विपक्ष ( opposition ) वाले ये ठीक नहीं कर रहे हैं। मामला ठीक से न देखा, न समझा, बस लगे जवाब दो, संसद की सुरक्षा में सेंध लगने का जवाब दो, का शोर मचाने। जवाब भी पीएम (PM) या एचएम से कम का सुनने को राजी नहीं। और जब बेचारे सभापति ने दर्जनों के हिसाब से सस्पेंड कर दिया, तो इसका शोर कि अन्याय हो गया! कि सुरक्षा चूक के लिए निलंबित हुए अधिकारी कुल आठ; चूक पर सवाल उठाने पर निलंबित सांसद पंद्रह! एक और कर देते, तो कम से कम एक अधिकारी पर दो सांसदों का सीधा अनुपात तो बन जाता।
खैर! विपक्ष के मामला ठीक से नहीं समझने पर लौटें। विपक्ष वाले नाहक सुरक्षा चूक, सुरक्षा चूक का शोर मचा रहे हैं। वे यही पकडऩे में चूक गए कि संसद में जो कुछ हुआ, लोकसभा में दर्शक दीर्घा से जो भी कूद-फांद हुई, वह सब किस दिन हुआ। जी हां! न पहले न बाद में, ठीक 13 दिसंबर को हुआ। संसद पर हमले की 22वीं सालगिरह के मौके पर! क्या समझे? हमला, सुरक्षा चूक, वगैरह जैसा कुछ था ही नहीं। वह तो सालगिरह का आयोजन था — एक ईवेंट। एकदम हानिरहित, बल्कि मनोरंजक। थोड़ा सस्पेंस, थोड़ा एक्साइटमेंट और अंत में रहस्यमय रंगीन धुंआ। पर विपक्षी सांसदों ने सारा मजा ही खराब कर दिया। कलाकारों को पकड़ा तो पकड़ा, बेचारों की पिटाई भी कर दी। और अब पीएम से जवाब भी चाहिए। सभापति जी ने क्या गलत किया, जो उन सांसदों निलंबित कर के घर भेज दिया, नाहक सुरक्षा के लिए डरे मर रहे थे।
विपक्ष वाले कब समझेेंगे कि यह सब नयी संसद के उद्घाटन का मामला है। वो क्या समझते थे कि मोदी जी एक सेंगोल वाले उद्घाटन पर ही बस कर देंगे। इतना बड़ा काम हुआ है, वह भी आत्मनिर्भरता के संग। संसद तो संसद, भवन भी खुद ठेका देकर बनवाया है। पहले सेंगोल वाला उद्घाटन। फिर संविधान की किताब वाला उद्घाटन। फिर पांच साल बाद लागू होने वाले महिला आरक्षण वाला उद्घाटन। फिर रमेश बिधूड़ी द्वारा नयी संसद के नये भाषा संस्कार का उद्घाटन। इसी सत्र के शुरू में इथिक्स कमेटी की तलवार से सांसदी के सर कलम का उद्घाटन। फिर, संसद पर हमले का उद्घाटन। और अब एक साथ सवा दर्जन सांसदों के निलंबन का उद्घाटन। इब्तिदा ए इश्क है रोता है क्या, आगे-आगे देखिए, ईवेंट होता है क्या-क्या?