गोपेश्वर।तो क्या भाजपा के वरिष्ठ नेताओं में शुमार पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत गढ़वाल लोक सभा चुनाव की डगर पर निकल पड़े हैं। टीएसआर के गढ़वाल संसदीय क्षेत्र में शामिल चमोली जिले के ही 5 दिवसीय दौरे और अब पौड़ी जिले के दौरे को इसी रूप में देखा जा रहा है।
बताते चलें कि राज्य में यूकेएसएसएससी तथा विधान सभा बैकडोर भर्ती घोटालों के घमासान के बीच पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने नई दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात कर राज्य के सियासी हालातों के साथ ही भर्ती घोटालों से उत्पन्न मसलों पर चर्चा की।
इसके बाद वह सीधे देहरादून लौटे और देहरादून से 9 सितंबर को बदरीनाथ धाम पहुंचे। बद्रीनाथ धाम में भगवान बदरी विशाल की पूजा अर्चना कर उन्होने मनौती मांगी। अगले दिन वह 8 किमी पैदल चलकर वसुंधरा जलप्रपात का दीदार करने पहुंचे। माणा में जनजातियों के साथ मिल कर उन्होंने तमाम हालातों पर चर्चा की। अगले दिन वह चीन सीमा से सटे माणा पास पहुंचे।
जवानों की हौसला अफजाई कर उन्होंने देवताल का दीदार किया। माणा घाटी से वापस लौट कर 12 सितंबर को पूर्व सीएम नीती घाटी के रिमखिम-बाड़ा-होती बॉर्डर पहुंचे और जवानों की कुशलक्षेम पूछी। इस दौरान उन्होने पार्वती कुंड का भी दीदार किया।
मंगलवार को पूर्व सीएम सिमली पहुंचे। सिमली में उन्होंने बेस अस्पताल का जायजा लिया। इसके बाद गैरसैंण ग्रीष्मकालीन राजधानी पहुंचे और कार्यकर्ताओं के साथ बैठक कर गैरसैंण मसले को जीवंत रखने पर जोर दिया।
वापस लौट कर उन्होने कर्णप्रयाग में भाजपा कार्यकर्ताओं से बैठक कर 224 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुटने का आह्वान किया। रात उन्होंने खिरसू में बिताई। इस तरह पूर्व सीएम त्रिवेंद्र रावत के 5 दिवसीय हिमालय दर्शन समेत भाजपाइयों से मिलने के कार्यक्रम को 224 में होने वाले लोकसभा चुनाव की तैयारियों के रूप में देखा जा रहा है।
वैसे भी पिछले साल मार्च में गैरसैंण में विधानसभा का सत्र चल रहा था तो इसी दौरान सियासी उठापटक के बीच त्रिवेंद्र रावत की असमय विदाई कर दी गई। इसके पश्चात हाईकमान ने उन्हें अपने भरोसे छोड़ दिया। हालांकि वह इस बीच विद्रोह जैसे कदम उठाने से बचते रहे। पिछले साल विधानसभा के चुनाव में उन्हें उम्मीदवार तक नहीं बनाया गया। यहां तक कि चुनाव प्रचार से भी उन्हें दूर रखा गया।
त्रिवेंद्र रावत के उत्तराधिकारी के रूप में पिछले साल 10 मार्च को गढ़वाल सांसद तीरथ सिंह रावत की ताजपोशी की गई। इस बीच उनको भी भाजपा आलाकमान ने असमय सीएम की कुर्सी से चलता कर दिया था। तब मुख्यमंत्री के रूप में पुष्कर सिंह धामी की ताजपोशी हुई और वह दूसरी पारी खेल रहे हैं।
इस बीच सरकारी नौकरियों में घपले घोटालों को लेकर घमासान मचा है और पूर्व सीएम सियासी कोलाहल से दूर हिमालय तथा पहाड़ों की डगर पर निकले हैं। राजनीतिक विश्लेषकों ने पूर्व सीएम त्रिवेंद्र रावत के हिमालय दर्शन के सियासी मायने भी निकालने शुरू कर दिए हैं। चमोली के बाद हालांकि अब त्रिवेंद्र रावत पौड़ी जिले के दौरे पर हैं।
विश्लेषकों का मानना है कि पूर्व सीएम 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए गढ़वाल संसदीय क्षेत्र से दावेदारी को संसदीय क्षेत्र के दौरे पर निकले हैं। हालांकि चुनाव को अभी काफी समय बचा है। इसलिए दावेदारी को लेकर अभी से कोई सियासी निहितार्थ निकाला जाना जल्दबाजी मानी जा रही है।
इसके बावजूद पूर्व सीएम सक्रिय हुए हैं तो इसके सियासी निहितार्थ तो निकाले जाएंगे ही। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि शीर्ष नेतृत्व की हरी झंडी के बाद ही पूर्व सीएम दौरे पर निकले हैं। यदि ऐसा नहीं है तो शीर्ष नेतृत्व पर दबाव बनाने के लिए उनके इस दौरे को देखा जा सकता है।
अब देखना यह है कि पूर्व सीएम की डगर के असल मायने क्या हैं। हालांकि कतिपय प्रेक्षक राज्य सभा के लिए इस दौरे को दबाव के रू प में देख रहे हैं। इसके बावजूद उनके यकायक गढ़वाल संसदीय क्षेत्र में सक्रियता के राजनीतिक निहितार्थ तो निकाले ही जाने लगे हैं।