कांग्रेस भी अपने हिसाब से पांचों सीटों को लेकर गुणा-भाग में जुटी हुई है। जहां तक सवाल क्षेत्रीय पार्टियों का है, फिलहाल इनके बारे में कुछ भी कहना मुश्किल है। हैं। लेकिन इस बार क्षेत्रीय दलों की स्थिति पूर्व की भांति ही रहेगी या नया कुछ होने जा रहा है? इसका पता तो कांग्रेस या भाजपा जब अपने अपने उम्मीदवारों के नामों की घोषणा करेगी, उस समय ही चल पाएगा…
रणविजय सिंह।
कांग्रेस( Congress) हो या भाजपा(BJP) या फिर क्षेत्रीय दल सभी की नजरें अब अगले साल के शुरू में होने वाले लोकसभा चुनाव पर टिकी हुई है। उत्तराखंड (Uttarakhand) में लोकसभा की पांच सीटें हैं और सभी पर भाजपा का कब्जा है। क्या आने वाले लोकसभा चुनाव ( Lok Sabha elections) में क्या भाजपा एक बार फिर से उत्तराखंड की सभी पांचों सीटों पर अपना कब्जा जमा पाएगी? भाजपा का शीर्ष नेतृत्व लगातार इस पर चिंतन मंथन कर रहा है।
कांग्रेस भी अपने हिसाब से पांचों सीटों को लेकर गुणा-भाग में जुटी हुई है। जहां तक सवाल क्षेत्रीय पार्टियों का है, फिलहाल इनके बारे में कुछ भी कहना मुश्किल है। अब तक हुए लोकसभा चुनावों में क्षेत्रीय दलों को लोग वोट कटवा के रूप में जानते हैं। लेकिन इस बार क्षेत्रीय दलों की स्थिति पूर्व की भांति ही रहेगी या नया कुछ होने जा रहा है? इसका पता तो कांग्रेस या भाजपा जब अपने अपने उम्मीदवारों के नामों की घोषणा करेगी, उस समय ही चल पाएगा। क्योंकि इस बार दोनों ही पार्टियां केवल जिताऊ उम्मीदवारों को ही टिकट दिए जाने के पक्ष में हैं।
हां, इस पर दोनों ही राजनीतिक पार्टियों को टिकट आवंटन को लेकर काफी माथापच्ची करनी पड़ेगी। संभव है कि इस दौरान दोनों ही दलों के अंदर दावेदारी को लेकर बगावती सुर सुनाई पड़ें। जिसके संकेत अभी से ही मिलने शुरू हो गये हैं। भाजपा के अंदर से छन छन कर जो खबरें आ रही हैं उससे एक बात साफ हो गई है कि पार्टी लोकसभा चुनाव में कुछ सिटिंग उम्मीदवारों को टिकट नहीं देने के मूड में है। ऐसे में इस बात की भी संभावना बन सकती है कि टिकट नहीं मिलने से भाजपा के संभावित उम्मीदवार बागी बन जाएं या फिर क्षेत्रीय दलों के साथ मिलकर चुनाव लड़ें। हालांकि, भाजपा में इसका असर कितना पड़ेगा? फिलहाल इस पर टिप्पणी करना उचित नहीं है। लेकिन संकेत मिल रहे हैं कि इस बार सिटिंग उम्मीदवारों के टिकट जरूर कटेंगे। इसलिए सभी को टिकट आवंटन तक इंतजार करना होगा। भाजपा के अंदर भी टिकट को लेकर घमासान की सुगबुगाहट अभी से ही है। इसके अलावा भाजपा के अंदर काफी खींचतान भी चल रहा है। निश्चित रूप से इसका असर चुनाव परिणाम पर भी दिखेगा। वहीं, कांग्रेस भले ही सत्ता से बाहर है लेकिन टिकटों के लिए कांग्रेस के अंदर भी युद्ध की स्थिति बनी हुई है। इससे लग रहा कि कांग्रेस के अंदर भी टिकट वितरण सहज नहीं है। ऐसे में अलग-अलग ग्रुपों में बंटी कांग्रेस पार्टी के सामने टिकट आवंटन बड़ी चुनौती होगी।
कांग्रेस को आगामी लोकसभा चुनाव में कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी। सबसे पहले तो कांग्रेस उम्मीदवारों को अपनों से ही जूझना होगा। फिर भाजपा से मुकाबला करना पड़ेगा। कांग्रेस के पास कार्यकर्ताओं का अभाव है। ऐसे में कांग्रेस अपने कार्यकर्ताओं को मैनेज भी कर सकती है लेकिन इसके लिए उसे अभी से ही जमीनी तैयारी शुरू करनी होगी। वर्तमान की पांचों संसदीय सीटों पर कांग्रेस चुनाव लड़ेगी। कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व यदि अंदर आपसी अंतर्कलह रोक पाने में कामयाब हो जाता है तो कांग्रेस के भी अच्छे दिन आ सकते हैं लेकिन इसके लिए कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को अथक प्रयास करने होंगे। कार्यकर्ताओं को खुश करने की दिशा में प्रयास करने होंगे। कांग्रेस बड़ी पार्टी है जो सही दिशा-निर्देश नहीं मिलने से निश्चित रूप से कमजोर हो गयी है। कांग्रेस को सशक्त बनाने की जिम्मेदारी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की है। इस दिशा में कांग्रेस के बड़े नेताओं को ठोस पहल करनी होगी।
दूसरी ओर, उत्तराखंड भाजपा में भी सब कुछ ठीक ठाक नहीं चल रहा है। यहां भी नेता अलग-अलग गुटों में बंटे हुए है। भाजपा में तो एकमात्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लहर चलती है। अब तक हुए विधानसभा और लोकसभा चुनावों में यह देखा जा चुका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक रैली नाराज कार्यकर्ताओं में भी जान फूंक देती है। अब देखना यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जादू पूर्व की तरह बरकरार रहता है या बेअसर। अभी चुनावी माहौल की शुरुआत नहीं हुई है। लेकिन हर व्यक्ति यही अनुमान लगा रहा है कि आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा का क्या होगा? वैसे उत्तराखंड में भाजपा पूरी तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर आश्रित है। क्योंकि यहां भाजपा के अंदर भी गुटबाजी चरम पर है। लेकिन, भाजपा के कार्यकर्ता प्रधानमंत्री मोदी जी के फैसलों पर एकजुट और एकमत रखते हैं। निश्चित रूप से भाजपा प्रधानमंत्री का उपयोग चुनाव प्रचार के दौरान करेगी। क्योंकि, भाजपा के लिए उनसे बड़ा ब्रह्मास्त्र कोई नहीं हैं। बहरहाल, अब चुनाव के दौरान हालात किस तरह के बनते हैं, उसी पर भाजपा की सारी रणनीति टिकी हुई है।