रणविजय सिंह
बागेश्वर उप चुनाव (Bageshwar by-election) में क्या होगा। इससे दोनों ही राजनीतिक पार्टियों के नेता वाकिफ हैं। राजनीति में तो हार जीत लगा ही रहता है। प्लस-माइनस के बिना कहीं की भी राजनीति नहीं चलती है। उत्तराखंड (Uttarakhand ) में बागेश्वर उप चुनाव होने को हैं। भाजपा (BJP) ने दिवंगत चंदन राम दास की पत्नी पार्वती दास को चुनाव मैदान में उतारा है तो वहीं कांग्रेस (Congress) ने चंद रोज पहले कांग्रेस में आए बसंत कुमार को पार्टी का टिकट दिया है। हालांकि इससे मतदाताओं पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है। किसी भी राज्य में होने वाले उप चुनाव से किसी भी राजनीतिक पार्टी (Political Party )के ताकत का आकलन नहीं किया जा सकता है। क्यों कि उप चुनाव में कई तरह के स्थानीय फैक्टर होते हैं, उसी आधार पर मतदाता वोटिंग करते हैं।
बागेश्वर में होने जा रहे इस उप चुनाव को भी राजनीतिक विश्लेषक इसी नजरिए से देख रहे हैं। बागेश्वर विधान सभा की सीट भाजपा की रही है। दिवंगत कैबिनेट मंत्री चंदन राम दास की मृत्यु के बाद यह सीट रिक्त हुई है। भाजपा ने सहानुभूति वोट को हासिल करने के मकसद से दिवंगत चंदन राम दास की पत्नी के टिकट दिया है ताकि सहानुभूति वोट मिल सके। हालांकि कोई भी पार्टी होती तो यही करती जो भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने किया है। भाजपा को अपने गेम प्लान कहां तक कामयाबी मिलेगी, यह तो चुनाव परिणाम आने पर ही पता चल पाएगा। हां, इतना जरूर है कि जिस परिस्थिति में भाजपा ने पार्वती देवी को टिकट दिया है। ऐसे में भाजपा को लाभ मिल सकता है। अतीत में इस तरह के परिवेश का लाभ राजनीतिक पार्टियां उठा चुकी हैं। असल में भाजपा की रणनीति भी यही है।
वहीं कांग्रेस ने बसंत कुमार को बागेश्वर के चुनाव मैदान में उतारा है। खुद बसंत कुमार की कांग्रेस में एंट्री नयी है। हालांकि, उत्तराखंड कांग्रेस के अध्यक्ष करन माहरा का मानना है कि बसंत कांग्रेस के लिए नये नहीं हैं। वे बीते 6 माह से कांग्रेस के संपर्क में हैं। हर नजरिए से आकलन के बाद बसंत को टिकट दिया गया है। वैसे कांग्रेस को भी पता है कि बागेश्वर में सहानुभूति लहर का सैलाब आ सकता है। ऐसी परिस्थितियों में कोई चमत्कार ही कांग्रेस का भाग्य बदल सकता है। जो वाकई अपने आप में महत्वपूर्ण घटना होगी। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो सहानुभूति लहर का लाभ भाजपा को मिल सकता है।
कांग्रेस को ज्यादातर चमत्कार पर भरोसा है। शेष तो चुनाव परिणाम के बाद ही पता चल पाएगा कि वोटरों ने किस पार्टी के उम्मीदवार को गले लगाया और किसको दरकिनार किया। हां, विश्लेषकों का एक वर्ग यह भी मानता है कि दरअसल कांग्रेस यहां विपक्ष की भूमिका में है। लेकिन जिस तरह से कांग्रेस को सत्ता पक्ष के खिलाफ मुखर होना चाहिए, कांग्रेस के नेता नहीं हुए। इसका सीधा असर यहां के लोगों पर पड़ा है। ऐसा भी नहीं है कि विपक्ष में बैठी कांग्रेस के पास कोई मुद्दे नहीं हैं। अंकिता हत्याकांड, पेपर लीक प्रकरण तथा विधानसभा भर्ती घोटाले जैसे एक दर्जन से ज्यादा मुद्दे प्रदेश में थे लेकिन कांग्रेस ने इन मुद्दों को सख्ती के साथ उठाने की कोशिश नहीं की। ऐसा भी नहीं है कि ये मुद्दे उत्तराखंड से गायब हो गये हैं। अब इन गंभीर मुद्दों को लेकर कांग्रेस की रफ्तार अब भी काफी धीमी बनी हुई है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस नेताओं का रूख इस मामले में क्यों उदासीन है। इसको समझने की जरूरत है। इसका जवाब तो कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ही देंगे कि आखिर कांग्रेस मौनी बाबा क्यों बनी हुई है।
राजनीति में आरोप प्रत्यारोप तो चलता रहता है। लेकिन विपक्ष में बैठी राजनीतिक पार्टी जनसरोकार से जुड़े अति गंभीर मसलों की अनदेखी नहीं कर सकती है। कांग्रेस सबसे पुरानी पार्टी है। जनांदोलन से शुरू से जुड़ी हुई है। ऐसे में वह अपने कर्त्तव्य पथ से विचलित नहीं हो सकती है। कांग्रेस तो यह दावा जरूर करती है कि सत्ता रूढ़ भाजपा को वह सदन से सड़क तक घेरेगी। लेकिन जब आवश्कता पड़ती है तब कांग्रेस के बयानवीर नेता बयानबाजी करके मुद्दे से अलग हो जाते हैं। इसलिए कांग्रेस को मुद्दों को लेकर राजनीति करनी चाहिए। ताकि जनता के बीच सशक्त संदेश जाए कि पार्टी जनहित से जुड़े मुद्दों को लेकर सत्ता पक्ष आक्रामक रहती है। कांग्रेस को अपनी रणनीति तैयार करनी चाहिए। जनहित के मुद्दों पर फोकस करना चाहिए।
हां,यह भी सत्य है कि भाजपा प्रदेश की सत्ता में जरूर है। लेकिन भाजपा कार्यकर्ताओं में भी बूथ स्तर तक नाराजगी है। कार्यकर्ताओं की नाराजगी के पीछे कई कारण हैं। भाजपा कार्यकर्ताओं की सबसे बड़ी खासियत यह है कि वे अपनी नाराजगी का इजहार खुले मंच पर नहीं करते बल्कि चुनाव के समय अवकाश पर चले जाते हैं। मान मनौव्वल करने पर फिर चुनाव में डट जाते हैं। मतलब साफ है कि भाजपा के पास अपनी टेक्नीक भी है जिससे शीर्ष नेतृत्व कार्यकर्ताओं की नाराजगी को दूर भी कर लेता है। यह बात भी सही है कि सभी को खुश करना किसी भी पार्टी के लिए संभव नहीं है।