टनल हादसों से सबक लेने की दरकार

 डॉ. गोपाल नारसन ।

दीपावली के दिन ऑल वेदर रोड के लिए बन रही सुरंग का एक हिस्सा बैठ जाने से उत्तरकाशी (  Uttarkashi) से गंगोत्री मार्ग पर अचानक सुरंग में काम कर रहे 40 मजदूर अंदर ही फंस गए। चारधाम परियोजना के तहत निर्माणाधीन सिल्क्यारा-पोल गांव सुरंग में कई दिनों से 40 श्रमिकों  (Workers) की जिंदगी कैद है। इन श्रमिकों को निकालने का कार्य 160 राहत कर्मियों के माध्यम से युद्ध स्तर पर चल रहा है।

देहरादून से ऑगर ड्रिलिंग मशीन ( Drilling Machine) भी पहुंच गई है। इस मशीन को स्थापित करने का कार्य चल रहा है। श्रमिकों को निकालने के लिए हरिद्वार के बहादराबाद से 900 एमएम के पाइप मंगाए गए। टनल में फंसे मजदूरों तक जल्दी ही पहुंचने की संभावना जताई जा रही है। लेकिन इन तमाम कोशिशों से भी जब बात न बनीं तो अब नार्वे से विशेषज्ञों की टीम बुलाई गई है। उत्तरकाशी के इस टनल में झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले के घाटशिला के आदिवासी बहुल डुमरिया प्रखंड के 6 मजदूर भी फंसे हुए हैं। इस गांव से कुल 40 मजदूर इस टनल में काम करने गए थे, लेकिन त्योहार के कारण 22 लोग छुट्टी पर चले गए। जबकि बाकी लोग टनल बनाने के कार्य में लगे हुए हैं। डुमरिया के मानिकपुर, कुंडा लुका और आसपास के 6 लोग इस टनल के अंदर फंसे हुए हैं। इनमे मानिकपुर ईचाड़ीह टोला के 22 वर्षीय गुणाधर नायेक, रंजीत लोहार, रविंद्र नायक, बांकी सोल गांव के समीर नायेक, कुंडालुका के भुक्तु मुर्मू और डुमरिया के टिंकू सरदार शामिल हैं। डुमरिया के मानिकपुर गांव के एक ही परिवार के चार सदस्य गुनाधर नायक, आदित्य नायक, मुक्तेश्वर नाक और नरेश नायक इस टनल में काम करने गए हुए थे। लेकिन नरेश नायक पिछले दिनों अपने गांव मानिकपुर वापस चला गया था, जबकि अन्य तीनो भाई उत्तरकाशी में इस टनल में काम कर रहे थे। इनमें से इनका सबसे छोटा भाई गुनाधर नायक टनल में फंसा हुआ है। इसी गांव के रविंद्र नायक भी इस टनल में काम करने के दौरान फंसे हुए हैं। जैसे ही इस बात की जानकारी इनके परिजनों को मिली उनकी पत्नी और बच्चे काफी परेशान हैं।
टनल धंसने की सूचना पाकर डुमरिया के थाना प्रभारी संजीवन उरांव ने टनल में फंसे लोगों के परिजनों से बात की और उनका वेरिफिकेशन किया। ग्रामीणों का कहना है कि जब से उन्होंने टनल धंसने की खबर सुनी है तब से सभी परेशान हैं। हालांकि, थोड़ी राहत इस बात की है कि सभी सुरक्षित हैं और सरकार उन्हें सुरक्षित बाहर निकालने की कोशिश कर रही है। उत्तराखंड के पुष्कर सिंह धामी ने बताया कि उत्तरकाशी में हुए भू-धंसाव के संबंध में अधिकारियों के साथ उच्चस्तरीय बैठक की है। उन्होंने राहत एवं बचाव कार्यों में वैकल्पिक सहायता लेने के साथ ही फंसे हुए लोगों को निकालने के लिए अन्य आवश्यक मशीनों को भी ग्राउंड जीरों पर स्थापित करने के लिए तेजी से कार्य करने हेतु निर्देशित किया है। उत्तरकाशी में सुरंग के लिए कार्यदायी संस्था एन एच. आई.डी. सी. एल. द्वारा उपलब्ध करायी गयी सूचना के अनुसार फंसे हुये व्यक्तियों में से 02 उत्तराखंड के, 01 हिमाचल का, 04 बिहार के, 03 पश्चिम बंगाल के, 08 उत्तर प्रदेश के, 05 उड़ीसा के, 15 झारखंड के और 02 असम के हैं। सिलक्यारा सुरंग में फंसे मजदूरों को सुरक्षित बाहर निकालने के लिए बचाव एवं राहत कार्य युद्ध स्तर पर जारी हैं। पुलिस ने टनल के अंदर फंसे श्रमिकों से पाइप के माध्यम से उनके परिजनों से बातचीत भी करवाई है, अंदर फंसे कोटद्वार निवासी गंभीर सिंह नेगी के बेटे ने उनसे सम्पर्क कर कुशलक्षेम जानी। साथ ही, उनको बाहर से शासन-प्रशासन द्वारा तेजी से किये जा रहे रेस्क्यू कार्यों की जानकारी दी। उत्तरकाशी के डीएम अभिषेक रोहिल्ला ने कहा कि बचाव अभियान जारी है। पाइप की मदद से सुरक्षा मार्ग या छोटी सुरंग बनाने का प्रयास किया जा रहा है। साइट पर सामग्री उपलब्ध करा दी गई है। उनके लिए प्लेटफॉर्म भी बनाया जा रहा है। उसके बाद एस्केप टनल का निर्माण भी शुरू किया जाएगा। फिलहाल सभी श्रमिक सुरक्षित हैं। उनके लिए भोजन और पानी की व्यवस्था की गई है। अधिकारियों का कहना है कि वे उनसे लगातार संवाद स्थापित करने में सक्षम हैं। सीडीओ गौरव कुमार ने कहा कि मैं टनल के अंदर गया था, हमारे कर्मियों से लगातार संवाद किया जा रहा है, वे सभी सुरक्षित और स्वस्थ हैं। खाने-पीने के सामान और पीने के पानी की व्यवस्था की जा रही है। सीएमओ ने कुछ दवाओं की भी व्यवस्था की है। उन्हें भेजा जा रहा है। जहां तक बचाव का सवाल है, पाइप पुशिंग शुरू होने वाली है। अधिकारियों ने बताया कि ऑगर ड्रिलिंग मशीन के जरिये 900 मिमी का स्टील पाइप डाला जाएगा, इसके जरिए मजदूरों को सुरक्षित बाहर निकालने की कोशिश की जाएगी। झारखंड सरकार के अधिकारियों का तीन सदस्यीय दल फंसे श्रमिकों को बचाने में मदद करने के लिए उत्तराखंड आ रहा है। झारखंड के 10 लोगों सहित लगभग 40 श्रमिकों के सुरंग में फंसे होने की आशंका है। झारखंड के श्रमिकों के बचाव अभियान में मदद करने और तत्काल राहत मुहैया कराने के लिए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के निर्देश पर जेएपी-आईटी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी भुवनेश प्रताप सिंह और संयुक्त श्रम आयुक्त राजेश प्रसाद एवं रॉबर्ट लाकड़ा सहित तीन सरकारी अधिकारी उत्तराखंड आ गए है।
सिलक्यारा सुरंग में हुए भूस्खलन के अध्ययन एवं कारणों की जांच के लिए निदेशक उत्तराखंड भूस्खलन न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र की अध्यक्षता में गठित समिति में शामिल विशेषज्ञों ने स्थल का निरीक्षण कर जांच की कार्रवाई शुरू कर दी है। जांच समिति में शामिल विशेषज्ञों का यह दल बीते दिन ही घटनास्थल पर पहुंच गया था। दल के द्वारा सुरंग एवं इसके ऊपर की पहाड़ी का सर्वेक्षण किया जा रहा है। उत्तरकाशी के जिलाधिकारी अभिषेक रोहिल्ला ने कहा कि बचाव अभियान जारी है। पाइप की मदद से सुरक्षा मार्ग या छोटी सुरंग बनाने का प्रयास किया जा रहा है। साइट पर सामग्री उपलब्ध करा दी गई है। उनके लिए प्लेटफॉर्म भी बनाया जा रहा है। उसके बाद एस्केप टनल का निर्माण भी शुरू किया जाएगा। बताया जा रहा है कि सभी सुरक्षित हैं. उनके लिए भोजन और पानी की व्यवस्था की गई है। एनएचआईडीसीएल के अधिकारियों का कहना है कि वे उनसे लगातार संवाद स्थापित करने में सक्षम हैं। एसडीआरएफ-उत्तराखंड, मणिकांत मिश्रा ने कहा कि उन्होंने सुरंग में फंसे श्रमिकों से बात की है और उन्होंने उन्हें आश्वासन दिया है कि सभी 40 कर्मचारी अच्छे हैं। मिश्रा ने कहा कि फंसे हुए मजदूरों को जल्द ही बचा लिया जाएगा। श्रमिकों को आवश्यक खाद्य सामग्री और कुछ दवाएं उपलब्ध कराई गईं। उत्तरकाशी सुरंग हादसे पर उत्तराखंड के सीएम पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि मैं स्थिति पर करीब से नजर रख रहा हूं। मैंने घटनास्थल का दौरा किया था और मैंने अंदर फंसे लोगों के परिवार के सदस्यों से भी बात की। अंदर फंसे लोगों को खाना, पानी और ऑक्सीजन की आपूर्ति की जा रही है। पीएम मोदी भी स्थिति पर करीब से नजर रख रहे हैं। उत्तराखंड के उत्तरकाशी में सुरंग में फंसे 40 मजदूरों को बचाने के लिए अंदर बड़े व्यास के पाइप डालने का काम शुरू तो हुआ लेकिन सफलता नहीं मिल पाई। ऐसे में बीतते समय के साथ मजदूरों की जान का खतरा बढ़ता ही जा रहा है। उत्तराखंड में यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर निर्माणाधीन सिलक्यारा-बड़कोट सुरंग के एक हिस्से के ढहने से उसके अंदर फंसे 40 श्रमिकों को बाहर निकालने के लिए बचाव अभियान चल रहा है। अधिकारियों ने कहा है कि श्रमिकों को बाहर निकालने में संभवतः एक-दो दिन और लग सकते हैं। सरकार ने दुर्घटना की जांच के लिए छह सदस्यीय विशेषज्ञ समिति का गठन किया है। वहीं, प्रधानमंत्री मोदी भी टनल में फंसे मजदूरों की जानकारी ले रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से फोन पर वार्ता की और पूरी घटना पर जानकारी ली है। केंद्र की तरफ से हरसंभव मदद के लिए भी कहा है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने पीएम को बताया कि उन्होंने स्वयं मौके पर जाकर स्थलीय निरीक्षण किया है और बचाव कार्यों पर लगातार नजर रख रहे हैं। बचाव कार्य के लिए बड़े व्यास के ह्यूम पाइप हरिद्वार और देहरादून से भेजे जाने की व्यवस्था कर दी गई है। मुख्यमंत्री ने कहा कि सुरंग के अंदर फंसे सभी मजदूर सुरक्षित हैं और उन्हें जल्द बाहर निकलने की पूरी कोशिश की जा रही है। अब तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस बारे में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से दो बार स्थिति की जानकारी ले चुके हैं। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और रेल मंत्री भी सीएम धामी से इस विषय में बात कर चुके हैं। केंद्रीय एजेंसियां और एक्सपर्ट मौके पर मौजूद हैं। लगातार मजदूरों को बचाने की कोशिश की जा रही है। इसके लिए तमाम एजेंसियां लगी हुई हैं। ब तक 40 मीटर से ज्यादा सुरंग से मलबा निकाला जा चुका है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी हर घंटे रेस्क्यू ऑपरेशन की जानकारी ले रहे हैं।
सुरंग का करीब पंद्रह मीटर हिस्सा धंस गया। यह सुरंग ‘आॅल वेदर रोड’ परियोजना का हिस्सा है, जो गंगोत्री और यमुनोत्री को जोड़ती है। इस सुरंग की लंबाई करीब साढ़े चार किलोमीटर बताई जा रही है, जिसका करीब चार किलोमीटर हिस्सा बन कर तैयार हो गया है। इस सुरंग के बनने के बाद यात्रियों को छब्बीस किलोमीटर दूरी कम तय करनी पड़ेगी। आॅल वेदर रोड’ सरकार की महत्त्वाकांक्षी परियोजना है। हालांकि, तमाम पर्यावरणविद शुरू से विरोध करते रहे हैं कि इस परियोजना के चलते पहाड़ों पर भूस्खलन बढ़ेगा। उत्तराखंड के पहाड़ पहले ही जर्जर हो चुके हैं। हल्का कंपन भी उनके लिए खतरनाक साबित हो सकता है। इस तर्क के साथ परियोजना को रोकने की अदालत में गुहार लगाई गई थी, परन्तु सफलता नहीं मिल सकी। अंधाधुंध निर्माण कार्यों के चलते उत्तराखंड पिछले कुछ सालों में कई भयावह आपदाएं झेल चुका है। पहाड़ों के धंसने और दरकने से सैकड़ों लोगों को बेघर होना पड़ा है। इसके बावजूद हैरानी है कि सड़क बनाने की योजना पर पुनर्विचार करने की जरूरत नहीं समझी गई। सुरंग खोदने के लिए जिस तरह की भारी मशीनों का उपयोग किया जाता है, उनके कंपन से पूरा पहाड़ हिल जाता है। इसी साल जुलाई महीने में चमोली जिले में अलकनंदा नदी के किनारे ट्रांसफॉर्मर फट जाने से पूरा प्रदेश हिल गया था। ये हादसा प्रोजेक्ट में बने ब्रिज में करंट आने की वजह से हुआ था। जिसमें 15 लोगों की मौत हो गई थी और 7 लोग घायल हो गए थे। पहले एक जल कर्मचारी करंट की चपेट में आया और फिर एक के बाद एक कई लोग झुलसते चले गए। मारे गए लोगों में 4 पुलिसकर्मी भी शामिल थे।इसी तरह जोशीमठ की जमीन में आई दरार व भूधंसाव की खबरों ने तमाम भू-वैज्ञानिकों को चिंता में डाल दिया था। जोशीमठ में कई जगहों पर जमीन में बड़ी-बड़ी दरारें देखी गईं, कई घरों में दरारें आ गईं, जिसके बाद लोग बुरी तरह घबरा गए थे, इसकी वजह से सैकड़ों लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा और उन्हें अस्थायी शिविरों में शरण लेनी पड़ी थी,जोशीमठ में 700 से ज्यादा मकानों में दरारें आईं थीं। अक्टूबर 2022 में उत्तरकाशी के ही भटवाड़ी प्रखंड में द्रौपदी के डांडा-2 पर्वत शिखर पर एवलांच आया था, इसकी चपेट में निम के 34 पर्वतारोहियों का दल आ गया था, इस हादसे में 25 ट्रेनियों और 2 प्रशिक्षकों की मौत हो गई थी। जबकि सन 2013 में केदारनाथ आपदा केदरनाथ की आपदा तो उत्तराखंड के इतिहास की सबसे भयावह घटना थी, जब अलकनंदा नदी की लहरों की चपेट में आकर हजारों लोगों की मौत हो गई थी। किसी को संभलने का मौका तक नहीं मिला था, लोग जिंदा हीं दफन हो गए थे। आज भी यहां उन लोगों के नरकंकाल मिल जाते हैं। सन 1991 उत्तरकाशी भूकंप अविभाजित उत्तर प्रदेश में अक्टूबर 1991 में 6.8 तीव्रता का भूकंप आया था,इस आपदा में कम से कम 768 लोगों की मौत हुई थी और हजारों घर तबाह हो गए थे। सन 1998 माल्पा भूस्खलन पिथौरागढ़ जिले का छोटा सा गांव माल्पा भूस्खलन के चलते बर्बाद हुआ था। इस हादसे में 55 कैलाश मानसरोवर श्रद्धालुओं समेत करीब 255 लोगों की मौत हुई थी। भूस्खलन से गिरे मलबे के चलते शारदा नदी बाधित हो गई थी। सन 1999 में चमोली जिले में आए 6.8 तीव्रता के भूकंप ने 100 से अधिक लोगों की जान ले ली थी, पड़ोसी जिले रुद्रप्रयाग में भी भारी नुकसान हुआ था।भूकंप के चलते सड़कों एवं जमीन में दरारें आ गई थीं। इसलिए हम कह सकते है कि उत्तराखंड हर समय हादसों व दुर्घटनाओं के मुहाने पर खड़ा है जिसमे प्रकति के साथ विकास के नाम पर नाजायज छेड़छाड़ मुख्य रूप से दोषी है।

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