भारत सरकार ने इंटरनेट कंपनियों पर नकेल कसने की कवायद शुरू की
सोशल मीडिया मंचों को आईटी नियमों का सख्ती से अनुपालन करने के निर्देश
प्रमोद झा, नई दिल्ली।
डीपफेक (Deepfakes) पर लगाम लगाने के लिए भारत सरकार ने इंटरनेट कंपनियों पर नकेल कसने की कवायद शुरू कर दी है। सरकार ने सोशल मीडिया (Social Media) मंचों को आईटी नियमों का सख्ती से अनुपालन करने का निर्देश दिया है और नियमों का अनुपालन नहीं होने की सूरत में सरकार जीरो टॉलरेंस की नीति पर काम करेगी। सोशल मीडिया मंचों पर निगरानी के लिए इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय एक वेबसाइट बनाने की तैयारी में है।
पौराणिक कथा में देवराज इंद्र द्वारा गौतम ऋषि का छद्म वेश धारण कर उनकी पत्नी अहिल्या के साथ छल ‘डीपफेक’ का ही दृष्टांत है। मौजूदा दौर का डीपफेक उन्नत एवं अद्यतन प्रौद्योगिकी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (Artificial Intelligence) के दुरुपयोग का यह नया अवतार है, जिसमें असली और नकली का अंतर करना मुश्किल है। इसलिए, प्रौद्योगिकी के जानकारों ने इसके खतरों से दुनिया को पहले ही खबरदार कर दिया है। लिहाजा, डीपफेक के खतरों से निपटने के प्रयास वैश्विक स्तर पर जारी है। कुछ सेलिब्रिटीज के डीपफेक वीडियो वायरल होने की हालिया घटनाओं के बाद भारत सरकार ने इस पर लगाम लगाने को लेकर सख्त रुख अख्तियार किया है।
सरकार ने सोशल मीडिया मंचों को डीपफेक का प्रसार रोकने के लिए डिजिटल कंपनियों को देश के मौजूदा नियम-कायदों का सख्ती से अनुपालन करने की हिदायत दी हैं। आईटी राज्यमंत्री राजीव चंद्रशेखर ने विगत 24 नवंबर को इन कंपनियों के अधिकारियों के साथ बैठक उन्हें चेतावनी के लहजे में कहा कि देश के मौजूदा आईटी नियमों का पालन नहीं होने की सूरत में उन्हें कानून के तहत मिला सेफ हार्बर यानी सुरक्षा कवच नहीं मिल पाएगा।
बताते चलें कि इंटरनेट, सोशल मीडिया आदि डिजिटल कंपनियों को भारत के सूचना प्रौद्योगिकी कानून यानी आईटी एक्ट की धारा 79 के तहत सेफ हार्बर यानी कानूनी सुरक्षा कवच मिला हुआ है। लेकिन सूचना प्रौद्योगिकी (इंटरमीडियरी गाइडलाइंस एंड डिजिटल मीडिया एथिक्स) नियम 2021 के नियम 7 में प्रावधान है कि अगर कोई इंटरमीडियरीज कानून का अनुपालन नहीं करती है तो उसके पास कोई सेफ हार्बर यानी सुरक्षा कवच नहीं रहेगा।
ऐसे में कानून का अनुपालन नहीं करने को लेकर सोशल मीडिया मंचों के खिलाफ कार्रवाई हो सकती है। आईटी कानून और भारतीय दंड संहिता के तहत वे दंड के लिए भी उत्तरदायी हो सकती हैं।
वहीं, आईटी नियमों के नियम 3(1)(बी) के प्रावधानों के मुताबिक, सभी इंटरमीडियरीज को अपने प्लेटफार्मों पर 11 प्रकार की सामग्री की पोस्टिंग एवं प्रसार को रोकने के लिए ‘समुचित कोशिश करनी होगी। ऐसी सामग्री में बाल यौन शोषण सामग्री यानी बच्चों के लिए हानिकारक सामग्री, मालवेयर, बौद्धिक संपदा अधिकारों का उल्लंघन करने वाली सामग्री, किसी अन्य व्यक्ति का प्रतिरूपण करने वाली सामग्री, और ऐसी सामग्री जो ‘जानबूझकर किसी गलत सूचना या जानकारी का संचार करती है और साफतौर पर झूठी और असत्य या भ्रामक प्रकृति की है, आदि शामिल हैं।
बैठक में सोशल मीडिया इंटरमीडियरीज को आईटी नियमों के अनुपालन की दिशा में उनके द्वारा की जाने वाली कार्रवाई की रिपोर्ट एक सप्ताह के भीतर सौंपने का निर्देश दिया गया। उन्हें मंत्रालय को यह भी सूचित करना होगा कि वे उपयोगकर्ताओं को सरल, उदाहरणात्मक भाषा में नियमों के तहत ‘गैरकानूनी’ सामग्री के बारे में नियमित रूप से कैसे याद दिलाते रहेंगे। डीपफेक जैसी सामग्री के प्रसार पर नकेल कसने के मद्देनजर उचित कार्रवाई करने के लिए सरकार ने एक नोडल अधिकारी नियुक्त करने का भी ऐलान किया। साथ ही इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा इस बाबत विकसित वेबसाइट पर यूजर्स आईटी नियमों के उल्लंघन की शिकायत कर सकते हैं। साथ ही, मंत्रालय यूजर्स को आईटी नियमों के उल्लंघन के बारे में बताने और डीपफेक से प्रभावित यूजर्स को एफआईआर दर्ज कराने में भी मदद करेगा।
सरकार ने स्पष्ट किया है कि डीपफेक संबंधी सामग्री के प्रसार को लेकर संबंधित सोशल मीडिया इंटरमीडियरी के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाएगी। लेकिन अगर इंटरमीडियरीज डीपफेक सामग्री की उत्पति के स्रोत का खुलासा करती है तो सामग्री पोस्ट करने वालों के खिलाफ मामला दर्ज किया जाएगा।
इंटरनेट से जुड़ें सभी प्लेटफॉर्मों को दिलाया कि अक्टूबर 2022 से भारत सरकार उन्हें लगातार गलत सूचना के खतरे के प्रति सचेत करती कर रही है और यह डीपफेक गलत सूचना का हिस्सा है। तमाम इंटरमीडियरीज ने भी माना कि मौजदा आईटी काूनन के तहत जो नियम हैं वो डीपफेक से निपटने के लिए पर्याप्त हैं। हालांकि, सरकार का कहना है कि डीपफेक जैसी गलत सूचनाओं के प्रसार से होने वाले खतरों से निपटने के लिए जरूरत पड़ने पर नये नियम अथाव नया कानून भी बनाया जा सकता है।
जाहिर है कि हमारा आईटी कानून 23 साल पुराना है और इसे बदलने के लिए सरकार की ओर से डिजिटल इंडिया कानून प्रस्तावित है। संभव है कि प्रस्तावित कानून में डीपफेक की चुनौती से निपटने के लिए जरूरी प्रावधान किए जाएं। लेकिन फिलहाल, सोशल मीडिया इंटरमीडियरीज को देश के मौजूदा आईटी कानून के तहत जो नियम हैं उनका सख्ती से अनुपालन करते हुए डीपफेक के खतरों से निपटने के उपाय करने होंगे। जानकार बताते हैं कि सोशल मीडिया मंचों पर बेनामी और फर्जी खातों के माध्यम से ज्यादातर डीपफेक जैसी सामग्री प्रसारित की जाती है। ऐसे फर्जी खातों की सक्रियता से डिजिटल कंपनियों को काफी फायदा होता है। लिहाजा ये कंपनियां इनके खिलाफ किसी प्रकार की कार्रवाई नहीं करना चाहती हैं। ऐसे में आगे देखना होगा कि सरकार की ओर से सख्त चेतावनी के बाद सोशल मीडिया इंटरमीडियरीज द्वारा किस प्रकार की कार्रवाई की जाती है।
प्रौद्योगिकी के जानकार बताते हैं कि सोशल मीडिया मंचों पर यूजर जो फोटो या वीडियो शेयर करते हैं, डिजिटल कंपनियां उसे चुराकर गैर-कानूनी तरीके से उसका इस्तेमाल करती हैं और एआई का उपयोग करके उससे डीपफेक वीडियो बनाती हैं। दरअसल, बड़े सेलिब्रिटी में लोगों की दिलचस्पी ज्यादा होती है, इसलिए उनसे जुड़े डीपफेक वीडियो आजकल ज्यादा आ रहे हैं। लेकिन, डीपफेक सिर्फ सेलिब्रिटी के लिए ही खतरे का सबब नहीं है, इसका शिकार आम लोगों को भी बनाया जा रहा है। डीपफेक का इस्तेमाल साइबर अपराध को अंजाम देने के लिए भी किया जा रहा है।