चैटम द्वीप: न्यूजीलैंड के इसी द्वीप पर ह्वेल क्यों प्राण त्याग देते हैं, यह अब बड़ा सवाल बनकर उभर रहा है। पिछले कुछ दिनों में 477 ह्वेलों की एक जैसी मौत ने यह सवाल खड़ा कर दिया है। दूसरी तरफ स्थानी आंकड़े यह बताते हैं कि पिछले 120 वर्षों में यहां पर करीब चार हजार ह्वेल आकर मर चुके हैं।
यह सभी ह्वेल समुद्र से निकलकर अचानक बालू पर चले आते हैं। इस पर इस बार भी लोगों को नजर पड़ी थी लेकिन आकार और वजन में संभालने लायक नहीं होने की वजह से अधिकांश की जान चली गयी। यहां के समुद्र का इलाका शार्कों से भरा पड़ा है। न्यूजीलैंड के दक्षिणी हिस्से के इस द्वीप के आस पास के समुद्र में जीवन की विविधताएं हैं। पिछले एक सप्ताह में वहां लगातार दो बार ह्वेलों के प्राण त्यागने की ऐसी घटना ने पर्यावरण वैज्ञानिकों को चौंका दिया है।
उसी वजह से पुराने आंकड़ों की तलाश में यह बात सामने आयी है कि यहां पहले भी ऐसी घटनाएं होती रही है। दरअसर यहां का समुद्री इलाका ही कुछ ऐसा है कि तेज गति से यहां आने वाले ह्वेल कम गहराई वाले इलाके में फंस जाते हैं। वहां से वे धीरे धीरे आगे बढ़ते हुए बालू पर चले आते हैं।
वे इतने भारी होते हैं कि उन्हें उठाकर समुद्र की गहराई तक पहुंचाना संभव नहीं होता है। लेकिन बार बार इसी स्थान पर ऐसा क्यों होता है, इसका विज्ञान सम्मत उत्तर अब तक नहीं मिल पाया है। समुद्र का यह इलाका ग्रेट ह्वाइट शार्कों से भी भरा पड़ा है। इसलिए लोगों के लिए भी समुद्र में उतरना खतरनाक है।
वहां के पर्यावरण मंत्रालय ने वर्ष 1901 से उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर कहा है कि अब तक यहां चार हजार ह्वेलों ने इसी तरीके से जान दी है। मैक्यूरी विश्वविद्यालय के स्कूल आफ नेचुरल साइंस के प्रोफसर कुलुम ब्राउन के मुताबिक शायद यह बड़े आकार के समुद्री जीव भोजन की लालच मे कम गहराई वाले इलाकों में आकर फंस जाते हैं।
फिर वहां से निकलने की जद्दोजहद में वे आगे बढ़ते हुए समुद्र छोड़कर बालू के ऊपर आ जाते हैं। कुछ अन्य वैज्ञानिकों का मानना है कि यहां पर गहरे और कम गहरे पानी का अंतर बहुत कम है। इसी वजह से समुद्री तल पर बालू के बदले कीचड़ अधिक होता है। इसी कीचड़ की वजह से ह्वेल यहां आकर फंस जाते हैं। इसके बाद उनका प्राकृतिक सोनार तरंग सही ढंग से काम नहीं कर पाता है। कुछ और लोग मानते हैं कि शायद इस इलाके का चुंबकीय क्षेत्र कुछ ऐसा है जिसमें ह्वेल भ्रमित हो जाते हैं। इन सारे आकलनों के बाद भी ऐसा आखिर क्यों हो रहा है, इसका उत्तर अब तक नहीं तलाशा जा सका है।