नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि आरोप पत्र सार्वजनिक नहीं किया जा सकता। न्यायमूर्ति एम. आर. शाह और न्यायमूर्ति सी. टी. रविकुमार की पीठ ने पत्रकार सौरव दास की एक जनहित याचिका खारिज करते हुए कहा कि प्राथमिकी की तरह आरोप पत्र सार्वजनिक दस्तावेज नहीं है।
इसे प्राथमिकी की तरह वेबसाइट पर डालना अनुचित होगा। पीठ ने कहा आरोप पत्र को सार्वजनिक करने से आरोपी, पीड़ति और जांच एजेंसी के अधिकारों का उल्लंघन होगा। शीर्ष अदालत ने अपने एक फैसले में आरटीआई कार्यकर्ता और खोजी पत्रकार श्री दास की एक जनहित याचिका खारिज कर दी।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने अन्य दलीलों के साथ-साथ यह भी तर्क दिया कि आरोप पत्र “सार्वजनिक दस्तावेज” हैं, जिसे किसी के द्वारा भी प्राप्त किया जा सकता है।
पीठ ने कहा विवाद को खारिज करते हुए कहा, “आवश्यक दस्तावेजों के साथ आरोप पत्र की प्रति को साक्ष्य अधिनियम की धारा 74 के अनुसार सार्वजनिक दस्तावेजों की परिभाषा के तहत सार्वजनिक दस्तावेज नहीं कहा जा सकता है।