नईदिल्ली । देश के टेलीफोन सेवाओं के विवादों का निपटारा करने वाली संस्था ट्राई यानी टेलिफोन रेगुलेटरी ऑथरिटी ऑफ इंडिया में भी केंद्र सरकार का हस्तक्षेप होगा। पहले यह संस्था पूरी तरह सरकार के नियंत्रण से मुक्त थी।
समझा जाता है कि निजी मोबाइल सेवा प्रदाताओं के कई मामलों में ट्राई के फैसलों से वर्तमान केंद्र सरकार खुश नहीं है। पहले ट्राई के ढांचे के तहत इसमें सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं होता था। अब नये बदलाव के तहत सरकार इसमें अपना दखल कायम करना चाहती है।
दूसरी तरफ बीएसएनएल जैसे सरकारी संस्था के जानकार यह मान रहे हैं कि यह कार्रवाई भी सिर्फ किसी खास निजी कंपनी को फायदा पहुंचाने की दिशा में एक सरकारी पहल है। इसी वजह से प्रस्तावित टेलीकॉम बिल में कई ऐसे संशोधन शामिल किये गये हैं जिनके लागू होने के बाद ट्राई की संवैधानिक स्वतंत्रता पर सरकारी हस्तक्षेप हो जाएगा।
वैसे इन प्रस्तावों के कुछ मामलों मं खुद ट्राई ने भी अपनी आपत्ति दर्ज करायी है लेकिन इन आपत्तियों पर निर्णय लेने का अधिकार अभी सरकार के पास ही है। खबर है कि टेलीफोन मंत्रालय में भी इस बात पर कई बार की वार्ता हो चुकी है।
सरकार का दावा है कि ट्राई को और मजबूत बनाने के लिए ऐसे संशोधनों की जरूरत है लेकिन दूसरे इसे निजी कंपनियों को फायदा पहुंचान की नई चाल मान रहे हैं। लोगों का कहना है कि अगर सरकार की मंशा ठीक होती तो देश की सबसे बड़ी टेलीकॉम कंपनी बीएसएनएल को फोर जी अथवा 5 जी की सुविधा का विशेष प्रबंध सरकार कर सकती थी।
ऐसा नहीं कर सरकार ने जानबूझकर बीएसएनएल को अपंग बनाये रखने का फैसला किया है। इससे निजी कंपनियों में से किसे अधिक फायदा हो रहा है, इस बात को अब हर कोई अच्छी तरह समझ रहा है।
विशेषज्ञों को आशंका है कि ट्राई में सरकारी हस्तक्षेप का प्रावधान देश की आम जनता के हितों की रक्षा में बाधक बन सकता है। अब समझा जा रहा है कि इन आपत्तियों के बारे में प्रधानमंत्री कार्यालय को भी अवगत कराया जाएगा।