मोदी जी गलत शिकायत नहीं करते हैं। ये विरोधी उनके कुछ भी करने के ही विरुद्ध हैं। बेचारे मोदी जी जरा सा भी कुछ करने लगते हैं‚ ये विरोध करने खड़े हो जाते हैं। बताइए‚ नाम बदलने से हल्का काम क्या होगाॽ पर मजाल है, जो मोदी जी नाम बदलें और विरोधी उसका भी विरोध नहीं करें। देख लीजिए‚ नेहरू मैमोरियल म्यूजियम एंड लाइब्रेरी का नाम बदला है‚ वह भी पूरा नहीं जरा सा‚ बस एनएम की जगह पीएम किया है‚ पर विपक्षी ऐसे शोर मचा रहे हैं‚ जैसे मोदी जी ने इतिहास की नई किताबों में खुद-ही-खुद को स्वतंत्र भारत का पहला प्रधानमंत्री घोषित करा दिया हो। हम पूछते हैं कि क्या एक सौ चालीस करोड़ भारतीयों का चुना हुआ प्रधानमंत्री‚ दुनिया के सबसे बड़े जनतंत्र का प्रधानमंत्री‚ दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी का सबसे बड़ा नेता‚ दुनिया का सबसे लोकप्रिय नेता‚ एक नाम भी नहीं बदल सकताॽ जरा सा एनएम का पीएम नहीं कर सकता है यानी नेहरू का पीएम‚ बस! तब क्या फायदा दुनिया के सबसे बड़े जनतंत्र का राजा चुने जाने काॽ और क्या फायदा इतने सारे शहरों, कस्बों, सड़कों, संस्थाओं, बागों, इमारतों, पुरस्कारों‚ योजनाओं‚ बागों‚ इमारतों‚ पुरस्कारों‚ योजनाओं‚ कानूनों आदि-आदि के नाम बदलने का।
आडवाणी जी को मार्गदर्शक मंडल में भिजवा कर‚ पीएम का तख्त मोदी जी ने सिर्फ मुसलमानों जैसे लगने वाले नाम बदलने के लिए तो नहीं जीता था! हद्द तो यह है कि हर बात में सेकुलर–सेकुलर की दुहाई देने वाले भी‚ नेहरू की जगह पीएम करने का ऐसे विरोध कर रहे हैं‚ जैसे व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी वाले वाकई सही हों और नेहरू भी सचमुच मुसलमानी नाम हो। कश्मीरी पंडित भी कोई हिन्दू हैं‚ लल्लू! यह मोदी जी को जबर्दस्ती‚ मार–मार कर कम्यूनल बनाना नहीं, तो और क्या हैॽ और ये हाल खुद को मोदी जी के आगे पढ़ा–लिखा दिखाने वालों का है। ये अभी तक नाम पर ही अटके हुए हैं‚ वह भी उसी नेहरू नाम पर। इंडियावालों, शुक्र मनाओ कि मोदी जी ने पहले नेहरू मैमोरियल म्यूजिअम एंड लाइब्रेरी ट्रस्ट और अब म्यूजियम एंड लाइब्रेरी का ही नाम बदला है। जवाहरलाल नेहरू का ही नाम बदल कर पीएम कर देते तो! बच्चे पूछते ही रह जाते–जब पीएम माने मोदी हैं‚ तो जवाहरलाल कौन?