देहरादून। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने मुख्य सचिव को ऋषिकेश नगर निगम द्वारा गंगा के बाढ़ क्षेत्र में सार्वजनिक शौचालय निर्माण और उसे गंदा पानी गंगा में जाने के मामले की जांच के निर्देश दिए हैं।
असल में एनजीटी में विपिन नैय्यर ने शिकायत की थी कि एक नगर निगम पार्षद और नगर निगम के एजेंटों ने सार्वजनिक शौचालय पर अवैध अतिक्रमण किया है और वहां कोई भी सीवेज ट्रीटमेंट प्लान नहीं लगा है।
विपिन नैय्यर ने इस मामले के फोटो और सबूत भी पेश किए थे जिनमें यह भी दिखाया गया था कि गंगा के तट पर बने सार्वजनिक शौचालय के नलों से निगम के एजेंट अपनी गाड़ियां धो रहे हैं और नहा रहे हैं।
एनजीटी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल की पीठ ने यह मामला तीन जनवरी को भी विचारार्थ आया था और पाया गया था कि सार्वजनिक शौचालय अवैध रूप से गंगा के बाढ़ क्षेत्र में बना दिया गया है।
इसके बाद 18 मई को निर्देश दिए गए कि शौचालय स्थायी व पक्का नहीं होना चाहिए और यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि गंगा पानी बिना उपचारित हुए गंगा में न जाए ।
देहरादून के जिलाधिकारी की रिपोर्ट में कहा गया कि सेप्टिक टैंक समय समय पर साफ किए जाते हैं। शौचालय का 80 फीसद काम हो गया है लेकिन एनडीटी ने उसे रुकवा दिया है। यह शौचालय आस्था पथ को देखने आने वालों के लिए बनाया गया था क्योंकि त्रिवेणी घाट के अलावा वहां शौचालय सुविधा नहीं है।
इस पर शिकायत कर्ता ने आपत्ति जताते हुए कहा हि बाढ़ क्षेत्र में शौचालय बनाना गैरकानूनी है।
जिसे एनजीटी ने सही पाया और कहा कि पर्यटकों की असुविधा की बात अस्थायी तर्क है इस तरह से शौचालय बनाना नजीर नहीं बनना चाहिए और उसे कहीं और स्थानांतरित करना चाहिए।
जब तक वैकल्पिक इंतजाम नहीं होते शौचालय के सेप्टिक टैंक की नियमित सफाई होनी चाहिए। उसका दूषित पानी किसी भी कीमत पर गंगा में नहीं जाना चाहिए।
अगर ऐसा होता है तो यह जल प्रदूषण नियंत्रण कानून 1974 पर सुप्रीम कोर्ट के पर्यावरण सुरक्षा समिति की अपील पर दिए गए फैसला का उल्लंघन होगा। एनजीटी ने मुख्य सचिव को इस मामले को देखने को कहा है।