डा सुशील उपाध्याय
क्या किसी शैक्षिक संस्थान की गुणवत्ता इस आधार पर निर्धारित की जा सकती है कि उसके कुछ छात्रों को कैंपस सिलेक्शन में एक करोड़ से या उससे अधिक की जाॅब ऑफर हुई है ? कुछ साल पहले तक कैंपस सिलेक्शन में एक करोड़ का सालाना पैकेज बड़ी खबर था, लेकिन फिर ये दो करोड़, तीन करोड़ और अब चार करोड़ तक जा पहुंचा है। उम्मीद है कि जल्द ही किसी स्टूडेंट को पांच करोड़ का पैकेज मिलने की खबर भी आ जाए। लेकिन, क्या इन खबरों से प्रभावित होकर संबंधित संस्थानों में अपने बच्चों को एडमिशन दिलाना चाहिए या आंकड़ों को एक बार फिर देखना चाहिए!
देश में हर साल मई से अगस्त के बीच चलने वाले एडमिशन अभियान में ज्यादातर प्राइवेट सेक्टर के विश्वविद्यालय और संस्थान अपनी गुणवत्ता के प्रदर्शन के लिए उच्चतम वेतन पैकेज को प्रचार का केंद्र बनाते हैं।
विज्ञापनों में उन युवाओं का विवरण खासतौर पर होता है जिन्होंने बीते सत्र के कैंपस सिलेक्शन में सबसे अधिक वेतन वाली नौकरी ऑफर हुई है। वैसे, अब औसत स्तर वाले संस्थानों के कुछ छात्रों को भी 50-60 लाख का पैकेज मिलने की बात देखने-पढ़ने को मिल जाएगी।
आईआईटी और एनआईटी के मामले में तो एक करोड़ के पैकेज की बात भी सामान्य घटना हो चुकी है क्योंकि वर्ष 2022 के कैंपस सिलेक्शन में नियोक्ताओं द्वारा आईआईटी मद्रास के 25 बीटेक छात्रों को एक-एक करोड़ का पैकेज ऑफर किया गया। सभी आईआईटी, एनआईटी, आईआईएम और कुछ चुनिंदा प्राइवेट विश्वविद्यालयों को शामिल कर लें तो एक करोड़ से अधिक का ऑफर पाने वालों की संख्या सैंकड़ों में होगी।
जिन्हें दो करोड़ का पैकेज मिला है वे भी दर्जनों में हैं। एलपीयू, जो एक प्राइवेट यूनिवर्सिटी है, उसके बीटेक छात्र को तीन करोड़ का पैकेज मिल चुका है। पिछले साल ही आईआईटी मुंबई के तीन बीटेक छात्रों को चार-चार करोड़ ऑफर किया जा चुका है। अब पांच करोड़ के पैकेज वाली खबर की इंतजार है, जो संभव है कि 2024 तक सामने आ जाए।
अब सवाल ये है कि सबसे अधिक वेतन पाने वालों का विवरण तो सामने आ गया है, लेकिन विभिन्न नामी संस्थानों में औसत वेतन ऑफर कितना रहा हैै। मीडिया केंद्रित प्रचार से परे जाकर बात करें तो गुणवत्ता का निर्धारण वेतन के सर्वाेच्च आंकड़े की बजाय औसत आंकड़े से किया जाना चाहिए।
इसके लिए वर्ष 2022 में आईआईटी मद्रास का औसत देख सकते हैं। इस साल यहां 80 फीसद बीटेक छात्रों को जॉब ऑफर मिले और इनका औसत 21.48 लाख रहा। देश की अन्य सभी पुरानी आईआईटी में यह औसत 18-20 लाख रुपये के बीच ही रहा। यकीनन, यह वेतन कोई छोटा आंकड़ा नहीं है, लेकिन ट्रिपलआईटी और एनआईटी के मामले में जाॅब ऑफर का औसत और नीचे आ जाता है। इसी क्रम में केंद्रीय विश्वविद्यालयों और राज्यों के प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालयों के औसत वेतन का आंकड़ा यदि 10-12 लाख तक पहुंच जाए तो बड़ी बात है।
भारत में इतने वेतन को भी कम नहीं माना जा सकता क्योंकि जब भारत सरकार या राज्य सरकार बीटेक उपाधि वाले किसी युवा को इंजीनियर के तौर पर नियुक्त करती है तो उसकी वेतन पैकेज 12 लाख सालाना के लगभग होता है।
यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि सरकारी संस्थानों के मामले में उनके कैंपस सिलेक्शन के आधार पर मिले औसत वेतन पैकेज की जानकारी मिल जाती है, लेकिन प्राइवेट संस्थानों के संबंध में ऐसा नहीं है क्योंकि उनका जोर सर्वाधिक वेतन ऑफर पाने वाले छात्रों को प्रचार में लाकर अन्य युवाओं को आकर्षित करना होता है। यह स्वतः ही स्पष्ट है कि प्राइवेट क्षेत्र की कुछ प्रतिष्ठित संस्थाओं को छोड़कर अन्य संस्थाओं मैं कैंपस सिलेक्शन के जरिये नौकरी पाने वालों की संख्या उनकी कुल संख्या की तुलना में बहुत कम होती है और औसत वेतन ऑफर 4-6 लाख तक पहुंच जाए तो भी उल्लेखनीय बात माननी चाहिए। ऐसे संस्थानों में जो जाॅब ऑफर किए जा रहे हैं, उनकी गुणवत्ता पर भी अलग से बात की जा सकती है।
उच्चतम पैकेज के संदर्भ में दो बातों को ध्यान में रखे जाने की जरूरत है। पहली, किसी संस्थान की गुणवत्ता इस बात निर्धारित नहीं होती कि उसके कुछ छात्रों को एक-दो-तीन करोड़ की नौकरी का जाॅब ऑफर मिला है। बल्कि, इसका निर्धारण उसकी नैक या एनबीए की ग्रेडिंग, एनआईआरएफ की रैंकिंग और क्यूएस वर्ल्ड रैंकिंग से ही हो सकता है। यदि कोई संस्थान नैक में ए-प्लस/ए-डबल प्लस, एनआईआरएफ में टाॅप-200 और क्यू एस वर्ल्ड रैंकिंग में टाॅप-500 में शामिल है तो फिर मानना चाहिए कि संबंधित संस्था गुणवत्ता के पैमाने पर ऊंचे स्तर पर है। इसमें भी ये देखना जरूरी है कि जिस विभाग या फैकल्टी में एडमिशन लिया जाना है, उसका ग्रेड या रैंकिंग क्या है। किसी एक संस्थान में कोई एक फैकल्टी या विभाग ऊंची रैंकिंग/ग्रेड का हो सकता है, जबकि दूसरा निचले ग्रेड का हो सकता है।
इसी के साथ यह भी देखना चाहिए कि कैंपस सिलेक्शन के दौरान कुल कितने युवाओं को जॉब ऑफर मिला। यदि दो तिहाई या इससे अधिक का सिलेक्शन हुआ है तो इसे अच्छा माना जा सकता है क्योंकि आईआईटी और आईआईएम में भी यह 75-80 प्रतिशत के बीच ही होता है।
वैसे, जब किसी युवा के करियर की बात होती है तो उसमें नौकरी मिलना एक पहलू है। इसके दूसरे पहलू व्यक्तित्व विकास और सामाजिक विकास से भी जुड़े हैं क्योंकि किसी संस्थान में नई पीढ़ी को मशीन की पुर्जे में नहीं, बल्कि समाज के लिए उपयोगी व्यक्तित्व में बदला जाना ही मूल उद्देश्य होता है और होना भी चाहिए। किसी भी संस्थान के संबंध में यह बात भी उल्लेखनीय है कि एडमिशन लेने वाले कुल छात्रों में लगभग आठ-दस फीसद ऐसे होते हैं जो अपनी कुव्वत और काबिलियत के बल पर आगे बढ़ते हैं। इन्हें किसी भी औसत संस्थान में दाखिल करा दीजिए और औसत सुविधाओं के बीच पढ़ाइए, ये तब भी बेहतरीन प्रदर्शन करेंगे। ऐसे छात्रों के परिणाम और अकादमिक प्रदर्शन में संस्थान और उसके शिक्षकों की भूमिका सीमित ही होती है। यहां भी वही प्रश्न है कि किसी संस्थान में प्रवेश के बाद औसत छात्रों ने किस स्तर का प्रदर्शन किया। जिन्हें प्रवेश के वक्त औसत छात्र माना गया था, उनके अंतिम प्रदर्शन के आधार पर ही संस्थानों की गुणवत्ता का निर्धारण किया जाना चाहिए, चाहे वे सरकारी संस्थान हों या प्राइवेट। वस्तुतः इनके प्रदर्शन में शिक्षकों और संस्थान की बड़ी भूमिका होती है।
करोड़ों रुपये के जाॅब ऑफर में एक और बात समझने लायक है। वो, ये कि ऐसी ज्यादातर नौकरियां देश के बाहर होती हैं। उदाहरण के लिए किसी व्यक्ति को एक करोड़ की जाॅब अमेरिका या कनाडा में ऑफर की गई है तो ये भी देखना होगा कि भारत की तुलना में वहां का लिविंग-लेवल लगभग तीन गुना महंगा है। मोटे तौर मान सकते हैं कि ये करोड़ रुपया अमेरिका या कनाडा में 33-34 लाख जितनी हैसियत रखता है। अब इन दोनों देशों की न्यूनतम मजदूरी दरें देखिए। अमेरिका के कैलिफोर्निया में वर्ष 2022 में स्किल्ड लेबर को 15 डॉलर प्रति घंटा या एक दिन के आठ घंटे के लिए 120 डॉलर मिलते हैं। इन्हें डाॅलर की मौजूदा दर (82 रुपये में एक डाॅलर) से गुणा करके रुपये में बदलिए तो लगभग दस हजार रुपये रोजाना होंगे। महीने में 25 दिन काम करने पर ढाई लाख रुपया महीना और साल भर का 30 लाख और यदि इस रुपये को भारत ले आएं तो लिविल-लेवल के पैमाने पर तीन गुना होकर यह 90 लाख हो जाएगा। अब तुलना कीजिए कि एक करोड़ के अमेरिका या कनाडा स्थित जाॅब और स्किल्ड लेबर के वेतन में कितना अंतर है! इसलिए जब एक-दो करोड़ रूपये सालाना के पैकेज की बात हो तो यकीनन यह भारत के संदर्भ में आकर्षक है, लेकिन विदेश के मामले में औसत स्तर की है।
प्रारंभिक स्तर पर हमेशा ही निजी क्षेत्र के जाॅब ऑफर काफी प्रभावपूर्ण होते हैं क्योंकि सातवें वेतन आयोग में सरकार की बडी़ से बड़ी नौकरी भी तीन लाख रुपया महीना से ज्यादा की नहीं है। किसी क्षेत्र के एक्सपर्ट को सलाहकार के तौर पर नियुक्त करने की स्थिति में भी शायद ही कोई सरकार पांच लाख प्रतिमाह से अधिक भुगतान कर पाती हो, लेकिन दोनों क्षेत्रों में एक बुनियादी अंतर यह है कि निजी क्षेत्र का आकार पिरामिड की तरह होता है, जैसे-जैसे ऊपर की ओर जाते हैं, अवसर घटने लगते हैं और 50 साल की उम्र तक आते-आते निजी क्षेत्र में संभावनाएं सिकुड़ने लगती हैं। ऐसे में कुछ गिने-चुने लोगों को ही उच्च वेतन का लाभ मिलता है। इसकी तुलना में सरकारी क्षेत्र चौकोर/आयताकार होता है। इसमें हर किसी के लिए आगे बढ़ने का समान अवसर और आर्थिक सुरक्षा की गारंटी होती है। बीते कुछ दशकों पर निगाह डालिये तो सरकारी क्षेत्र में पांच साल में वेतन दोगुना होता रहा है। दस साल में हरेक नया वेतन आयोग आने के बाद इसमें और बढ़ोत्तरी होती है। लेकिन, प्राइवेट क्षेत्र के संबंध में ऐसा नहीं कह सकते। लगभग यही बात प्राइवेट और सरकारी शिक्षण संस्थानों पर भी लागू होती है। प्राइवेट शिक्षण संस्थानों का प्रचार बहुत ज्यादा है और इनसे लाभ पाने वालों की संख्या सीमित है। इसलिए जब गुणवत्ता का निर्धारण करें तो किसी संस्थान के कुछ छात्रों को मिलने वाले एक करोड़ या इससे अधिक के पैकेज को आधार नहीं बनाया जाना चाहिए, बल्कि इसे समग्रता में देखना चाहिए।