नयी दिल्ली। भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने वाली याचिकाओं के एक बैच की सुनवाई शुरू कर दी है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम में कोई कानूनी कमी नहीं है और सवाल सामाजिक-कानूनी मंजूरी देने का नहीं है। उन्होंने अदालत को अवगत कराया कि यह स्पष्ट किया गया है कि कोई भी ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के साथ भेदभाव नहीं करेगा। उन्होंने कहा कि ट्रांसजेंडर के लिए आरक्षण के प्रावधान हैं। जिस पर भारत के मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि जैविक पुरुष और महिला की पूर्ण अवधारणा जैसी कोई चीज नहीं है। एसजी ने समलैंगिक विवाह को मान्यता देने वाली याचिका पर प्रारंभिक आपत्ति जताते हुए केंद्र की याचिका पर पहले विचार करने की बात दोहराई।
याचिकाकर्ता विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के प्रावधानों को “पुरुष और महिला” की बजाय “पति-पत्नी” के बीच विवाह के रूप में पढ़ने की मांग कर रहे हैं। इस बीच, सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अदालत को पहले संबोधित करने की आवश्यकता है। तुषार मेहता ने कहा कि क्या संसद के बजाय नए सामाजिक-कानूनी संबंध बनाने के लिए न्यायपालिका सही मंच है। मैं बस इतना कह रहा हूं कि संसद को इस पर विचार करने दें। संसदीय समितियां इन मुद्दों पर विचार करेंगी। सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि हमने संसदीय समितियों के साथ व्यापक रूप से काम किया है। आपके तर्कों का हम पर पड़ने वाले प्रभाव को कम मत समझिए। हम बीच का रास्ता निकालना चाहते हैं।
याचिकाकर्ता की ओर से मुकुल रोहतगी ने अपनी दलील 377 को अपराध के दायरे से बाहर किए जाने के मुद्दे के साथ शुरू की। उन्होंने कहा कि समलैंगिकों को गरिमापूर्ण जीवन जीने के अधिकार, निजता का सम्मान और अपनी इच्छा से जीवन जीने का अधिकार मिलना चाहिए। घरेलू हिंसा और परिवार और विरासत को लेकर भी कोर्ट की गाइड लाइन साफ है। हमें ये घोषमा कर देनी चाहिए ताकि समाज और सरकार इस तरह के विवाह को मान्यता दें।