देहरादून । मानसून सीजन में साल दर साल आपदा अपना कहर बरपाती है। कहीं लोगों का आशियाना उजड़ जाता है तो कहीं जानमाल को भारी नुकसान होता है। पहाड़ ही नहीं बल्कि मैदानी इलाके भी आपदा की इस मार से अछूते नहीं रहते हैं।
बावजूद इसके नदी-नालों व खालों के किनारे अतिक्रमण का क्रम थम नहीं रहा है। बात अगर राजधानी देहरादून की ही करें तो अतिक्रमण के चलते यहां नदी-नालों का बहाव क्षेत्र सिकुड़ता जा रहा है। ऐसे में बरसात के मौसम में यही नदी-नाले ओवरफ्लो होकर आसपास के क्षेत्र को भारी नुकसान पहुंचा रहे हैं। लेकिन नगर निगम, एमडीडीए व स्थानीय प्रशासन हर मर्तबा मूकदर्शक बनकर बैठा रहता है।
किसी भी क्षेत्र में जब आपदा का कहर बरपा जाती है तब जाकर आनन-फानन में हाथ-पांव मारे जाते हैं।
सोमवार कल सुबह को काठबंगला क्षेत्र में आपदा के कारण जानमाल को हुए नुकसान भी कहीं न कहीं सरकारी तंत्र की लापरवाही की ओर इशारा करती है।
यदि पहले ही इस क्षेत्र में अतिक्रमण पर रोक लगाई जाती तो आपदा से बचा तो नहीं पर इससे होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता था। दरअसल, वर्ष 2016 में भी इस क्षेत्र में आपदा आने से काफी नुकसान हुआ था। पर इसके बाद भी क्षेत्र में जगह-जगह अतिक्रमण बढ़ता गया। वह भी तब जबकि यह क्षेत्र एक तरफ नदी से सटा हुआ है और ऊपरी तरफ पहाड़ी इलाका। यहां पर अधिकांश घर पट्टे की जमीन पर बने हुए हैं।
स्थानीय नेताओं द्वारा ही लोगों को पट्टे आवंटित कराए गए थे। बताया जा रहा है कि सोमवार सुबह तीन बजे के आसपास हुई तेज बारिश के दौरान पहाड़ी से पानी के साथ भारी मात्रा में मलबा आया और इसकी जद में निचले हिस्से के मकान आ गए।
बताया जा रहा है कि एक घर पर मलबा के साथ भारी बोल्डर गिरने से वह पूरी तरह इसकी जद में आ गया और तीन लोगों की मौके पर ही मौत हो गई। क्षेत्र में जब आपदा ने कहर बरपा दिया तब जाकर नगर निगम हरकत में आया।
बाद मे नगर निगम की टीम प्रभावित क्षेत्र में पहुंची और बारिश के कारण काठबंग्ला के आसपास नालों-खालों के साथ ही जाखन, खाला गांव, डीआईटी कालेज के सामने, जोहड़ी गांव आदि क्षेत्रों का निरीक्षण किया। क्षतिग्रस्त पुश्तों व नालों का आकलन किया गया। लेकिन इससे पहले आपदा अपना असर दिखा चुकी थी।