नैनीताल । उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता सचिदानंद डबराल व अधिवक्ता शिव भट्ट को झटका देते हुए सोमवार को उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय (यूओयू) में तथाकथित अवैध नियुक्तियों के मामले में दायर जनहित याचिका को खारिज कर दिया है। अदालत ने याचिका को पोषणीयता व लोकस के आधार पर खारिज कर दिया है। मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी व न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की युगलपीठ में जनहित याचिका पर सुनवाई हुई।
याचिकाकर्ता की ओर से यूओयू में शैक्षणिक व गैर शैक्षणिक एक दर्जन पदों पर अवैध नियुक्तियों का मामला जनहित याचिका के माध्यम से उठाया गया। अदालत ने अधिवक्ता शिव भट्ट से सर्व प्रथम सर्विस मैटर के मामले में जनहित याचिका दायर करने के औचित्य पर सवाल दागा। याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि नियुक्तियों में भ्रष्टाचार हुआ है। विवि में क्षेत्रीय निदेशक की नियुक्ति व तैनाती में भी गड़बड़ी हुई है।
अदालत ने सख्त लहजे में दूसरा सवाल किया कि याचिकाकर्ता का जनहित याचिका दायर करने का क्या औचित्य व आधार है? पीड़ित व प्रभावित व्यक्ति को आवाज उठानी चाहिए और साधारण याचिका के माध्यम से अदालत का दरवाजा खटखटाना और नियुक्तियों को चुनौती देनी चाहिए।
याचिकाकर्ता के पास इन दोनों सवालों का कोई जवाब नहीं था। अदालत ने याचिकाकर्ता से कहा कि इस मामले में विवि के कुलाधिपति को प्रत्यावेदन देना चाहिए था। अंत में अदालत ने याचिका को लोकस व पोषणीयता के आधार पर खारिज कर दिया।
गौरतलब है कि पिछले सोमवार को वरिष्ठ न्यायमूर्ति संजय कुमार मिश्रा व न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की पीठ ने इस जनहित याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया था। तब भी अदालत ने जनहित याचिका की पोषणीयता पर सवाल उठाया था तथा याचिका को मुख्य न्यायाधीश की अगुवाई वाली पीठ में रैफर कर दिया था।