ताकतवर हुए पुष्कर, विकास कार्यों पर रखना होगा फोकस

पर्यटन और तीर्थाटन की सुस्त रफ्तार को तेज करने की जरूरत

ममता सिंह कार्यकारी संपादक
उत्तराखंड में पुष्कर सिंह धामी की सरकार सत्ता पर फिर काबिज हो गयी है। हमें अतीत में जाकर समय गंवाने के बजाय उत्तराखंड के हित की बात पर ध्यान देने की आवश्यकता है। सीधा-सीधा गणित यह है कि लोगों ने भाजपा के पक्ष में वोट दिया। लोगों को डबल इंजन की सरकार पसंद आई। हां, इतना जरूर है कि पुष्कर सिंह धामी अपने विधानसभा क्षेत्र खटीमा से चुनाव हार गए, बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के विश्वास पात्र बने रहे। इसलिए हारने के बावजूद उत्तराखंड की बागडोर धामी को सौंप दी गई। ज्यादा अतीत में जाना अच्छा नहीं है।

लेकिन मुख्यमंत्री चयन से लेकर मंत्रियों के विभागों के आवंटन में चली खींचतान को समझना भी आवश्यक है। उत्तराखंड की जनता नहीं चाहती है कि इस छोटे राज्य की अर्थव्यवस्था पर इसका प्रभाव पड़े। साथ ही, यहां के लोगों को यह भी कतई पसंद नहीं है कि अब बार-बार मुख्यमंत्री बदलना पड़े। क्योंकि इसका पूरा असर विकास पर पड़ता है। मुख्यमंत्री बदलने से हजारों-करोड़ों की योजनाएं प्रभावित होती हैं। उत्तराखंड की जनता ने यदि बीता बिसरा कर फिर से कमल के पक्ष में वोट देकर भाजपा पर एक बार फिर भरोसा जताया है।

लेकिन बार बार बदलाव से जो अर्थव्यवस्था पर अतिरिक्त बोझ पड़ा, सरकार उसकी भरपाई कहीं न कहीं आम जनता पर कर का अतिरिक्त बोझ डाल कर ही करेगी। लेकिन धामी सरकार को इस बात का विशेष ध्यान रखने की जरूरत है कि जनहित से कोई समझौता न किया जाए। साथ ही, पर्यटन और तीर्थाटन की सुस्त रफ्तार को तेज किया जाए।
उत्तराखंड की जनता सरल स्वभाव की है। उसे डबल इंजन से खासकर प्रधानमंत्री की दूरदर्शी नीतियों से बेहद लगाव है। इसलिए वर्ष 2022 में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा की सरकार की दोबारा वापसी हुई है। लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि वर्ष 2017 में जहां भाजपा की झोली में 57 सीटें आई थीं, वहीं इस बार 47 सीटों पर भी भाजपा को संतोष करना पड़ा है।

इसका मतलब यह है कि पिछले पांच सालों में भाजपा के ग्राफ में गिरावट आई है। इस गिरावट को राजनीतिक विश्लेषक कई रूप में देख रहे हैं। ग्राम्य स्तर पर जो विकास के कार्य होने चाहिए थे, नहीं हुए हैं। क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में भाजपा को उम्मीद के मुकाबले वोट नहीं मिले हैं। हालांकि, कुछ विशेषज्ञ मुख्यमंत्रियों के बदलने को भी एक कारण मान रहे हैं। लेकिन यह कारण ऐसा भी नहीं है कि जिसकी वजह से ज्यादा सीटें प्रभावित हो सकें।

हां, कुछ न कुछ कारण जरूर है जिसकी वजह से वर्ष 2017 के मुकाबले वर्ष 2022 में सीटें कम आई हैं। अब तो भाजपा की थिंक कमेटी या प्रदेश स्तर पर गठित कोर कमेटी इसका आकलन करेगी कि वर्ष 2017 के मुकाबले वर्ष 2022 में मत प्रतिशत में हुई गिरावट की मूल वजह क्या है। दरअसल, वर्ष 2024 में लोकसभा के चुनाव होने हैं। भाजपा हाईकमान के लिए वर्ष 2024 बेहद महत्वपूर्ण है। इसलिए अभी से ही भाजपा हाईकमान चुनावी बिसात बिछाने में जुटा हुआ है।

माना भी जा रहा है कि इस क्रम में ही पुष्कर सिंह धामी के चुनाव हारने के बाद भी भाजपा हाईकमान ने धामी को मुख्यमंत्री बनाया है और उन पर विश्वास व्यक्त किया है। भाजपा हाईकमान को लग रहा है कि धामी के मुख्यमंत्री रहते ही पार्टी को लोकसभा चुनाव में काफी फायदा होगा। उत्तराखंड में लोकसभा की पांच सीटें हैं और सभी पर भाजपा का ही कब्जा है।
भाजपा हाईकमान ने पुष्कर सिंह धामी पर भरोसा जताया है। इसलिए अभी धामी को भी हाईकमान की वर्ष 2024 की चुनावी रणनीति को समझना होगा और उसी के हिसाब से काम करना होगा। वैसे तो उत्तराखंड की सरकार के पास कुल 5 साल का समय है। लेकिन लोकसभा चुनाव तो नजदीक है। लिहाजा, धामी को तेजी के साथ बल्लेबाजी करनी होगी। हां, तेजी के साथ बल्लेबाजी में बोल्ड होने का भी खतरा बना रहता है। इसलिए धामी को फूंक-फूंक कर कदम उठाना ही हितकर होगा।

कोशिश यही करनी होगी कि पिच में जमे रहें और रन भी बटोरें। इससे ही भाजपा को आगामी लोकसभा चुनाव में फायदा हो सकता है। भाजपा हाईकमान ने धामी को काफी सोच समझ कर मुख्यमंत्री बनाया है। अब तो सरकार का गठन भी हो गया है। मंत्रिमंडल में नए और पुराने मंत्रियों का समावेश है। विभाग भी बंट गए हैं। हां, यह बात जरूर है कि विभाग बांटने में काफी विलंब भी हुआ है। लेकिन मंत्री भी खुश हैं। यदि किसी भी मंत्री में नाराजगी है तो सामने नहीं है। मंत्रियों को जो कहना है कि वे पार्टी द्वारा निर्धारित उचित फोरम में ही कहेंगे और कहना भी चाहिए।

संभवत: यही वजह है कि धामी मंत्रिमंडल में शामिल मंत्री मलाईदार विभाग नहीं मिलने पर भी चुप हैं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के समाने पहाड़ जैसी चुनौतियां भी हैं। उन्हें सभी बाधाओं को सूझबूझ से पार करना होगा। विकास पर फोकस करने के अलावा मुख्यमंत्री की प्राथमिकता अलग-अलग धड़ों में बंटी भाजपा के नेताओं को भी साधना होगा। मतलब साफ है कि दिग्गज नेताओं के साथ समन्वय बनाकर चलाना होगा। क्योंकि मौका मिलते ही इस श्रेणी के नेता तुरंत सक्रिय हो जाएंगे। इसका उदाहरण उत्तराखंड में कई बार देखने को भी मिला है।
अभी तो मुख्यमंत्री को विधानसभा का सदस्य भी बनना है। क्योंकि वे खटीमा से चुनाव हार गए हैं। चुनाव परिणाम आने के बाद तो कई विधायकों ने भी धाामी के समर्थन में विधानसभा सीट छोड़ने की पेशकश की थी लेकिन फिलहाल कोई सुगबुगाहट तक नहीं है। डीडीहाट के विधायक बिशन सिंह चुफाल की चर्चा थी कि वे भी अपनी सीट छोड़ देंगे। लेकिन उन्होंने साफ-साफ इंकार कर दिया है। दरअसल, चुफाल काफी उम्रदराज हैं और डीडीहाट से भविष्य में अपनी सुपुत्री के लिए लाबिंग कर रहे हैं।

ऐसे में लगता नहीं कि चुफाल अपनी सीट धामी के लिए छोड़ेंगे। चर्चा यह भी थी कि चुफाल को राज्यसभा भेजा जाएगा लेकिन चुफाल ने स्पष्ट रूप से इस पर विराम लगा दिया है। दरअसल, राज्य सभा के लिए उत्तराखंड से कई दावेदार भी हैं जिनकी नजरें भी राज्य सभा सीट पर है। ऐसे में धामी के लिए कौन विधायक सीट छोड़ेगा। मौजूदा हालात में यह काफी महत्वपूर्ण हो गया है।

हालांकि, पार्टी हाईकमान अपने स्तर पर कुमाऊं मंडल के ही कुछ विधायकों से बातचीत कर रहा है। माना जा रहा है कि कुछ न कुछ हल जरूर निकल जाएगा। धामी के सामने यह सबसे बड़ी चुनौती है। धामी यह भी चाहेंगे कि संगठन पर भी उनका वर्चस्व कायम रहे। इसके लिए भी वे लग गए हैं।
सूत्रों की मानें तो मौजूदा पार्टी अध्यक्ष मदन कौशिक को हटा कर जल्द ही कुमाऊं से किसी ब्राह्मण को प्रदेश भाजपा अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपे जाने की प्लानिंग शुरू हो गयी है। धामी को इन सभी महत्वपूर्ण चीजों को दुरुस्त करना होगा। क्योंकि धामी जब तक उबड़-खाबड़ रास्तों को दुरुस्त नहीं करेंगे, तब तक उनकी गाड़ी सरपट पटरी पर नहीं दौड़ पाएगी। अब इनका निपटारा धामी कब और कैसे करते हैं, यह उन पर ही टिका हुआ है। धामी युवा हैं और हाईकमान को उनसे काफी उम्मीदें हैं।

लेकिन धामी को समय रहते ही इन जरूरी चीजों को ठीक करना होगा। इसके अलावा मुख्य काम प्रदेश का विकास है। इसके लिए धामी को नए सिरे से विकास का खाका तैयार करना होगा। इसमें यदि देर हो गई तो भविष्य में बड़ी दिक्कत आ सकती है। क्योंकि वर्ष 2024 का चुनाव भाजपा हाईकमान की पहली प्राथमिकता है। इसमें सफलता मिले, इसलिए भाजपा हाईकमान ने धामी को प्रदेश की सत्ता सौंप रखी है। लेकिन कामयाबी तभी मिलेगी जब विकास कार्य शुरू हो जाएंगे।

अभी तो नए सिरे से प्रदेश में होने वाले विकास कार्यों का खाका भी तैयार नहीं हुआ है। क्योंकि लोकसभा चुनाव के समय जनता को यह बताना होगा कि प्रदेश के विकास के लिए किस तरह की केंद्र पोषित और प्रदेश पोषित योजनाएं संचालित हैं। उत्तराखंड में लागू करने के लिए केंद्र द्वारा कई योजनाएं तैयार कर की जा रही हैं। जल्द ही उत्तराखंड में उन योजनाओं को जमीन में उतारा जाएगा। लेकिन राज्य को भी अपना काम करना होगा। अब इसमें देर नहीं होनी चाहिए।
वैसे बहुमत से ज्यादा सीटें होने के कारण चिंता जैसी कोई बात नहीं है। लेकिन अब विकास के नए मॉडल पर काम शुरू हो जाना चाहिए। सबसे खास बात यह है कि विकास का नया खाका नौकरशाहों को ही तैयार करना है। हालांकि, कई विभागों ने पिछले दिनों विकास का नया खाका भी तैयार किया जिसे जल्द ही धामी के सामने संबंधित विभाग के सचिव रखेंगे।

लेकिन कई ऐसे विभाग हैं जहां इस तरह की अभी शुरूआत ही नहीं हुई है। इस दिशा में सभी विभागों को तत्काल प्रभाव से कार्य शुरू कर देना चाहिए। विकास को गति प्रदान करने में नौकरशाहों की अहम भूमिका होती है। हां, नौकरशाहों को प्लानिंग बनाते समय पहाड़ के दर्द को भी समझना होगा। क्योंकि ज्यादातर योजनाएं उत्तराखंड में इसलिए फ्लाप होती हैं क्योंकि वे मैदान मूल की बनी होती हैं। सिर्फ हरिद्वार और तराई वाले जनपदों से संपूर्ण उत्तराखंड का विकास संभव नहीं है। इसके लिए तो पहाड़ को ध्यान में रखकर ही योजनाओं का निर्माण करना चाहिए।

तभी जाकर उत्तराखंड का पूर्ण विकास संभव है। नौकरशाही के ईमानदार प्रयास से ही यह कार्य संभव है। यहां यह बात भी बताना आवश्यक है कि बार-बार नौकरशाही में बदलाव करना भी ठीक नहीं होता है। क्योंकि इसका असर विकास कार्यों पर पर पड़ता है। कई बार देखा गया है कि बेवजह ही नौकरशाही में बदलाव किया जाता है और इसका असर योजनाओं पर पड़ता है। इस मुद्दे को समझने की आवश्यकता है।
सालों से एक ही जगह जमे उप सचिवों, अनु सचिव एवं संयुक्त सचिवों के दायित्वों में बदलाव किया जाना चाहिए। इसके अध्ययन के लिए सरकार के पास पहले से ही कमेटी है।

यह कमेटी सरकार को समय-समय पर अपनी रिपोर्ट भी देती है। उसी के हिसाब से अधिकारियों के काम में बदलाव किया जाना चाहिए। यहां एक और महत्वपूर्ण बात पर गौर करने की आवश्यकता है। उत्तराखंड की सीमाएं नेपाल और तिब्बत से सटी हुई हैं। यह क्षेत्र काफी संवेदनशील है। यहां केंद्र और राज्य दोनों की ही खुफिया एजेंसियां सक्रिय हैं। यहां और भी ज्यादा सक्रियता बढ़ाने की आवश्यकता है। सबसे बड़ी बात है कि सीमांत क्षेत्रों में पलायन काफी तेजी के साथ हुआ है। इसे रोकना बेहद जरूरी है।

सरकार को प्राथमिकता के साथ इस पर काम करना होगा। सीमांत क्षेत्रों के गांवों को युद्धस्तर पर आबाद किए जाने की आवश्यकता है। सीमांत गांवों में बसे लोग सबसे बड़े सुरक्षा प्रहरी हैं। सीमा पर से आने जाने वालों पर इनकी नजर रहती है। नया इंसान देखते ही वे स्थानीय पुलिस चैकी को अलर्ट भी करते हैं। कई बार देखा गया है कि स्थानीय लोगों की मदद से अपराधी किस्म के लोगों को पकड़ने में काफी सफलता मिली है।

वैसे पलायन तो सभी जनपदों से हुआ है लेकिन सरकार की पहली प्राथमिकता सीमांत क्षेत्रों के गांवों को आबाद करने पर ही होनी चाहिए। पलायन को तभी रोका जा सकता है जब सीमांत क्षेत्रों में बसे गांवों की बुनियादी समस्याओं का हल निकाला जाए। पेयजल, बिजली और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं सीमांत क्षेत्रों में काफी गंभीर हैं।

इसके अलावा सीमांत क्षेत्रों में अच्छे स्कूल नहीं हैं जिससे बच्चों की पढ़ाई लिखाई कराई जा सके। हालांकि, यह समस्याएं एकाएक पैदा नहीं हुई हैं। राज्य गठन के बाद से ही यह समस्याएं हैं। समय के साथ ये समस्याएं और ज्यादा बढ़ी हैं। राज्य गठन के बाद इन समस्याओं से निजात दिलाने की दिशा में कोई सार्थक प्रयास ही नहीं किया गया है जिसकी वजह सीमांत क्षेत्रों से पलायन तेजी के साथ बढ़ा है। धामी सरकार को इस दिशा में काम करने की जरूरत है।

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