देश के नामी वकील बोले, साम्प्रदायिक घृणा फैलाने वालों पर कार्रवाई करे प्रदेश सरकार

-देश के जाने माने वकीलों ने प्रदेश के मुख्यमंत्री को लिखा खुला पत्र

देहरादून। सुप्रीम कोर्ट के देश के जाने माने 42 वकीलों ने प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को खुला पत्र लिखकर हेट स्पीच और सांप्रदायिक हिंसा का बढ़ावा देने वाले लोगों पर कार्रवाई की मांग की है। इन वरिष्ठ वकीलों ने प्रदेश सरकार पर कानूनों को समान रूप से लागू न करने का इल्जाम लगाया है और यति नरसिंहानंद की दी गई जमानत रद्द करने की मांग की है।

यति नरसिंहानंद हरिद्वार में हुई कथित धर्म संसद में अल्पसंख्यक समुदाय के प्रति घृणा फैलाने का के मामले का मुख्य आरोपी है। बीते पांच साल में उत्तराखंड में हुई कई भीड़ की हिंसा की घटनाओं का उल्लेख करते हुए सीएम को भेजे गए खुले पत्र में आरोप लगाया गया है कि प्रदेश सरकार समान नागरिक संहिता की बात तो कर रही है लेकिन ऐसी घटनाओं में कानून को समान रूप से लागू नहीं कर रही है।

बल्कि यह लग रहा है कि सरकार सत्तारुढ$ दल की विचारधारा के लोगों का पक्ष ले रही है। पत्र में अंजना प्रकाश, संजय पारिख, प्रशांत भूषण, एनडी पंचोली, राजू रामचंद्रन, कामिनी जायसवाल, गोपाल शंकर नारायण और चंदर उदय सिंह आदि 42 वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने चेताया है कि घृणा फैलाने के आरोपियों को संरक्षण देने से घृणा और हिंसा में बढ़ोतरी ही होगी इसका राज्य उसके आम नागरिकों के जीवन और अधिकारों पर दूरगामी खतरनाक असर पड़ेगा।

पत्र में उन्होंने कहा है कि राज्य सरकार समान नागरिक संहिता लागू करने को लेकर लगातार सार्वजनिक बयान दे रही है जबकि उसे आईपीसी जो कि समान है उसे संवैधानिक रूप से लागू करना चाहिए। लेकिन ऐसा लगता है कि जो भी कार्रवाई हो रही है वह समान अधिकारों को प्रोत्साहन देने की बजाय नागरिक समाज के एक वर्ग को उकसाने के लिए हो रही हैं।

गौरतलब है कि बीते दिनों देश की जानी मानी हस्तियों साहित्यकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, सेवानिवृत्त आईएएस अफसरों, सैन्य अधिकारियों, आईपीएस आदि ने भी इसी तरह का पत्र मुख्यमंत्री को भेजा था। उन्होंने कहा था कि हरिद्वार में जिन लोगों ने हिंसा भड़काने वाला आपराधिक भाषण दिया था, उन को तुरन्त गिरफ्तार कर उन पर गंभीर धाराओं के अंतर्गत कार्यवाही की जाए।

भीड़ की हिंसा और नफरत की राजनीति फैलाने वाले अराजक तत्वों पर आपराधिक मुकदमे चलाए जाएं, चाहे उनकी धार्मिक या राजनीतिक संबंध कुछ भी हों। उन्होंने कहा कि राज्य में उच्चतम न्यायालय के जुलाई 2018 का भीड़ की हिंसा पर दिये गये फैसले के सारे निर्देशों को राज्य में तुरंत अमल में लाने की जरूरत है।

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