जिसने छोड़ी सीट, उसकी सियासत गई बीत
-सियासत से लापता हो गए योगंबर सिंह रावत, टीपीएस रावत और किरण मंडल
देहरादून। पूर्व सीएम हरीश रावत के खासमखास कांग्रेस के धारचूला विधायक मौजूदा भाजपा सरकार के सीएम पुष्कर सिंह धामी के लिए अपनी सीट छोड़ने की बात कह चर्चा में हैं।
सीएम पुष्कर धामी ने भी उनका धन्यवाद किया है लेकिन अब तक के प्रदेश के चुनावी इतिहास को देखा जाए तो सीएम के लिए सीट छोड़ने वाले अधिकांश विधायक योगंबर सिंह रावत, टीपीएस रावत और किरण मंडल की बाद में सियासी घटाघोप में लापता हो गए।
वैसे सीएम के लिए सीट छोड़ने के बावजूद अपनी सियासत बचाए रखने के अपवाद खुद हरीश धामी ही है। 2013 की आपदा के बाद जब कांग्रेस ने विजय बहुगुणा तो रुखसत किया और हरीश रावत को विधानसभा पहुंचाने के लिए हरीश धामी ने धारचूला सीट छोड़ी थी।
लेकिन 2017 और फिर 2022 में हरीश धामी ने यह सीट जीत अपनी सियासी मजबूती दिखा दी है। लेकिन बीते दौर में ज्यादातर सीट छोड़ने वालों की सियासत का अवसान ही हो गया है। अब देखना है कि अगर हरीश धामी सचमुच पुष्कर सिंह धामी के लिए सीट छोड़ते हैं और उसके एवज में राज्यसभा सीट या वन निगम की अध्यक्ष पाते हैं तो क्या उनकी सियासत उसी मुकाम पर रह पाएगी जिस पर आज है।
एनडी तिवारी के लिए सीट छोड़ने के बाद नेपथ्य में चले गए योगंबर रावत
2002 में पूर्व सीएम नारायण दत्त तिवारी के लिए सीट छोड़ने वाले कांग्रेस विधायक योगंबर सिंह रावत की। 2007 में जब एनडी तिवारी ने खुद चुनाव नहीं लड़ा तो योगंबर रावत ने फिर से रामगर से चुनाव लड़ा। लेकिन वह भाजपा के दीवान सिंह बिष्ट से बुरी तरह पराजित हुए। दीवान सिंह ने योगंबर सिंह के 11076 मतों से हराया।
दीवान सिंह को 25949 तो योगंबर सिंह रावत को 14873 वोट मिले। 2002 में योगंबर सिंह रावत ने रामनगर सीट 4815 मतों के अंतर से जीती थी। 16271 जबकि भाजपा के दीवान सिंह को 11356 वोट मिले थे। एनडी तिवारी ने उन्हें सीट छोड़ने के एवज में उत्तराखंड वन निगम का अध्यक्ष बनाया।
एनडी ने चुनाव ऐसा लड़ा कि वह केवल एक बार यानी नामांकन के लिए रामनगर गए लेकिन फिर भी भारी मतों से चुनाव जीत गए।