कांग्रेस-भाजपा : कुर्सी के जुगाड़ को क्षेत्रीय असंतुलन की आड़

राज्य बनने के बाद अंतरिम सरकार के वक्त से ही यह खेल शुरू हो गया था

देहरादून। कांग्रेस और भाजपा दोनो में जब नेतृत्व की बात होती है तो इलाकाई असंतुलन की बात होती है। आजकल कांग्रेस में यह बात जोरों से उठ रही है लेकिन सियासत की जो अब तक की कहानी है उससे यह साफ है कि गढ़वाल-कुमाऊं और मैदान, पहाड़ या जाति की आड़ में नेता अपनी-अपनी कुर्सी के जुगाड़ का खेल खेलते हैं।

अब चाहे वह सीएम की हो, नेता प्रतिपक्ष की हो या प्रदेश अध्यक्ष की। हालांकि सूबे की सियासी तारीख बताती है कि राजनीतिक दल दो विस चुनाव तब भी जीते जब उनका नेतृत्व एक ही क्षेत्र से था।
राज्य बनने के बाद अंतरिम सरकार के वक्त से ही यह खेल शुरू हो गया था।

भाजपा ने राज्य गठन के वक्त नित्यानंद स्वामी को सीएम बनाया था अल्मोड़ा के पूरन चंद्र शर्मा भाजपा प्रदेश अध्यक्ष थे, मगर स्वामी के मैदानी मूल का होने का बहाना बना सीएम की कुर्सी के दावेदार भाजपा के गढ़वाल-कुमाऊं दोनो के नेता नाराज हो गए।

विधानसभा तक में उनके खिलाफ उनकी ही पार्टी वालों ने मोर्चा खोल लिया नतीजतन पहले विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा ने कुमाऊं के भगत सिंह कोश्यारी को कुर्सी सौंप दी। उधर कांग्रेस में प्रदेश अध्यक्ष हरीश रावत थे तो नेता प्रतिपक्ष  इंदिरा हृदयेश थीं।

दोनो कुमाऊं से थे। इसके बावजूद कांग्रेस को 2002 के चुनाव में सत्ता हासिल हुई। कांग्रेस ने कुमाऊं के एनडी तिवारी को सीएम बनाया मगर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष हरीश रावत भी कुमाऊं के ही रहे।
2002 में भाजपा चुनाव हार गई थी कुमाऊं के कोश्यारी नेता प्रतिपक्ष बने तो गढ़वाल के मनोहर कांत ध्यानी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। 2003 में गढ़वाल मातबर सिंह कंडारी को नेता प्रतिपक्ष बनाया गया तो 2004 में कुमाऊं के भगत सिंह कोश्यारी को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया ।
2007 में कांग्रेस हार गई भाजपा सत्ता में आई। कांग्रेस ने हरक सिंह रावत को नेता प्रतिपक्ष बनाया। प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी कुमाऊं मंडल या यूं कहें कि कुमाऊं के तराई के यशपाल आर्य को दी गई। 2012 में कांग्रेस फिर सत्ता में आई विजय बहुगुणा सीएम बने। आर्य प्रदेश अध्यक्ष बने रहे लेकिन जब 2014 में विजय बहुगुणा को हटा हरीश रावत को सीएम बनाया गया तो प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी किशोर उपाध्याय के हाथ लग गई। 2017 में कांग्रेस विधानसभा चुनाव बुरी तरह हार गई।

अब इंदिरा हृदयेश फिर से नेता प्रतिपक्ष बनीं तो प्रीतम सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। जुलाई 2021 में इंदिरा हृदयेश का आकस्मिक निधन हुआ तो प्रीतम सिंह को नेता प्रतिपक्ष और गणेश गोदियाल को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया।

लेकिन 2022 के चुनाव में कांग्रेस सत्ता हासिल नहीं कर पाई। तो इसकी गाज गणेश गोदियाल और नेता प्रतिपक्ष दोनों पर गिरी। अब यशपाल आर्य को नेता प्रतिपक्ष और करन महारा को प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी सौंपी गई है।
अब जरा फिर से भाजपा की बात 2007 में जीत के बाद भाजपा ने गढ़वाल से खंडूड़ी को सीएम बनाया गया तो प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी कुमाऊं बची सिंह रावत को दी गई। 2009 में गढ़वाल से रमेश पोखरियाल निशंक सीएम बने तो पार्टी की कमान कुमाऊं के बिशन सिंह चुफाल को सौंप दी गई। 2012 में जब कांग्रेस जीत गई तो कुमाऊं के अजय भट्ट नेता प्रतिपक्ष बने।

भाजपा ने 2013 में गढ़वाल के तीरथ सिंह रावत को प्रदेश अध्यक्ष बनाया। मगर 2016 में भाजपा ने अजय भट्ट को नेता प्रतिपक्ष के साथ ही प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी भी सौंप दी। यानी नेता प्रतिपक्ष और प्रदेश अध्यक्ष दोनो कुमाऊं के एक ही व्यक्ति को ।

इसके बावजूद 2017 के चुनाव में भाजपा को ऐतिहासिक प्रचंड बहुमत मिला तो गढ़वाल के त्रिवेंद्र सिंह रावत को सीएम के पद पर बिठाया गया। तब अजय भट्ट चुनाव हार गए लेकिन प्रदेश अध्यक्ष बने रहे। बाद में अजय भट्ट जब नैनीताल ऊधमसिंह नगर से सांसद बन गए तो 2020 में कुमाऊं से बंशीधर भगत को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया।

1 मार्च 2021 को जब त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटा तीरथ सिंह रावत को सीएम बनाया गया । जुलाई 2021 में तीरथ को हटाकर पुष्कर सिंह धामी को सत्ता सौंप दी गई। पर तो 12 मार्च 2021 से मदन कौशिक से अब तक प्रदेश अध्यक्ष हैं। चुनाव हार कर भी धामी फिर से सीएम बनाए गए हैं। अब देखना है कि क्या भाजपा गढ़वाल के पर्वतीय क्षेत्र के तुष्टीकरण के लिए अपने संगठन में कुछ बदलाव करती है।

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