नैनीताल। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने अपर निजी सचिवों के वरिष्ठता विवाद पर विराम लगाते हुए मंगलवार को सरकार के उच्च वेतनमान के आधार पर वरिष्ठता तय करने के निर्णय को सही ठहराया है। मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी व न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की युगलपीठ ने उत्तराखंड लोक सेवा अधिकरण (पब्लिक सर्विस ट्रिब्यूनल) देहरादून के निर्णय को भी खारिज कर दिया है।
दरअसल उत्तराखंड राज्य के अस्तित्व में आते ही निजी सचिवों का वरिष्ठता विवाद उत्पन्न हो गया था। सरकार की ओर से उच्च वेतनमान के आधार पर वरिष्ठता तय कर दी गयी थी। सरकार के इस कदम को हरिदत्त देवतल्ला व मदन मोहन भारद्वाज के अलावा अन्य लोगों ने पब्लिक सर्विस ट्रिब्यूनल देहरादून में सन् 2013 में चुनौती दे दी डाली। ट्रिब्यूलन ने इन्हें राहत देते हुए सरकार के कदम को गलत ठहरा दिया।
ट्रिब्यूनल के निर्णय के खिलाफ दूसरा पक्ष उच्च न्यायालय पहुंच गया। आरएस देव व गोपाल नयाल के साथ अन्य ने याचिका दायर कर कहा कि वर्ष 2002 में संविलियन के दौरान सरकार ने उच्च वेतनमान के आधार पर वरिष्ठता सूची तय कर दी थी। ट्रिब्यूनल ने सरकार के निर्णय को गलत ठहराते हुए संविलियन से पूर्व मूल विभाग में नियुक्ति की तिथि को आधार मानकर वरिष्ठता तय करने को सही माना जो कि गलत है।
वरिष्ठता सूची तय होने के बाद उनके तीन से चार पदोन्नति भी हो गयी है। ट्रिब्यूनल का निर्णय गलत है। आज अदालत ने याचिकाकर्ताओं को राहत देते हुए ट्रिब्यूनल के आदेश को खारिज कर दिया। उच्च न्यायालय के इस कदम से छह दर्जन से प्रमुख निजी सचिव को लाभ होगा।