नैनीताल। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने कार्बेट पार्क के कालागढ़ वन प्रभाग में टाइगर सफारी के नाम पर बेहद संगीन आरोपों में जेल में बंद निलंबित प्रभागीय वनाधिकारी किशन चंद के खिलाफ हरिद्वार की मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में वन्य जीव संरक्षण अधिनियम से जुड़े एक अहम मामले में लगी रोक को 29 मार्च तक रोक बढ़ा दिया है।
दरअसल किशन चंद व जितेन्द्र के खिलाफ हरिद्वार के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में वन्य जीव संरक्षण अधिनियम,1972 की संगीन धाराओं 9, 39, 50 व 51 के तहत एक मामला (केस नंबर 5111/2007) लंबित है। आरोपी किशन चंद व जितेन्द्र की ओर से सन् 2019 में इस मामले को खारिज करने के लिये उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गयी।
अदालत ने 20 मार्च, 2019 को इस मामले में सुनवाई करते हुए सरकार से तीन सप्ताह में जवाबी हलफनामा दायर करने के निर्देश दिये और लंबित प्रकरण की कार्यवाही पर अगली तिथि तक रोक लगा दी। आश्चर्य की बात है कि सरकार चार साल तक सत्ता के बेहद करीब माने जाने वाले किशन चंद के खिलाफ इस मामले में जवाब दाखिल नहीं कर पायी और न ही अदालत सुनवाई कर पायी।
इस दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से विगत 07 फरवरी को एक प्रार्थना पत्र देकर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में लंबित वाद पर रोक बढ़ाने की मांग की गयी। प्रार्थना पत्र पर शीतकालीन कोर्ट न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की पीठ में सुनवाई हुई। अंतत: सरकार की ओर से चार साल बाद इस मामले में जवाब दाखिल कर लिया गया।
अदालत ने जवाबी हलफनामा को रिकार्ड में दर्ज कर लिया और इस मामले में अंतिम सुनवाई के लिये 29 मार्च की तिथि तय करते हुए हरिद्वार के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में लंबित वाद पर लगी रोक को बढ़ा दिया।
गौरतलब है कि किशन चंद पर सीटीआर के कालागढ़ वन प्रभाग के मोरघट्टी व पाखरो में टाइगर सफारी के नाम पर अवैध निर्माण और पेड़ों के पातन का आरोप है। इस मामले की जांच सतर्कता विभाग की ओर से की जा रही है। उच्च न्यायालय के निर्देश पर की गयी विभागीय जांच में दोषी पाये जाने पर किशन चंद को सरकार ने निलंबित कर दिया था और सतर्कता विभाग ने आरोपी को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया।