल नारसन ब्रह्माकुमारीज के माध्यम से आध्यात्मिक सेवा कार्य भी करते है। इसके बाद जो भी समय उन्हें मिलता है , उस समय का सदुपयोग गोपाल नारसन साहित्य सृजन कर अपने जीवन को सार्थक बना रहे हैं।जीवन से जुड़े अनेक विषयों पर काव्य की रचना करना भी उनकी दिनचर्या में शामिल है। उन्हें डॉ आंबेडकर फैलोशिप सम्मान, विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ का सर्वोच्च ‘भारत गौरव ‘सम्मान ,भारत नेपाल साहित्यिक मैत्री सम्मान ,मानसश्री सम्मान आदि मिल चुके है।
आज के समय मे जहां लोग एक-दूसरे से केवल स्वार्थसिद्धि हेतु ही बात करते हैं , वहीं आज के इस दौर में हर सुबह अनेक माध्यमों से चाहे वह फेसबुक हो, मैसेंजर हो या फिर व्हाट्सएप ,इंस्टाग्राम व ट्यूटर आदि पर ही निस्वार्थ परमात्मा से जुड़े प्रेरणादायक व परोपकार की भावना से ओतप्रोत आध्यात्मिक सन्देश मौलिकता के साथ भेजते है गोपाल नारसन, जो देवभूमि उत्तराखंड के अभियंता नगरी रुड़की के निवासी है और साथ साथ ही मुख्यमंत्री के प्रवक्ता भी रहे है।उनकी गिनती वरिष्ठ साहित्यकार के रूप में होती हैं।देश की आजादी के अमर शहीद जगदीश प्रसाद वत्स के भांजे गोपाल नारसन ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी प्रकोष्ठ द्वारा तीन दशक पूर्व संचालित किए गए चरित्र निर्माण शिविरों में सक्रिय भूमिका निभाई, साथ ही राजकीय महाविद्यालय देवबंद के छात्र संघ अध्यक्ष के रूप में उन्होंने अपनी राजनीतिक शुरुआत की।
मां शारदे की अनुकम्पा से गोपाल नारसन एक सरल व्यक्तित्व के धनी तो हैं ही साथ हीइनमें सादगी,विन्रमता, धैर्य,ईमानदारी, कर्मठता, अपनत्व की भावना भी कूट-कूट कर भरी हैं। गोपाल नारसन को उत्तराखंड की शान व साहित्य से लेकर धार्मिक,राजनीतिक आदि समस्त ज्ञान का भंडार व बहुमुखी प्रतिभा के धनी कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति न होगी।
व्यवसाय से उपभोक्ता राज्य आयोग के वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में विगत 32 वर्षों से उपभोक्ता जनजागरूकता के क्षेत्र में अपनी राष्ट्र व्यापी भूमिका वे निभा रहे है। गोपाल नारसन उपभोक्ता कानून की गहन जानकारी रखते हैं और आकाशवाणी , प्रिंट मीडिया के साथ ही जगह-जगह जाकर ‘जागो ग्राहक जागो ‘की अलख जगाना उनकी नियमित कार्य शैली का हिस्सा है ,ताकि लोग अपने उपभोक्ता अधिकारों के प्रति जागरूक होकर शोषण व उत्पीड़न से स्वयं को बचा सके।
अनेक शिक्षण संस्थान उन्हें अपने यहां मेहमान प्रवक्ता के रूप में आमंत्रित करते हैं, जिससे कानून की जानकारी स्कूल कॉलेज के छात्र व छात्राओं को आसानी से मिल सके।
वे निस्वार्थ भाव से कानून की सेवा करने के कारण ही विभिन्न शिक्षण संस्थाओं व विधिक सेवा प्राधिकारण के शिविरो में उपभोक्ता कानून विशेषज्ञ के रूप में जाने जाते हैं।एक साहित्यकार के रूप में भी डॉ. गोपाल नारसन किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं । उनके साहित्यिक योगदान पर भी दो पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है,जिनमे ‘गोपाल नारसन और उनका साहित्य’ व ‘गोपाल नारसन का आध्यात्मिक चिंतन’ शामिल है।
जीवन से जुड़े अनेक विषयों पर काव्य की रचना करना उनकी सबसे बड़ी खूबी है।
एक बेबाक वक्ता के रूप में टीवी चैनलों पर बहस करते हुए वे
बहुत ही संयमित, मर्यादित रूप से , सदव्यवहार के धनी गोपाल नारसन साफ गोई से अपनी बात को रखते हैं।कानफोड़ू टीवी डिबेट को वे अच्छा नही मानते।दूसरे का सम्मान करते हुए अपनी बात मजबूती से रखना उन्हें अच्छी तरह आता है।
पत्रकारिता के क्षेत्र में भी एक वरिष्ठ पत्रकार के रूप में उनकी गिनती होती है।देश विदेश की अनेक पत्र और पत्रिकाओं में उनके लेख आए दिन प्रकाशित होते रहे हैं। उन्हें अनेक सम्मानो से विभूषित किया जा चुका है।जिनमे डॉ आंबेडकर फैलोशिप सम्मान, विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ का सर्वोच्च ‘भारत गौरव ‘सम्मान ,भारत नेपाल साहित्यिक मैत्री सम्मान आदि शामिल है।श्री गोपाल नारसन वर्तमान में “विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ भागलपुर,बिहार” के प्रतिकुलपति भी हैं।जो उनके हिंदी प्रेम व अथक परिश्रम का परिचायक हैं।
“अंतर्राष्ट्रीय सिद्धार्थ साहित्य कला” सिद्धार्थनगर उत्तर प्रदेश द्वारा उनको अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी प्रदान किया गया हैं।
खेलों के क्षेत्र में भी उन्हें बचपन से ही रुचि रही है तथा विद्यार्थी जीवन से ही वे एक अच्छे खिलाड़ी रहे। गोपाल नारसन ने पांच किमी पैदल चाल में राज्य स्तर पर स्वर्ण पदक प्राप्त किया हुआ है।दौड़ व तैराकी में भी इनकी भागेदारी रही हैं। उत्तराखंड व पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक सक्रिय समाज सेवी के रूप में उनकी अच्छी खासी पहचान है।प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के मीडिया विंग के आजीवन सदस्य के रूप में वे रूहानियत की राह पर भी उतने ही चलते नज़र आते है,जितने आमजन के चेहरे पर मुस्कान लाने की मुहिम में वे जुटे है।तभी तो जिस प्रकार साहित्य से आध्यत्मिकता व सामाजिकता के सफर में वे निरन्तर कार्य कर अपनी एक विशिष्ट पहचान बना चुके हैं,उसी प्रकार राजनीति क्षेत्र में भी उनकी पहचान कम नही है।उत्तराखंड में तिवारी शासनकाल में वे बीस सूत्रीय कार्यक्रम के राज्य सदस्य रहे और श्रेष्ठतम अवदान के लिए उन्हें मुख्यमंत्री ने सरकारी स्तर पर सम्मानित किया था।विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ ने रामधारी सिंह दिनकर सम्मान के लिए गोपाल नारसन को चयनित कर यह सिद्ध कर दिया है कि गोपाल नारसन भी रामधारी सिंह दिनकर परम्परा के एक ऐसे हिंदी सेवी साहित्यकार है जिनसे देश व समाज को बड़ी उम्मीदें है,जो वर्ष 2024 में पूरी होगी।