मणिपुर में एक कहानी ये भी…

एक्सक्लूसिव स्टोरी (पार्ट 2)

  • संरक्षित वनांचल में सरकार के बेदखली अभियान से कुछ जनजातीय लोगों में नाराजगी बढ़ी
  •  मुख्यमंत्री के हालिया कुछ बयानों को कुछ जनजातीय लोगों ने खुद को सताए जाने के तौर पर देखा

ममता सिंह, नार्थ ईस्ट एक्सपर्ट

हालिया हिंसा के बाद ऐसा भी कहा जा रहा है कि पहाड़ी जिलों में खासकर संरक्षित वनांचल में सरकार के बेदखली अभियान और मुख्यमंत्री के इन बयानों को कुकी जनजाति ने खुद को सताए जाने के तौर पर देखा है।

उग्र विरोध स्वदेशी जनजातीय नेताओं ( आईटीएलएफ ) का एक फोरम कर रहा था। फोरम के लोग मणिपुर सरकार के उस फैसले का विरोध कर रहे हैं जिसके तहत उन वन क्षेत्रों का एक सर्वे होना है जो आदिवासियों के लिए आरक्षित और संरक्षित है। नाराज लोगों का कहना है कि सरकार इसके बहाने चर्चों को अवैध बताकर गिराना चाहती है।
मणिपुर शासन के सरकारी प्रवक्ता ने माना है कि 2008 के शांति समझौते बीच ही मणिपुर के दो जिलों चुराचंदपुर और नोनी जिले में पड़ने वाले चुराचंदपुर-खोउपुम प्रोटेक्टेड फॉरेस्ट एरिया में लोगों ने अवैध अतिक्रमण कर रखा है, जिसे खाली करने के लिए मणिपुर की एन बीरेन सिंह की सरकार अगस्त 2022 से ही नोटिस भेज रही थी। और जब 20 फरवरी 2023 को के सोंगजांग जिले में पुलिस फोर्स ने जबरन गांव को खाली करवाने की कोशिश की तो बीते 10 मार्च को सरकार के इस फैसले के खिलाफ कुकी समुदाय ने एक विरोध मार्च निकालने का फैसला किया। ये मार्च मणिपुर के तीन जिलों कांगपोकपी, चुराचंदपुर और टेंगनुपाल जिले से होकर गुजरने वाला था। इसे रोकने के लिए एन बीरेन सिंह की सरकार ने धारा 144 लगा दिया। फिर भी मार्च निकला और कुछ जगहों पर हिंसक हो गया। प्रदर्शनकारी भी घायल हुए और पुलिस वाले भी। इसके बाद ही हिंसा का माहौल बनने लगा।

‘वार ऑन ड्रग्स’ अभियान से नाराजगी

सरकार का अवैध घुसपैठ, वन क्षेत्र में उनके हक, हकदारी और कब्जेदारी को लेकर 2018 से ‘वार ऑन ड्रग्स’ अभियान जारी है जिससे लंबे समय से जनजातीय क्षेत्रों के लोगों में नाराजगी है। अभियान के तहत सरकार की पैनी नजर हजारों एकड़ हरे-भरे जंगलों का साफ करके बड़े पैमाने पर हो रही अफीम की खेती पर भी टिकी हुई है। सरकारी की ओर से हालिया जारी आंकड़े बताते हैं कि 2017-18 में 13121.8 एकड़ भूखंड पर अफीम की खेती हुआ करती थी लेकिन 2022-23 में सरकारी अभियान के बाद अफीम की खेती 2340 एकड़ भूखंड पर नागाओं द्वारा की जा रही है। जबकि मात्र 35 एकड़ पर अन्य जनजातीय लगी हुई हैं।

अभियान का दूसरा चरण काफी सख्त

सरकार मानती है कि मणिपुर अवैध मादक द्रव्यों का प्रवेशद्वार बनता जा रहा है जिससे खतरा न केवल मणिपुर को है, बल्कि शेष भारत को भी है। यह तथ्य भी परेशान करने वाला है कि साढ़े 28 लाख की आबादी वाले मणिपुर में करीब डेढ़ लाख युवा नशे की गिरफत में हैं। इसलिए बीरेन सरकार का कहना है कि ड्रग्स के खिलाफ हमारा अभियान जारी रहेग।
जानकार मानते हैं कि अभियान के बावजूद अफीम की खेती का रकबा बढ़ता जा रहा है। इसके पीछे जनजातीय लोगों को आर्टिकल-371 ( सी ) के तहत मिले असीमित अधिकार भी शामिल हैं। मौजूदा समय में ‘वार ऑन ड्रग्स’ का दूसरा चरण जारी है जिसमें सरकार का रूख पहले के बजाय ज्यादा सख्त माना जा रहा है।

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