अगले सीजन में खाने को मिलेगा पहाड़ का तरबूज

बागेश्वर में मलड़ा दंपत्ति ने प्रयोग के तौर पर किया उत्पादन प्रारंभ

बागेश्वर । माना जाता है कि फल व सब्जियां पहाड$ के मौसम के अनुकूल नहीं होते हैं,अगर उन्हें यहां उगाने की कोशिश भी की जाये तो ये फल, सब्जियों के पौधे या तो खराब हो जाते है या फिर ये कुछ समय बाद पूरी तरह से नष्ट हो जाते हैं। लेकिन उद्यान विभाग और एक किसान मलडा दंपत्ति की मेहनत रंग लायी है। प्रयोग के तौर पर यहां पर तरबूज की फसल पैदा की गई तो इसके सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं। भविष्य में इसे बढ़े स्तर पर उत्पादित करने की योजना है।

कई साल की बात की जाय तो देखा जाता रहा है कि यहां पर आम, संतरा, नींबू, नाशपाती का ही उत्पादन होता था। कुछ हिस्सों में अखरोट का उत्पादन होता था। परंतु पिछले कुछ सालों से यहां पर नाशपाती का उत्पादन लगभग समाप्त सा हो गया है। कुछ क्षेत्रों में जंगली जानवरों के आतंक के चलते आम के उत्पादन में भी कमी आई है। जनपद में पिछले कुछ सालों से कीवी व सेब, आडू का उत्पादन प्रारंभ हुआ परंतु अब जनपद में खेती के रूप में एक और नए फल तरबूज का भी उत्पादन होने लगा है।

अब तक जनपद में तरबूज का फल नहीं होता था तथा यहां मैदानी क्षेत्रों से मंगाया जाता रहा है। ये फल मैदानी क्षेत्रों में 10 से 15 रुपये प्रति किलो तक मिल जाता है, तो वहीं पहाड़ चढते चढते इसकी कीमत कई गुना बढ़ जाती है और कीमत 8 0 से 90 रुपये प्रति किलो तक पहुंच जाती है। तरबूज की गर्मी के सीजन में मांग व इसके अन्य प्रयोग को देखते हुए ध्यान में रखते हुए उद्यान विभाग ने एक प्रयोग के तौर पर किसानों से वार्ता की तथा निकटवर्ती गांव छतौना के जगदीश मलडा दंपत्ति से इस विषय पर वार्ता की।

विभाग ने इसके लिए दंपत्ति को सरकार की योजनाएं बताते हुए तरबूज के लाभ की जानकारी दी तो जगदीश इसके उत्पादन के लिए राजी हुए तथा उन्होंने कुछ तरबूज के बीज रोपित किये जो की सफल रहा। किसान द्वारा इस सीजन बीस हजार के तरबूज लोकल मार्केट में बेचे गये। उनका कहना है कि अगले सीजन में वे वृहद मात्रा में तरबूज की खेती करेंगे तथा उसे बाजार में उपलब्ध कराएंगे। ताकि अगले सीजन पहाड़ के लोगों को अच्छी मात्रा में इस फल का स्वाद चखने को मिलेगा।

बाहरी क्षेत्र के तरबूज के प्रयोग से घबराते हैं ग्राहक

किसान जगदीश मलड़ा ने बताया कि उन्होंने तरबूज उत्पादन के बाद बाजार में मांग का पता लगाया। जिस पर यह बात सामने आई कि तरबूज की मांग काफी है परंतु बाहरी क्षेत्र से आने वाले तरबूज को लोग कम पसंद करते हैं। क्योंकि सामान्य सोच यह है कि मैदानी क्षेत्र में तरबूज के भीतरी हिस्से के खाने वाले हिस्से में सिरिंज के माध्यम से लाल केमिकल डाला जाता है। जिस कारण कई लोग चाहकर भी तरबूज खाने से परहेज करते हैं।

जनपद में पहली बार तरबूज का उत्पादन किया गया तो इसमें सफलता मिली है। अगले सीजन में इसका वृहद उत्पादन किया जाएगा।
-आरके सिंह, जिला उद्यान अधिकारी बागेश्वर।

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