डा. श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट
देश की आजादी के आंदोलन की
अगस्त क्रांति है अनूठी गाथा
सन 1857 से पहले रची थी
इतिहास बनी जो क्रांति गाथा
रुड़की के कुंजा बहादुर गांव की
इतिहास में दर्ज है अमर कहानी
सन 1824 में बगावत करके
खूब धूल चटाई थी अंग्रेजों को
राजा विजय सिंह ने इतिहास रचा
हक दिलवाया था किसानों को
लड़ते लड़ते शहीद हो गए
सिर नही झुकाया राजा ने
152 को वट वृक्ष पर लटकाया
तिरंगा न झुकने दिया वीरो ने
राष्ट्र प्रेम की यह गौरव गाथा
आज कुंजा की हर कोई कहता।
देश की आजादी का पहला बिगुल सन 1824 में हरिद्वार के कुंजा बहादुरपुर गांव से बजा था। इसलिए मेरठ से उठी आजादी की सन 1857 की चिगांरी को पहली आजादी की चिंगारी बताना भी पूरी तरह से एक बड़ी भूल है क्योकि देश में सन 1857 से पहले ही आजादी का बिगुल हरिद्वार के कुंजा से बज चुका था। यानि उत्तराखण्ड राज्य के हरिद्वार जिले के ग्राम कुन्जा बहादुरपुर में सन 1824 में ही क्रांति की पहली मशाल जल गई थी। इस गांव में किसानों ने अंग्रेजों के खिलाफ विरोध का बिगुल बजाया था ।
कुन्जा बहादुरपुर के तत्कालीन राजा विजय सिहं ने इस क्रांति का नेतृत्व किया था । वर्षा न होने पर गांव में किसानों की फसल सूख गई थी। किसान फसल पैदा न होने के कारण सरकार को लगान देने की स्थिती में नही थे। मजबूर होकर उन्होने ने राजा विजय सिंह से लगान माफ करने की गुहार लगाई । राजा को किसानो की मांग उचित लगी तो उन्होने अंग्रेजो से उस साल का लगान न लेने की प्रार्थना की परन्तु अंग्रेज नही माने और राजा की प्रार्थना को अंग्रेजो ने उन्हे दुत्कारते हुए
ठुकरा दी। जिसकारण राजा विजय सिहं अंग्रेजो से नाराज़ हो गए और उन्होने अंग्रेजो द्वारा जबरन लगान वसूली का विरोध करने का फैसला किया और उन्होने क्षेत्र के लोगों के साथ मिलकर देश की पहली क्रान्ति को जन्म दिया।
इसी विरोध के कारण राजा विजय सिंह अंग्रेजो की आंख की किरकिरी बन गए थे। अंग्रेजो ने कुंजा बहादुरपुर को नेस्तनाबूद करने के लिए गांव के कुएं में पीसा हुआ कांच मिला दिया और रात्रि में हमलाकर विद्रोहियों को कुचलने की कौशिश की। राजा विजय सिंह ने भी अंग्रेजो का जमकर मुकाबला किया। उनके सेनापति कल्याण सिंह ने अपनी सैन्य टुकडी के साथ अंग्रेजों पर आक्रमण कर ग्राम कल्हालटी में ज्वालापुर से लाए जा रहे सरकारी खजाने को लूट लिया था। जिससे बोखलाए अंग्रेजो ने गांव के 152 विद्रोहियों को एक ही दिन में रूडकी के पास गांव सुनहरा के वट वृक्ष पर लटकाकर फांसी दे दी थी।जिससे खोफजदा होकर ग्राम सुनहरा, रामपुर व मतलबपुर के लोग अपने धर छोडकर जगंलो में जा छिपे
थे। अंग्रेजो के साथ हुए युद्ध में राजा विजय सिंह जहां शहीद हो गए ,वही उनके सेनापति कल्याण सिंह की अंग्रेजो ने हत्या कर उसका शव देहरादून जेल के मुख्यद्वार पर लटका दिया था। इसी कारण कुन्जा बहादुरपुर की गिनती शहीद ग्राम के रूप में होती है और उत्तराखण्ड सरकार ने इसी कारण इस गांव को पर्यटन गांव भी धोषित किया हुआ है। वही सुनहरा का ऐतिहासिक वट वृक्ष भी शहीद स्मारक के रूप में दर्शनीय है और पयर्टन विभाग द्वारा इस स्थल का भी सौन्द्रयकरण किया गया हैं।
इस स्मारक पर प्रति वर्ष 10 मई को रूडकी के लोग श्रद्धांजलि सभा का आयोजन करते है। देश में आजादी की इस पहली लडाई के दौरान 27 सितम्बर सन 1930 को रूडकी के राजकीय हाई स्कूल जो अब इन्टर कालेज है,में एक जनसभा हुई थी जिसमें अरूणा आसफ अली आई थी इस सभा की भनक पुलिस को लग गई थी और पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया था, इस धटना में एक दर्जन लोग धायल हुए थे। जबकि 28 लोगो को पुलिस ने गिरफ्तारकिया था। इसी तरह 3 सितम्बर 1930 को झबरेडा में अंग्रेजो को देश से भगाने के लिए हुई जनसभा में पुलिस ने लाठी चार्ज कर लोगो को वहां से भगा दिया था।
भगवानपुर मे तो इस बाबत हुई जनसभा में पुलिस के लाठी चार्ज से लाला बल्ली मल्ल बूरी तरह धायल हो गए थे।जिसकारण उनकी शहादत हो गई थी। तब से सन 1857 तक अंग्रेजो के खिलाफ हरिद्वार जिले तत्कालीन जिला सहारनपुर के लोगो का आन्दोलन जारी रहा। सन 1857 के अगस्त माह में रूडकी के तत्कालीन ज्वांइट मजिस्टृट एचडी राबर्टसन ने अंग्रेजो के खिलाफ विद्रोह कर रहे लोगो के प्रति कू्ररता दिखाई और ग्राम भनेडा की गुर्जर बस्ती में आग लगवा दी तो लोगो में उनके प्रति इतना गुस्सा व्याप्त हो गया कि उन्हे रूडकी से 6 मील दूर कस्बा मंगलौर जाने के लिए लोगो के जगह जगह विरोध के कारण तीन दिन लग गए थे।
स्वतन्त्रता आन्दोलन के इन लम्हों को हमेशा याद करने के लिए रूडकी में सुनहरा वट वृक्ष के नीचे हर वर्ष क्षेत्र के स्वतन्त्रता सेनानी और उनके वंशज एक श्रद्धाजंलि सभा का आयोजन करते है।जिसमें उन 152 अमर शहीदों जिन्हे एक ही दिन में क्रूर अंग्रेजो ने सुनहरा वट वृक्ष पर फांसी पर लटका दिया था,समेत अन्य शहीदों को भी श्रद्धासुमन अर्पित किये जाते है। शहीद ग्राम का सम्मान प्राप्त गांव कुंजा बहादुरपुर के विकास के लिए और गांव की पहचान देश विदेश तक पहुंचाने के लिए गांव के बुजुर्ग चौधरी अजमेर सिंह जबतक जिये काफी भागदौड करते रहे परन्तु राजनेताओ की अनदेखी के चलते इस गांव को अभी तक पर्यटन गांव के रूप में स्वीकृत विकास राशि का भी लाभ नही मिल पाया है।हालांकि पिछले दिनों जिला पंचायत ने गांव के बाहर आजादी क्रांति स्मृति द्वार जरूर बनवा दिया है।जो कुंजा के आंदोलनकारियों के प्रति एक सच्ची श्रद्धांजलि है।
(लेखक अमर शहीद जगदीश प्रसाद वत्स के भांजे है)