गौचर।वनाग्नि के चलते जंगलों के धू-धू कर जलने से करोड़ों की वन संपदा खाक हो गई है। इसके बावजूद वनाग्नि नियंत्रण को कोई ठोस योजना धरातल पर उतरती नहीं दिख रही है।
गर्मी शुरू होते ही वनों में आग लगने का सिलसिला शुरू हो जाता है लेकिन साधन सुविधाओं के अभाव में वन कर्मी आग पर काबू पाने में सफल नहीं हो पाते हैं। साधन विहीन वन कर्मी आग बुझाने के लिए केवल झाड़ियों का झाडू़ बनाकर आग पर काबू पाने का प्रयास करते हैं।
ऐसी दशा में कई बार वे खतरे की जद में आ जाते हैं। ऐसी दशा में निहत्थे वन कर्मियों के सामने वनों को जलते देखने के सिवा कोई चारा नहीं बचता है। सरकार ने जंगलों में बेकार पडे पिरुल का सदुपयोग करने की योजनाएं तो बनाई लेकिन आज तक यह योजना भी मूर्त रूप नहीं ले पाई है।
पहाड़ी क्षेत्रों के लिए अभिशाप बने पिरूल से लोगों को निजात दिलाने के लिए कोई कदम न उठाए जाने से लोग हैरान परेशान हैं। मवेशियों को घास के लिए पूरी तरह से जंगलों पर निर्भर रहने वाले ग्रामीणों की मानसिकता रही है कि जंगलों में आग लगने से उन्हें घास मिलेगा।
सरकार ने ग्रामीणों को घास के लिए जंगलों पर निर्भरता खत्म करने के लिए रियायती दरों पर भूसा व हरी घास उपलब्ध कराने की योजना चलाई थी लेकिन यह योजना पूरी तरह फेल नजर आने लगी है।
मुख्यमंत्री घस्यारी योजना भी लोगों के लिए वरदान साबित नहीं हो पाई। फायर सीजन से पहले जगह जगह अग्नि सुरक्षा सप्ताह के तहत सेमिनार पर लाखों रुपए फूंक दिए गए किंतु नतीजा सिफर ही रहा।
कांग्रेस के प्रदेश सचिव मुकेश नेगी का कहना है कि जंगलों को आग से बचाना है तो चौड़ी पत्ती के जंगल विकसित करने होंगे। इससे ही वनाग्नि थमेगी और मवेशियों के लिए घास भी प्राप्त होगा।