मोरबी हादसे के बाद घटना की गड़बड़ियों के अनेक साक्ष्य उभरकर आये

अहमदाबाद। मोरबी के पैदल ब्रिज के हादसों की सरकारी जांच के बीच ही गैर सरकारी स्तर पर अनेक नई जानकारियों सामने आ गयी हैं।

इनकी वजह से डबल इंजन की सरकार पर ही जनता ने सवाल खड़े कर दिये हैं। यह कहा जा रहा है कि हर सफलता के लिए इस डबल इंजन की दावेदारी करने वाले इस हादसे की जिम्मेदारी लेने से क्यों पीछे हट रहे हैं।

प्रारंभिक जांच में इस बात का खुलासा हो गया है कि मरम्मती के काम बिना टेंडर के ही घड़ी बनाने के लिए प्रसिद्ध कंपनी को दे दिया गया था।

इस कंपनी ने वहां काम किया था लेकिन फोरेंसिक जांच के नमूने यह बता रहे हैं कि इतनी पुरानी पैदल ब्रिज के उन तारों को नहीं बदला गया था, जो उसे संभालने का काम करते थे।

इसके अलावा यह भी पता चल गया है कि इस पैदल ब्रिज को अधिकतम 125 लोगों के एक साथ वहां होने के लिए तैयार किया गया था।
मोरबी नगरपालिका के दस्तावेज बताते हैं कि इस मरम्मती के काम के लिए वहां कोई टेंडर जारी नहीं किया गया था।

यह काम उसके बिना ही ओरेवा कंपनी को दिया गया था। पुरानी तारों की क्षमता बहुत अधिक घट चुकी थी इसलिए उनके टूटते ही ब्रिज ध्वस्त हो गया। दरअसल नदी में पानी कम होने की वजह से किनारों पर मौजूद लोग सूखी जमीन पर गिरने से मारे गये जबकि बीच में खड़े लोग नदी में डूबकर मरे हैं। वहां कुल कितने लोग थे, उसकी जांच अभी जारी है और अनुमान है कि मरने वालों की संख्या और अधिक हो सकती है।
यह भी पता चला है कि नगरपालिका के मुख्य कार्यकारी अधिकारी संदीप सिंह जाला ने वरीय अधिकारियों को इस ब्रिज को दोबारा खोलने की जानकारी भी नहीं दी थी। कंपनी ने भी इसका फिटनेस प्रमाणपत्र जारी नहीं किया था। ओरेवा कंपनी के प्रबंध निदेशक जयसुख भाई पटेल ने स्थानीय मीडिया को यह बताया है कि कंपनी ने दो करोड़ का पूरा काम किया है। दूसरी तरफ पता चला है कि दरअसल इस कंपनी ने भी यह काम देवप्रकाश सॉल्युशंस नाम किसी छोटी निर्माण कंपनी को सौंप रखा था। वीडियो के आधार पर यह माना जा रहा है कि इस पुल को हिलाने में जुटे कई युवाओं की कोशिश के दौरान ही ब्रिज को अपने स्थान पर रखने वाले लोहे के तार कहीं से टूटे। जिस कारण यह हादसा हुआ है।

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