वन विभाग के आंकड़ों पर ध्यान दिया तो इस साल कुल 19 बाघ मरे हैं जिनमें 8 मौतें तो कार्बेट में हुई हैं। वन विभाग के आंकड़ों पर गौर किया जाए तो सर्वाधिक मौतें अर्थात 15 कुमाऊं में हुई हैं जबकि 4 मौतें गढ़वाल मंडल में हुई हैं। इसका मतलब यह है कि कुमाऊं मंडल बाघों के लिए काफी संवेदनशील रहा है। ऐसे में जानकार शिकार की आशंका भी जता रहे हैं… बाघों की संख्या का कम होना चिंताजनक तो है ही, साथ ही डरावना भी कि आखिर बाघों पर कहर कौन बरपा रहा है। सच्चाई तो यह है कि बाघों की संख्या में इजाफा होना चाहिए था लेकिन दुर्भाग्य यह है कि इस साल यह संख्या पिछले साल के मुकाबले घटकर काफी कम हो गयी है। पिछले साल प्रदेश भर में 6 बाघ मारे गए थे ,लेकिन इस साल यह आंकड़ा 19 तक पहुंच गया है।
रणविजय सिंह
उत्तराखंड (Uttarakhand) में पिछले बीस सालों में बाघों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है। लेकिन बाघों की संख्या में एकाएक हुई कमी ने न केवल पर्यावरण विशेषज्ञों बल्कि उत्तराखंड सरकार( Government of Uttarakhand) को भी चिंता में डाल दिया है।
पर्यावरण विशेषज्ञ यह मानते हैं कि बीस सालों में संख्या बढ़ने की वजह से उनका घनत्व भी काफी बढ़ा है । इससे उनमें काफी संघर्ष भी बढ़ा है। क्योंकि एक बाघ करीब 100 किलोमीटर के दायरे में अपनी टेरिटरी बनाता है। घनत्व बढ़ने से बाघों के भोजन में कमी आई है। जंगली जानवरों (Wild animals) की कमी की वजह बाघों को भरपेट भोजन पर भी संकट हो गया है। वन विभाग के आंकड़ों पर ध्यान दिया तो इस साल कुल 19 बाघ मरे हैं जिनमें 8 मौतें तो कार्बेट में हुई हैं। वन विभाग के आंकड़ों पर गौर किया जाए तो सर्वाधिक मौतें अर्थात 15 कुमाऊं में हुई हैं जबकि 4 मौतें गढ़वाल मंडल में हुई हैं। इसका मतलब यह है कि कुमाऊं मंडल बाघों के लिए काफी संवेदनशील रहा है। साथ ही कुमाऊं मंडल की सीमाएं उत्तर प्रदेश और नेपाल से जुड़ी हुई हैं। इसलिए शिकार का भी पूरा पूरा अंदेशा है। अभी हाल ही में बाघों की खालें भी पकड़ी गई हैं। जिसकी जांच भी चल रही है। खालों से यह बात साफ हो गई है कि बाघों का शिकार भी हुआ है। केवल जंगल जंगलात का घटता दायरा बताकर वन्य विभाग अपना पल्ला नहीं झाड़ सकता है। वन्यजीव विशेषज्ञ इस बात को स्वीकार कर रहे हैं कि बाघों की मौत के पीछे हादसे और शिकार दोनों ही पूरी तरह से जिम्मेदार हैं। नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी की मानें तो इस साल अब तक कुल 159 बाघों की मौतें हुई हैं। यह आंकड़ा पिछले साल 127 था। देश में भी बाघों की संख्या में कमी आई है। सर्वाधिक बाघ अर्थात 37 महाराष्ट्र में मारे गए हैं। यहां बताना उचित है कि इन बाघों की मौतें किसी बीमारी से नहीं हुई है। भूख या शिकारियों ने ली हैं। सही में यह अफसोस की बात है। कहने को उत्तराखंड में जंगलों की संख्या ज्यादा है। पर्वतीय राज्य है। ऐसी स्थिति में बाघों को कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए। लेकिन यहां भी दिक्कत है। इसलिए सरकार को बाघों की हुई मौतों को गंभीरता से लेने की जरूरत है। भोजन की कमी है तो हिरण, सांभर तथा गुलदारों की संख्या बढ़ाने की दिशा में काम करने होंगे। इसके अलावा शिकारियों से निपटने के लिए रणनीति भी बनानी होगी। तभी जाकर बाघों को बचाया जा सकता है।