अपनी ही पीठ थपथपा गए देवेंद्र!

  • जमीनी कार्यकर्ता यादव और अन्य बड़े नेताओं को हार के लिए जिम्मेदार मान रहे
  • भले ही हरीश रावत चुनाव हार गए हों लेकिन पार्टी के लिए अब भी वही संकटमोचक

डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट

देहरादून।उत्तराखंड में 70 सीटों में से 51 सीटों पर हुई कांग्रेस की करारी हार के बाद भी कांग्रेस के बड़े नेताओं की नींद नहीं खुली है। जमीनी स्तर के कार्यकर्ता अपनी इस हार से आहत है और खुले रूप में कांग्रेस प्रभारी देवेंद्र यादव व अन्य बड़े नेताओं को इसके लिए जिम्मेदार मान रहे हैं।

51 सीटों पर हार की समीक्षा करने आए कांग्रेस महासचिव अविनाश पांडे व कांग्रेस प्रभारी देवेंद्र यादव सिर्फ सात घण्टे में कांग्रेस मुख्यालय में बैठकर समीक्षा की औपचारिकता पूरी करके अपनी ही पीठ थपथपा कर चले गए।

ये लोग अब भी स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं कि टिकटों का वितरण गलत हुआ, कांग्रेस ने ही कांग्रेस को हराया और बड़े नेता चुनाव प्रचार में भी न तो मन से और न ही तन से सब जगह जा पाए। तभी तो विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद कांग्रेस के अंदर मचा सियासी तूफान मचा हुआ है जो अब भी थमता हुआ नजर नहीं आ रहा है।

प्रीतम सिंह, हरीश रावत, रणजीत रावत के बाद अब अब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गोविंद सिंह कुंजवाल ने हार के कारणों पर खुलकर अपनी बात रखी है। गोविंद सिंह कुंजवाल ने प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव पर जबरदस्त हमला बोला है। साथ ही, संगठन की कमजोरी पर भी सवाल खड़े किए हैं। कुंजवाल हरीश रावत खेमे के सबसे सक्रिय और करीबी माने जाते हैं। ऐसे में कुंजवाल के बयान से एक बार फिर हंगामा होना तय है।

गोविंद सिंह कुंजवाल ने कांग्रेस की हार के लिए प्रदेश संगठन पर ही पूरा दोष लगाया है। कुंजवाल का कहना है कि गणेश गोदियाल के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद भी पूरा संगठन अपने तरीके से काम कर रहा था। कुंजवाल ने कहा कि संगठन पुराने लोगों के हिसाब से चलाया जा रहा था।

इसके लिए कुंजवाल ने प्रदेश प्रभारी देवेन्द्र यादव को निशाना बनाया है। कुंजवाल ने आरोप लगाया कि कांग्रेस में पहले सीएम और फिर टिकटों को लेकर आपसी खींचतान चलती रही। जिस कारण पार्टी की हार हुई है। कुंजवाल ने अब संगठन को मजबूत करने की पैरवी की है।
कांग्रेस की प्रदेश में हुई हार को लेकर पहले ही चुनाव अभियान की कमान संभालने वाले पूर्व सीएम हरीश रावत और फिर पूर्व प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल ने हार की जिम्मेदारी ले चुके हैं। इसके बाद सोनिया गांधी के निर्देश पर गोदियाल इस्तीफा सौंप चुके हैं। ऐसे में कांग्रेस के अंदर अब भी खींचतान जारी है। अब प्रदेश प्रभारी देवेन्द्र यादव और नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह निशाने पर हैं।

जिनकी जिम्मेदारी को लेकर भी दूसरा खेमा एक्टिव होकर इस्तीफे का दबाव बना रहे हैं। जिसका असर आने वाले दिनों में कांग्रेस के नए प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष के चयन पर भी नजर आ सकता है। कुंजवाल के हार के कारणों को लेकर खुलकर बयानबाजी करना और प्रदेश प्रभारी पर सवाल खड़े करना हरीश रावत खेमे की प्रेशर पॉलिटिक्स भी मानी जा रही है। कांग्रेस के अंदर पहले भी प्रदेश प्रभारी के खिलाफ हरदा समर्थक मोर्चा खोल चुके हैं।

ऐसे में जब सोनिया गांधी ने प्रदेश अध्यक्ष से लेकर प्रदेश प्रभारियों के इस्तीफे मांगने शुरू कर दिए हैं तो इससे कांग्रेस में खुलकर खेमेबाजी भी शुरू हो गई है। कुंजवाल के इस बयान के बाद प्रीतम सिंह पर भी अब बड़ी जिम्मेदारी छोड़कर दूसरे नेताओं को मौका देने का दबाव बनाया जा सकता है। कांग्रेस के अंदर अब लड़ाई प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष को लेकर भी है। जिसमें हरीश रावत और प्रीतम खेमा अपने-अपने दावेदारों को फिट करवाने में जुट गए हैं।

इसके लिए भी दोनों खेमों के सीनियर नेता लॉबिंग में जुटे हुए हैं। विधानसभा चुनाव 2022 के लिए कांग्रेस द्वारा लाया गया चार कार्यकारी अध्यक्षों का फामूर्ला बुरी तरह से फेल हुआ है, कांग्रेस अब शायद ही इस फामूर्ले को अपनाए। क्योंकि विधानसभा चुनाव में पंजाब और उत्तराखंड में यह फामूर्ला बिल्कुल बेअसर साबित हुआ है। राज्य के नेताओं ने भी हाईकमान को सुझाव दिया है कि जिसे भी प्रदेश अध्यक्ष बनाया जाएगा, उससे फ्री हैंड होकर काम करने का अधिकार भी दिया जाए।

उम्मीद की जा रही है, जल्द ही प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष पर तस्वीर साफ हो जाएगी। दिल्ली में राष्ट्रीय महासचिव केसी वेणुगोपाल ने कुछ राज्यों के प्रभारियों के साथ बैठक भी की। इसमें उत्तराखंड के विषय पर भी चर्चा हुई है। टिकट न मिलने के कारण निर्दलीय चुनाव लड़ने को तैयार पूर्व मंत्री शूरवीर सिंह सजवाण को भी पांचवा कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया गया था।

पहले बने चार कार्यकारी अध्यक्षो में भुवन कापड़ी न सिर्फ अपनी सीट बचा पाए बल्कि उन्होंने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को हराकर भाजपा को तगड़ा झटका भी दिया। कापड़ी के साथ उधम सिंह नगर से ही दूसरे कार्यकारी अध्यक्ष तिलकराज बेहड़ भी चुनाव जीते है। लेकिन प्रदेश अध्यक्ष गोदियाल व कार्यकारी अध्यक्ष रणजीत सिंह रावत और प्रो. जीतराम को चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है।
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष पद पर हाईकमान की खामोशी स्थानीय कांग्रेस नेताओं पर भारी पड़ रही है। 15 मार्च को निवर्तमान अध्यक्ष गणेश गोदियाल के इस्तीफे के बाद कांग्रेस में राजनीतिक गतिविधियां करीब करीब शून्य हो चुकी हैं। शीर्ष नेताओं ने प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष की नियुक्ति को एक साथ करने के संकेत दिए हैं। आजकल में ये नियुक्ति हो सकती हैं।

लेकिन कांग्रेस के राज्य स्तरीय नेता अपनी गुटबाजी से बाज नहीं आ रहे हैं। रणजीत रावत का पार्टी के वरिष्ठ नेता हरीश रावत पर मानहानि का आरोप लगाना बेहद शर्मनाक है, हालांकि कांग्रेस हाईकमान ने भी रणजीत रावत के आरोपों को एक सिरे से खारिज कर उनसे स्पष्टीकरण भी मांगा है।

फिर भी प्रीतम सिंह व रणजीत समर्थकों के हरीश रावत पर प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से हमले जारी है जिनसे परेशान होकर हरीश रावत ने कांग्रेस कार्यालय पर उपवास तक की धमकी दी है। फिर भी ये नेता सुधर नहीं रहे हैं।
आज जरूरत है कि हार के कारणों की जमीनी स्तर पर समीक्षा हो जिसमें धरातल के कार्यकतार्ओं की भी सुनी जाए। जब तक कांग्रेस प्रभारी देवेंद्र यादव हवाई दौरों के बजाय गांव देहात में जाकर निष्ठावानो के साथ संपर्क नहीं बनाएंगे तब तक काम चलने वाला नहीं है।

वहीं, भले ही हरीश रावत विधानसभा चुनाव हार गए हो फिर भी उनसे ज्यादा संगठन बनाने व चलाने की क्षमता किसी भी अन्य नेता में नही है। अच्छा हो कांग्रेस को उत्तराखंड में फिर से जिंदा करने के लिए कांग्रेस की कमान हरीश रावत को ही सौंपी जाए, तभी कांग्रेस के दिन बहुर सकते है। वरना आपस मे लड़ते रहो, भाजपा को सत्ता सौंपते रहो, कांग्रेस को कुछ मिलने वाला नहीं है।

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