गौचर। बंदरों ने उत्पात मचा कर काश्तकारों की नाक में दम कर रखा है। बरसाती साग सब्जी व खेतों में खड़ी फसल बंदरों ने तहस नहस कर ही दिया है। चिलचिलाती धूप व बारिश में पूरे दिन खेतों में बंदरों ने लोगों को चौकीदारी करने को मजबूर कर दिया है।
कमर तोड़े महंगाई में काश्तकारों ने जहां घरों में बड़े पैमाने पर सब्जी की बेल लगा रखी हैं वहीं खेतों में मक्का उगाई है ताकि वे आसानी से अपने परिवार का जीवन यापन कर सकें। बंदरों ने फल पकने से पहले ही फसलों को तहस नहस कर काश्तकारों के अरमानों पर पानी फेर दिया है।
अलग राज्य बने 22 साल बीतने को है किंतु सरकार बंदरबाड़ा बनाने की दिशा में कोई कदम नहीं उठा पाई है। इससे लोगों को बंदरों से निजात नहीं मिल पा रही है। नौबत यहां तक आ गई है कि काश्तकारों को खेती महंगा सौदा बनती जा रही है।
बीज के लिए भी लोगों को पूरी तरह सरकारी विभागों के भरोसे रहना पड़ रहा है। बीज उपलब्ध न होने की दशा में खेत बंजर छूट जा रहे हैं। प्रगतिशील काश्तकारों का कहना है कि कमरतोड़ महंगाई के इस दौर में वे नगदी फसलों की खेती पर जोर दे रहे हैं लेकिन फल मिलने से पहले ही बंदर उनके अरमानों में पानी फेर दे रहे हैं। नतीजतन सभी को मैदानी भागों से आने वाले महंगे फल सब्जियों पर निर्भर रहना पड़ रहा है।