अंकिता हत्याकांड: ध्वस्तीकरण कहीं सबूत दफन करने की साजिश तो नहीं!

देहरादून। अंकिता को न्याय कब और कैसे मिलेगा। यह तो भविष्य ही बताएगा। पर रिजार्ट पर बुलडोजर चलवाकर सरकार ने अपने ही गले में फंदा डाल दिया है। इससे सरकार की मंशा सार्वजनिक हो गई है।

दरअसल रिजार्ट में बुलडोजर वहीं पर चला है जहां अंकिता रहती थी। ध्वस्तीकरण की मशीन अंकिता के कमरे तक रही। कमरे के आगे जेसीबी मशीन एक इंच भी आगे नहीं बढ़ी है। जबकि जिला प्रशासन ने अंकिता के कमरे को सील कर दिया था।

लेकिन सरकार ने वहीं बुलडोजर चलवाकर कमरे को जमींदोज कर दिया जहां हत्या के सबूत मिलने की संभावना है। आरोपित को फांसी के फंदे तक पहुंचाने की जिम्मेदारी सरकार की है।

लेकिन इसके साक्ष्य संग्रह करके रखने की जिम्मेदारी भी पुलिस की ही है हालांकि पुलिस तो अपना काम कर ही रही है लेकिन बुलडोजर चलने से साक्ष्य के तहस नहस होने की संभावना ज्यादा बढ़ गयी है। जब पुलिस ने कमरे को सील कर रखा है तो ऐसे में केवल और केवल अंकिता के कमरे पर बुलडोजर चलवाना कहीं से भी बुद्धिमानी नहीं है।

कानून को अपना काम करने से किसी को भी नहीं रोकना चाहिए। पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी अधूरी आईं है। तभी तो अंकिता के परिजन शव की अंत्येष्टि नहीं कर रहे हैं। परिजनों को इस बात की शंका है कि पोस्टमार्टम में भी गड़बड़ी हो सकती है। सवाल यह है कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट किस्तों में एम्स की ओर से जारी क्यों किया जा रहा है।

पोस्टमार्टम रिपोर्ट तो पूरी की पूरी एक साथ ही परिजनों को मिलनी चाहिए। इस तरह से कई सवाल है जिससे साबित हो रहा है कि सरकार ज्यादा ही अपनी वाहवाही बटोरने के चक्कर में अपनी फजीहत करा बैठी है। रिजार्ट मालिक भाजपाई हैं हालांकि भाजपा ने आरोपित पुलकित आर्य की गिरफ्तारी के बाद बिनोद आर्य और उनके पुत्र अंकित आर्य को पार्टी से निकाल दिया है।

साथ ही अंकित आर्य को अन्य पिछड़ा वर्ग के उपाध्यक्ष के पद से भी हटा दिया है। यह तो होना ही था क्योंकि भाजपा अपना दामन साफ रखना चाहती है। इसलिए एक्शन तो लेगी ही। महत्वपूर्ण सवाल यह है कि आर्य का रिजार्ट यदि अवैध ढंग से बना है, सरकारी जमीन पर बना है। तो ध्वस्तीकरण का बुलडोजर पूरे रिजार्ट पर चलना चाहिए।

केवल अंकिता का कमरा तोड़ने का औचित्य क्या है। जाने अंजाने में यह भयंकर चूक सरकार से हुई है। सबूत सशक्त होगा तभी आरोपी को फांसी के फंदे तक पहुंचाया जा सकता है। उत्तराखंड में अंकिता हत्याकांड को लेकर लोगों में काफी उबाल है।

जनाक्रोश फैला हुआ है। सरकार ने पूरे मामले की जांच एसआईटी को सौंप दिया है। लेकिन सबूत रहेगा तभी तो एस आई टी भी आरोपी को फांसी के फंदे तक पहुंचाएगी।

हाकम सिंह के रिजार्ट पर नहीं चला बुलडोजर

पेपर लीक मामले में हाकम सिंह के रिजार्ट पर भी रविवार को बुलडोजर चलना था लेकिन आज एकाएक सरकार के बुलडोजर का पहिया थम गया। ऐसा क्यों हुआ। इस पर अधिकारी भी खामोश है। शनिवार को तो सरकार ने बाकायदा हाकम सिंह का रिजार्ट तोड़ने का लिखित आदेश भी जारी कर दिया था लेकिन एकाएक रविवार को आदेश क्यों पलट गया। इससे भी सरकार की मंशा पर कई सवाल खड़े हो रहे हैं। एक तरफ तो अंकिता के कमरे पर जहां साक्ष्य मिलने की संभावना है उस पर बुलडोजर चला दिया और वहीं दूसरी ओर हाकम सिंह के रिजार्ट पर अपने ही आदेश पर ब्रेक लगा दिया है।

डैमेज कंट्रोल में जुटी सरकार

पेपर लीक तथा विधानसभा भर्ती घोटाले ने उत्तराखंड सरकार की कलई खोल दी है। इससे सरकार की छवि पर धब्बा तो लग ही गया है। भाजपा हाईकमान भी मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को फटकार लगा चुका है। जनाक्रोश से बचने एवं अपनी छवि को चमकाने के लिए सरकार ने अंकिता हत्याकांड को पूरी ताकत के साथ उठाया है। बुलडोजर चलवाकर यह साबित करने की कोशिश सरकार कर रही है कि आरोपी को किसी भी हाल में बख्शा नहीं जायेगा। लेकिन क्या ऐसा करना से सरकार की छवि पर लगा धब्बा खत्म हो जाएगा। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि सरकार को रणनीति बनाकर काम करना चाहिए। अनाप शनाप फैसले लेने से अंकिता हत्याकांड के गुनहगारों को फांसी के फंदे तक नहीं पहुंचा जा सकता है। इसलिए सरकार को साक्ष्य संग्रह पर जोर देना चाहिए। तभी जाकर अंकिता के हत्यारे को फांसी के फंदे पर लटकाया जा सकता है। भाषणबाजी से काम नहीं चलने वाला है। कोर्ट को सबूत चाहिए। उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार डैमेज कंट्रोल से ज्यादा जोर अंकिता हत्याकांड के गुनहगारों को फांसी की सजा दिलवाने की दिशा में काम करेगी।

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