भू धसाव ने बदल दी जोशीमठ की फिजा 

गोपेश्वर। हिमालय की गोद में खूबसूरती लिए हुए जोशीमठ नगरी की भू धसाव ने फिजा ही बदल दी है। इसके चलते हर एक के चेहरे पर अजीबोगरीब उदासी पसर गई है। आपदा का ग्रहण लगने से लोग अब अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए छटपटा रहे हैं।

तीर्थयात्रियों और पर्यटक गतिविधियों का केंद्र होने के कारण जोशीमठ टूरिस्ट हब बना रहा। यही वजह है कि सभी लोगों की बसागत जोशीमठ पर ही होने लगी। अब जबकि जोशीमठ पर प्रकृति की मार पड़ गई है तो यह ऐतिहासिक नगर अब अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए छटपटा रहा है। एक दौर में भारी चहल पहल का केंद्र बिंदु बने जोशीमठ में आपदा के बाद अब पहले जैसी रवानी नहीं रह गई है।

करीब 3 हजार से अधिक लोग मकानों पर दरार आने के कारण अपने भविष्य की चिंता में डूब गए हैं। यही वजह है कि अब जोशीमठ के हर एक व्यक्ति के चेहरे पर अजीबोगरीब उदासी पसारने लगी है। मौजूदा संकट के दौर में हर एक के चेहरों की हवाइयां उड़ कर रह गई हैं। अब तो जिंदगी बचाने को ही हर एक छटपटा रहा है।

हालात इस कदर चिंताजनक हो चले हैं कि भूकंपीय दृष्टि से जोन 5 में स्थित बेहद संवेदनशील जोशीमठ पर मौत की तलवार लटक गई है। हालांकि 7 के दशक में ही जोशीमठ पर भूस्खलन और भू धंसाव का साया मंडराने लगा था।

वर्ष 1976 में तत्कालीन गढ़वाल कमिश्नर महेश चंद्र मिश्रा की अध्यक्षता में जोशीमठ के बचाव के लिए कमेटी का गठन किया गया। महेश चंद्र मिश्रा कमेटी ने पूरे इलाके का अध्ययन कर रिपोर्ट सरकार को सौंपी। मिश्रा कमेटी ने सुझाव दिया था कि जोशीमठ में अनियंत्रित बहने वाले नालों को ब्यवस्थित कर अलकनंदा के बाईं ओर भू धंसाव रोकने के लिए उचित प्रबंध किए जाने चाहिए।

जोशीमठ नगर मे नियंत्रित निर्माण व तय मानकों के अनुसार ही निर्माण की स्वीकृति दिए जाने की संस्तुति की गई थी।

जोशीमठ के निचले हिस्से में न केवल ब्लास्ट को प्रतिबंधित करने बल्कि नदी किनारे पत्थरों के टिपान को भी वर्जित करने के सुझाव दिए गए थे। मिश्रा कमेटी की रिपार्ट को आधार मानते हुए वर्ष 1991 मे इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हेलंग-मारवाड़ी बाइपास निर्माण पर स्टे दे दिया था। इसके बावजूद अब बाइपास का निर्माण शुरू हो गया और तपोवन-विष्णुगाड़ जल विद्युत परियोजना का निर्माण भी चलता रहा।

अब लोग मकानों के दरकने से सडक़ पर आ गए हैं तो हर एक के चेहरे पर एक अजीबोगरीब उदासी पसरी है। फिलहाल सैकड़ों जिंदगियों को बचाने के लिए तात्कालिक और दीर्घकालिक उपाय जल्द शुरू करने होंगे। ऐसा नहीं किया गया तो रही सही कसर भी प्रकृति पूरी कर देगी।

 

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