तो डा. जोशी से खफा है नौकरशाही

देहरादून। आयुर्वेद विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.सुनील जोशी के खिलाफ चल रही जांच पर स्थगनादेश देते हुए कोर्ट ने शासन द्वारा की जा रही जांच में चार्ज शीट जारी करने के बजाय सिर्फ कुछ सवाल पूछने पर सवाल उठाए हैं।

हाई कोर्ट ने कहा है कि रिस्पोंडेंट को निर्देशित किया जाता है कि बताएं असली चार्ज क्या हैं, जिनको लेकर पैटीशनर के खिलाफ जांच बैठाई गई है? हम देख रहे हैं कि आज तक पैटीशनर के खिलाफ चार्ज शीट जारी नहीं की गई है। जांच अधिकारी ने पैटीशनर से विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर पद पर नियुक्ति में योग्यता और अनुभव को लेकर कुछ सवाल पूछे हैं।

यहां तक कि इन सवालों के जरिए पैटीशनर ने कुछ गलत किया हो यह साबित नहीं होता। रिस्पोंडेंट को निर्देशित किया जाता है कि 21 जुलाई 2022 तक कोर्ट में चार्ज शीट दाखिल करें, इसकी एक प्रति पैटीशनर को भी उपलब्ध कराएं। अगली तारीख तक जांच अधिकारी इस मामले में कोई कदम न उठाएं।

कोर्ट ने पैटीशनर की अपील पर स्थगनादेश देते हुए उक्त बात कही है। यह कोर्ट का अंतिम निर्णय नहीं है, लेकिन यह इतना जरूर साबित करता है कि प्रो.जोशी के खिलाफ जांच पर जांच बैठाने वाले शासन के अफसर कितनी जल्दी में थे।

अपर सचिव की अध्यक्षता में एक जांच बैठाई, उन्होंने अभी जांच रिपोर्ट सौंपी भी नहीं थी कि हाई कोर्ट के रिटायर जज की अध्यक्षता में जांच बैठा दी। 15 दिन के अंदर जांच सौंपने के लिए उन्हें पाबंद भी कर लिया। फिर बात नहीं बनी तो प्रो. जोशी के वित्तीय अधिकार सीज कर दिए।

हर बार जब भी जांच बैठाई या फिर प्रो.जोशी के खिलाफ कोई एक्शन लिया, सबसे पहला आरोप लगाया कि वित्तीय अनियमितता की गई है, भ्रष्टाचार हुआ है। लेकिन जब जांच अधिकारी ने सवाल पूछे तो कोई भी सवाल वित्तीय अनियमितता या भ्रष्टाचार से संबंधित नहीं तथा सिर्फ नियुक्ति को लेकर सवाल पूछे गए।

जब भी जांच बैठाई गई और आरोप लगाए गए हर बार भ्रष्टाचार को फोकस में रखा गया। यहां तक कि मीडिया को फीड की गई खबरों में भी फोकस भ्रष्टाचार पर ही था, लेकिन भ्रष्टाचार का एक भी आरोप उनके पास नहीं था। यह साबित करता है कि सबकुछ दुराग्रह की वजह से किया जा रहा था, मकसद सिर्फ प्रो.जोशी को पद से हटाना था।

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