देहरादून। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष करन माहरा ने विधानसभा अध्यक्ष ऋतु द्वारा गठित तीन सदस्यीय समिति और उसकी सीमाओं को लेकर उठाये हैं।
माहरा ने कहा कि पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश जैसे विशाल राज्य के कार्मिकों की संख्या को देखते हुए उत्तराखंड विधानसभा में हुई बंदरबांट साफ दिखती है।
उन्होंने कहा कि यूपी की 403 सदस्यों वाली विधानसभा में लगभग 543 कर्मचारी है वहीं हमारे मात्र 70 सदस्यों वाले छोटे से प्रदेश की विधानसभा में 506 से अधिक कर्मचारियों की तैनाती नियुक्तियों में हुई बंदरबांट की ओर साफ ईशारा करता है।
माहरा ने कहा कि उत्तराखण्ड विधानसभा में राजनेताओं एवं जिम्मेदार अधिकारियों द्वारा विधानसभा में अपने परिजनों तथा रिश्तेदारों की भर्तियां की जांच के लिए गठित तीन सदस्यीय कमेटी की सीमा पर सवाल उठने लगे हैं।
उन्होंने कहा है कि विधानसभा एक संवैधानिक संस्था है जिसके किसी भी मामले की जांच का अधिकार केवल उच्च न्यायालय अथवा सर्वोच्च न्यायालय में निहित होता है। ऐसे में सरकार के अधीन कार्य करने वाले ये लोक सेवक कैसी जांच करेंगे।
माहरा ने यह भी कहा है कि राज्य विधानसभा द्वारा भर्तियों की जांच के लिए गठित समिति की जांच पूरी होने से पूर्व ही जांच से सम्बन्धित सूचनाओं का सार्वजनिक होना समिति की निष्पक्षता पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करता है।
उन्होंने कहा है कि चूंकि विधानसभा एक संवैधानिक संस्था है तथा इसके चलते कमेटी की जांच में यह प्रमुख विंदु होना चाहिए कि विधानसभा में हुई भर्तियों में कानून का पालन होने के साथ-साथ नैतिकता का पालन किया गया अथवा नहीं।
उन्होंने कहा कि विधानसभा की भर्तियों की जांच जनहित में होने के साथ ही वर्ष 2012 के बाद नहीं बल्कि वर्ष 2000 से की जानी चाहिए। माहरा ने कहा कि उत्तराखण्ड विधानसभा में मुख्य विपक्षी दल होने के नाते कांग्रेस सरकार द्वारा भर्तियों की जांच के लिए समिति के गठन पर असंतोष व्यक्त करते हुए मांग करती है कि विधानसभा में हुई भर्तियों की जांच उच्च न्यायालय के वर्तमान न्यायाधीश की देखरेख में कार्रवाई जाय।