रांची। अंतरिक्ष से धरती की तरफ आते किसी खगोलीय पिंड की दिशा बदलने का प्रारंभिक प्रयास सफल हुआ है। इसके तहत डार्ट मिशन अभियान की शुरूआत की गयी थी। इस खास अभियान में एक अंतरिक्ष यान को उस उल्कापिंड से योजना के तहत ही टकराया गया था।
इस योजना का असली मकसद यह देखना था कि इस टक्कर से उल्कापिंड की दिशा और धुरी में क्या बदलाव लाया जा सकता है। इसके बारे में अब जेम्स वेब टेलीस्कोप ने नई जानकारी दी है। उसके कैमरों ने इस उल्कापिंड की जो तस्वीर अब अपने नियंत्रण कक्ष को भेजी है, उसमें यह उल्कापिंड अब किसी धूमकेतु की तरह पूंछ वाला हो गया है।
वैसे उसके अपनी धुरी से हटने की जानकारी पहले ही हो गयी थी। इस आधार पर यह माना गया है कि धरती की तरफ आने वाले किसी बड़े आकार के उल्कापिंड को भी सुदूर अंतरिक्ष में किसी टक्कर अथवा परमाणु शक्ति संपन्न मिसाइल से दूसरी तरफ धकेला जा सकता है।
जिस उल्कापिंड के साथ सैटेलाइट की टक्कर करायी गयी थी, उसका नाम डिमोरफोस है। अब धरती से दूर जाते इस उल्कापिंड की नई तस्वीर मिली है। इन तस्वीरों को अंतरिक्ष में काम करने वाली खगोल दूरबीन जेम्स वेब टेलीस्कोप ने कैद किया है। इसमें अब उल्कापिंड के पीछे रोशनीयुक्त एक पूंछ सा नजर आ रहा है। आम तौर पर ऐसे चमकते पूछ धूमकुते में ही देखे जाते हैं।
यह पूंछ और कुछ नहीं बल्कि तेजी से गुजरते किसी पिंड की वजह से विद्युती आवेश में आये सौर कण होते हैं। इस उल्कापिंड के मामले में समझा जा रहा है कि सैटेलाइट की टक्कर होने के बाद उसके अपने कण भी रास्ते में पीछे छूटते जा रहे हैं और तेज गति की वजह से वे ही आवेशित होकर ऐसी रोशनी फैला रहे हैं।
वैसे उल्कापिंड से सैटेलाइट की टक्कर के वक्त यह नहीं सोचा गया था कि इस टक्कर के बाद उसके दो ऐसे चमकीले पूंछ बन जाएंगे। इस बारे में शोधदल ने भी कोई निष्कर्ष नहीं निकाला है।
टक्कर के बाद ही यह स्पष्ट हो गया था कि इतनी तेज गति से टक्कर होने के बाद उल्कापिंड का आकार भी बदल गया है। लेकिन किसी धूमकेतु की तरह यह चमकदार पूछल्ला लेकर आगे बढ़ेगा, इसका अनुमान नहीं लगाया गया था। इस बीच नासा की तरफ से यहा कहा गया है कि अगले एक सौ वर्षों में किसी टकराने और खतरा पैदा करने वाले उल्कापिंड की कोई जानकारी नहीं है।
इसके बाद भी अंतरिक्ष वैज्ञानिक पहले से ही इसकी तैयारियों में जुटे हैं। इसका मकसद यह तय करना है कि अगर वाकई कोई बड़े आकार का उल्कापिंड धरती की तरफ आता दिखे तो उसे सुदूर अंतरिक्ष में ही या तो दूसरी तरफ धकेल दिया जाए अथवा किसी शक्तिशाली विस्फोट से उड़ा दिया जाए।
टेलीस्कोप के कैमरे में इस उल्कापिंड के पीछे तेज नीले रंग की जो पूछ बनी है, वह विद्युती आवेश का परिणाम है। इसकी दूसरी पूछ सफेद रंग की है जो सौर कणों से बन रही है। टेलीस्कोप से इस उल्कापिंड पर लगातार नजर रखने वाले वैज्ञानिकों का मानना है कि यह पूंछ वाली स्थिति दो से आठ अक्टूबर के बीच बनी है। ऐसा क्यों हुआ है, इसे बेहतर तरीके से समझने के लिए अब खगोल वैज्ञानिक इससे संबंधित और आंकड़े एकत्रित कर रहे हैं।