रह-रह कर हूक उठी कि किसी से पूछ लूं कि मैं उन्हें जिंदा दिखाई पड़ रहा हूं क्या? सहमते-सहमते मैंने एक युवा से पूछ लिया। इस पर उसने अजनबी निगाह से देखा। बोला, कहां-कहां से आ जाते हैं, कार्टून। इन्हें अपने होने पर ही शक है। फिर…मैंने मन ही मन हिसाब लगाया कि वे 1950 में अवतरित हुए थे। इस तरह तो वे 96 के हो गए होंगे। या कोई नया विश्व गुरु आ गया है। मन में आया कहीं, बुलडोजर बाबा का राज तो नहीं आ गया…
वीरेंद्र सेंगर
जितना आगे बढ़ रहा था, उतना ही भटकाव तेज हो रहा था। मैं कब से चले जा रहा था? धड़कन बढ़ रही थी। समझ में नहीं आ रहा था कि कहां आ गए? हर मोड़ के बाद एक नया मोड़। घंटों चलने के बाद एक मंदिर दिखाई पड़ा। वहां भीड़ जमा थी। ढोल बज रहा था। भजन कीर्तन का शोर था। कीर्तन के बोल समझ में नहीं आ रहे थे।
‘जय भोले शंकर’ या ‘हरे-हरे’ की जगह लोग झूम झूम कर, ‘विश्व गुरु!’ ’विश्व गुरु!’ बोले जा रहे थे। सभी कीर्तनियों के नेत्र भारी श्रद्धा से मूंदे हुए लगे। कपड़े देख कर लगा कि ज्यादातर गरीबी रेखा से नीचे वाले हैं। लेकिन किसी के चेहरे पर गरीबी की पीड़ा झलक नहीं रही थी। वे करीब सौ रहे होंगे। लगभग हर उम्र के लोग। करीब 20 मिनट हो गए थे। भजन की लय कुछ थमे, तो मैं किसी से बात करूं। इसी इंतजार में था।
अब घंटे-घड़ियाल बजने लगे थे। भजन को ऊंची आवाज में गाने वाले चुप थे। एक पुजारी नुमा थुल-थुल शरीर वाले अधनंगे सज्जन आगे आ रहे थे। जनता उनके चरण स्पर्श के लिए टूट पड़ी। पुजारी जी कुछ बुद बुदा रहे थे। जो ठीक से नहीं सुनाई पड़ रहा था।
हाथ जोड़े कुछ महिलाएं बोलीं- वे कुछ कह रही थीं? शोर के बीच उनकी आवाज दबी जा रही थी। शायद कुछ कहा होगा या मांगा होगा! भगवान जी के दूत सर! कुपित हुए। वे गुस्से से तमतमाने लगे। इस गुस्से को समझ कर लोग सहम गए। कातर समवेत स्वर उभरे। माफ कीजिए गुरु जी! ये नादान हैं। सरकार से सवाल नहीं करते। जो देना है भगवान जी देंगे। यही प्रजा धर्म है।
इसी बीच माइक से घोषणा हुई देखो! बस एक साल और धीरज करो। राजा जी ने विश्व कल्याण के लिए जो वचन दिए थे। वे सब के सब पूरे होंगे। अभी तो 2046 ही चल रहा है। अगले साल ही आजादी के 100 वर्ष पूरे हो रहे हैं। पूरे देश-समाज को हर हाल में जश्न मनाना है। कोई रोना-धोना नहीं। ये महंगाई और बेरोजगारी समाप्त होने को है।
किसानों की आमदनी दोगुनी नहीं, बीस गुना बढ़ जाएगी। आप सबको राजा के मंसूबे पर शक नहीं करना चाहिए। अरे नालायकों! राजा जी तो भगवान के साक्षात प्रतिनिधि होते हैं। भगवान जी का कोई शरीर तो होता नहीं। राजा जी के शरीर में महाप्रभु की झलक देखो। मस्ती से भजन करो। राजा जी के गुन गाओ।
ईश्वर को धन्यवाद दो कि तुम्हें उसने इस आस्थावान भारत महादेश में पैदा किया। यूरोप जैसे पथभ्रष्ट देशों में नहीं पैदा किया।
वहां के लोग सीधे नर्क में जाते हैं। इसी बीच एक सवाल आया। अरे गुरु जी! अरब देशों के लोग परलोक में कहां भेजे जाते हैं? वे सब विधर्मी “रौरव नरक” में ही स्थान पाते हैं। गुरुजी बड़े आत्मविश्वास से बोल रहे थे। संवाद अवधी लहजे में हो रहा था। यानी हिंदी में। सो, इतना तो तय हो गया कि मैं ज्यादा भटका नहीं हूं। सौ-दो सौ कोस दूर भटक कर कहीं लगा हूं।
यह जरूर अटपटा लगा कि ये 2046 कैसे अचानक धड़ाम से आ गया? अभी मैंने 2023-24 का आईटीआर रिटर्न भरा था। समय ने इतनी लंबी जंप कैसे लगा ली? मैं वही मुड़ी-तुड़ी हाफ शर्ट और जींस पहने था। कुछ मुझे खटका लगा कि कहीं मर तो नहीं गया? अब मेरी रूह बेचैन होकर भटक रही हो? क्या रुह कपड़े भी नहीं बदलती? ऐसे तमाम सवाल मेरे दिमाग में घूमने लगे।
फिर लगा कि शायद मैं यहां भीड़ को देख-सुन रहा हूं। वे लोग मुझे ना देख पा रहे हो। क्योंकि भूतों को लोग, नंगी आंखों से देख नहीं पाते। मुझे अपनी असलियत पर भी घोर शक होने लगा।
रह-रह कर हूक उठी कि किसी से पूछ लूं कि मैं उन्हें जिंदा दिखाई पड़ रहा हूं क्या? सहमते-सहमते मैंने एक युवक से पूछ लिया। इस पर उसने अजनबी निगाह से देखा। बोला, कहां-कहां से आ जाते हैं, कार्टून। इन्हें अपने होने पर ही शक है। फिर तो इन्हें भगवान जी पर भी उतना विश्वास नहीं होगा। अपने विश्व गुरु जी की महानता पर भी गर्व नहीं होगा। मैं अपनी मजबूरी बताने की कोशिश कर रहा था। लेकिन उसने नहीं सुनी। मैंने मन ही मन हिसाब लगाया कि वे 1950 में अवतरित हुए थे। इस तरह तो वे 96 के हो गए होंगे। या कोई नया विश्व गुरु आ गया है। मन में आया कहीं, बुलडोजर बाबा का राज तो नहीं आ गया। मुझे यह सोचने भर से पसीना आ गया। इसी बीच मोबाइल बजा। नींद टूटी। सुबह के सात बज रहे थे।