पिरूल पहाड़ के लिए लाभप्रद : ऋतु खंडूड़ी  

देहरादून। चीड़ के पेड़ों की पत्तियों को पिरूल कहते हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में इसकी बहुतायत है। लोग इसे जल संरक्षण और वनों के लिए अभिशाप मानते हैं, लेकिन बेकार समझी जाने वाली  पिरूल की पत्तियों के रेशों से अपने सपनों को आकार दे रहीं हैं युवा उद्यमी एवं पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत की बेटी कृति रावत।

इनके उत्पादों की प्रदर्शनी में पहुंचीं उत्तराखंड विधानसभा की अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी ने कहा कि पिरूल पहाड़ के लिए लाभप्रद है। इसे सकारात्मक नजरिए से देखने की आवश्यकता है। शनिवार को जीएमएस रोड स्थित शिव कृपा टावर में हिमालयन थ्रेड और औरा किचन एंड स्पिरिट्स के संयुक्त तत्वावधान में पांच दिवसीय प्रदर्शनी का शुभारंभ किया गया।

इस मौके पर पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि प्रधानमंत्री के एक आह्वान खादी घर-घर पहुंचने से लाखों लोगों को देश भर में रोजगार मिला। इसी प्रकार पिरुल, कंडाली, भीमल आदि पहाड़ी रेशों के उत्पाद हर घर में पहुंचें तो प्रदेश में हजारों लोगों को रोजगार मिलने की राह खुलेगी।

युवा उद्यमी कृति रावत ने कहा कि उनकी कोशिश है कि ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को वो अपनी मुहिम से जोड़ें, ताकि महिलाएं घर बैठे स्वरोजगार से जुड़ कर स्वावलंबी बनें।
इस मौके पर स्वास्थ्य मंत्री डा. धन सिंह रावत, मेयर सुनील उनियाल गामा और विधायक खजान दास सहित काफी संख्या में लोग मौजूद थे। इस प्रदर्शनी में ‘खनक धरा’ नाम से सोनिका रावत ने भी पर्वतीय सुगंधित वृक्षों जैसे पैय्या, तगर, देवदार, सेज एवं औषधीय पौधों से तैयार केमिकल फ्री सुगंधित कोन जैसे उत्पाद इस प्रदर्शनी रखा गया है।
अजय सैनी के  JGS  ऑर्गेनिक शहद जो विभिन्न स्वाद में उपलब्ध हैं, आकर्षक पैकिंग में यहां  हैं। लांघा घाटी की महिलाओं द्वारा भी स्वादिष्ट अचार, चटनी, जाम भी  उपलब्ध हैं। बनारसी साड़ी, जयपुरी रजाई आदि अनेकों वस्त्र एवम चादरें भी किरण ने प्रदर्शनी में रखा है। प्रदर्शनी में आए लोगों ने विभिन्न उत्पादों को सराहा।

रंग ला रही कृति की अनूठी मुहिम

उल्लेखनीय है कि कृति रावत काफी लंबे समय से पिरूल पर रिसर्च कर रही थीं।
उन्होंने जमीनी अध्ययन कर इसे न सिर्फ स्वरोजगार के रूप में अपनाया, बल्कि युवाओं को अपनी इस मुहिम से जोड़कर हिमालयन थ्रेड नाम से प्रोडक्ट तैयार कर रही हैं।
यह बात भी काबिलेगौर है कि ड्रेस डिजाइनिंग के क्षेत्र में करियर की संभावनाओं को तशालने के बजाय उनकी अपने प्रदेश में ही रहकर पर्वतीय उत्पादों को बढ़ावा देने की सोच अपने आपमें अनूठी है। इन दिनों वो न सिर्फ पिरूल से शानदार उत्पाद स्वयं तैयार कर रही हैं, बल्कि पर्वतीय उत्पादों को उचित बाजार मिले इस दिशा में लगातार प्रयासरत हैं।
मौजूदा समय में न सिर्फ वह ऑनलाइन और ऑफलाइन माध्यम से बिक्री कर आय अर्जित कर रही हैं। बल्कि महिलाओं को  हुनरमंद बनाकर उन्हें आत्मनिर्भर भी बना रही हैं। उन्होंने पिरूल के रेशों से टोकरी, बैग, हस्तशिल्प आदि बनाकर प्रेरक कार्य किया है। निःसंदेह उनकी यह पहल जहां ग्रामीणों की आजीविका की संभावना को दर्शाता है, बल्कि इसे प्लास्टिक के विकल्प के रूप में बढ़ावा दिया जा सकता है, क्योंकि ये उत्पाद पूर्णतः इको फ्रेंडली हैं।

Leave a Reply