वर्ष 1939 की व्यवस्था के तहत धामों में पूजन एवं दर्शन : मंदिर समिति

देहरादून । बदरीनाथ -केदारनाथ मंदिर समिति ने कहा कि धामों में पूजन विधि एवं दर्शन वर्ष 1939 की व्यवस्था के तहत संपन्न कराया जा रहा है। श्रद्धालुओं को किसी भी तरह की कोई परेशानी नहीं हो। इस पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।

मंदिर समिति ने यह भी स्पष्ट किया है कि सोशल मीडिया में वायरल वीडियो कोरोना काल का है जिसमें शासन द्वारा धामों में दर्शन के लिए गाइडलाइन जारी की गई थी। लेकिन अब ऐसी बात नहीं है। अब सारी चीजें परंपरानुसार कराई जा रही हैं।

केदारनाथ धाम के संबंध में सोशल मीडिया में वायरल हो रहे एक पुराने वीडियो जिसमें कुछ तीर्थयात्रियों ने सवाल उठाए हैं, इस संबंध में श्री बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति अध्यक्ष अजेंद्र अजय ने कहा है कि जब वैश्विक कोरोना महामारी का प्रकोप था।

उस समय पूजा तथा दर्शन के लिए एसओपी शासन द्वारा जारी की गयी थी, जिसके अनुपालन में किसी भी प्रकार से मंदिरों में जलाभिषेक, पूजाएं करना, प्रसाद चढ़ाना, टीका आदि लगाना, मूर्तियों तथा घंटियों और वस्तुओं को छूना पूर्णत: प्रतिबंधित था।

इसी एसओपी के तहत धाम में आने वाले यात्रियों को मात्र संबंधित पक्षकारों द्वारा ही दर्शन उपलब्ध कराये जा रहे थे।

नियमत: श्री केदारनाथ मंदिर के कपाट प्रात: काल में खुलने एवं सायं काल में कपाट बंद होने का समय निश्चित है। इस दौरान आदिकाल से चली आ रही समस्त पूजाएं, नित्य-नियम भोग, श्रृंगार एवं धर्म दर्शन की परम्परा जारी है।

सामान्यत: प्रात: काल में मंदिर खुलने के बाद सभी श्रद्धालुओं को दर्शन उपलब्ध कराये जाते हैं, जिसमें किसी भी प्रकार का शुल्क तथा फीस नहीं लिया जाता है।

परंपरानुसार श्रद्धालुओं द्वारा श्री केदारनाथ मंदिर में महाभिषेक, रुद्राभिषेक, षोडशोपचार पूजा, प्रात: कालीन पूजा, सांय कालीन आरती एवं अर्चना पाठ संपन्न करवाने का विधान है, जो आदिकाल से चली आ रही है।

मंदिर समिति इस व्यवस्था को इस ढंग से संपादित करती है कि श्रद्धालुओं को किसी भी तरह की कोई समस्या नहीं आए। इन पूजाओं के लिए निश्चित समय अवधि एवं संख्या मंदिर द्वारा निर्धारित की जाती है, जो सामान्यतः: रात्रि के 12बजे से 03:0 बजे के मध्य संपादित की जाती हैं।

ताकि सामान्य रूप से आने वाले श्रद्धालुओं को दर्शन में किसी भी प्रकार की कठिनाई उत्पन्न नहीं हो।
पूजाएं (महाभिषेक, रुद्राभिषेक, षोडशोपचार पूजा, प्रात: कालीन पूजा, सायं कालीन आरती एवं अर्चना पाठ) सम्पादित करना बाध्यकारी नहीं होती हैं, जो श्रद्धालु स्वेच्छा से पूजाएं, अर्चना एवं पाठ करवाना चाहते हैं, उन्हें ही प्राथमिकता दी जाती है, जिसका सम्पादन मंदिर समिति के आचार्य एवं वेदपाठी करते है।

पूजा सम्पादन के लिए श्रद्धालुओं को मंदिर समिति द्वारा पूजार्थ द्रव्य, जलाभिषेक , प्रसाद, रुद्राक्ष माला आदि दिये जाते हैं, जिसके एवज में श्रद्धालु समिति को सम्पादित होने वाले पूजाओं की समय अवधि को ध्यान में रखते हुए सहयोग राशि देते हैं।
स्वैच्छिक रुप से सम्पादित पूजा के बाद श्रद्धालुओं द्वारा दी गयी सहायता राशि से भगवान के नित्य नियम भोग, पूजा, प्रसाद, पूजार्थ द्रव्य, भंडारा, चिकित्सा व्यवस्था, यात्री विश्राम गृह निर्माण एवं रख-रखाव, संस्कृत महाविद्यालयों का संचालन, विद्यालयों में अध्ययनरत छात्र-छात्राओं को नि: शुल्क शिक्षा, आवास, भोजन आदि की व्यवस्था एवं मंदिर समिति के पूजारी, अधिकारी, कर्मचारी, सेवा कारों को वेतन उपलब्ध कराई जाती है।

पूजा की यह व्यवस्था वर्ष 1939 श्री बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के गठन से चली आ रही है।

Leave a Reply